भोपाल के तालाब सिकुड़ रहे हैं. कलियासोत नदी मर रही है. कलियासोत पहाड़ी तो पॉवर और पैसे वालों का प्रदर्शन क्षेत्र बनी है. टाइगर के इलाके में लोग ऐसे घुस गए हैं कि टाइगर को बस्तियों और सड़कों पर आना पड़ रहा है. भोपाल की ग्रीनरी का खुलेआम क़त्ल हो रहा है. शहर का सारा दबाव ग्रीन बेल्ट और ग्रीनरी पर ही पड़ रहा है..!!
भोपाल के विकास के दावे बड़े-बड़े हैं लेकिन विकास का मास्टर प्लान नदारद है. सरकारी एजेंसियों की अनुमति से बनाए गए मकान अवैध घोषित किये जा रहे हैं. अनुमति देने वाले ही अब इन मकानों को अवैध घोषित कर रहे हैं. भोपाल के नदी, तालाब और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हुए सरकारी अनुमतियों से जो निर्माण हुए हैं, उसके लिए जिम्मेदार और गुनहगार लोग आराम से बैठे हैं लेकिन गरीब और आम जनता ही पिसने के लिए मजबूर है.
शहर में यातायात व्यवस्था की दुरावस्था हर दिन उजागर हो रही है. व्यस्ततम इलाकों से निकल पाना हर दिन कठिन होता जा रहा है. दिखाने को तो मेट्रोट्रेन का ट्रायल रन हो चुका है, अटल पथ जैसी शो पीस सड़कों की सौगात भी मिली है लेकिन करोड़ों रुपए खर्च कर सुविधा के नाम पर राजधानी में विकास के ऐसे-ऐसे बेतुके काम पहले भी होते रहे हैं जिससे शहर वासियों को सुविधा से ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ा है. बीआरटीएस उसका सबसे बड़ा उदाहरण है. अब उसको तोड़ने की बात चल रही है. जितना पैसा बीआरटीएस पर खर्च किया गया था उससे अगर सही प्लानिंग के साथ छोटे-छोटे फ्लाईओवर और दूसरे काम किए जाते तो शहर की गति ज्यादा तेज हो सकती थी.
भोपाल का मास्टर प्लान 2005 तक ही प्रभावशील था. इसके बाद अब तक भोपाल का मास्टर प्लान नहीं आ सका है. कहने को तो सरकार का स्थायित्व विकास के बुनियादी कामों को योजनाबद्ध ढंग से आगे बढ़ाने के लिए कारगर होता है लेकिन भोपाल के लिए तो ऐसा नहीं हो सका है. 2005 के बाद अब तक अधिकांश समय एक ही पार्टी की सरकार और एक ही नेता मुख्यमंत्री के पद पर काबिज रहे. भोपाल का मास्टर प्लान नहीं आने के लिए क्या भविष्य का भोपाल अपने आकाओं को माफ कर सकेगा?
भोपाल का मास्टर प्लान बना तो कई बार लेकिन अंतिम रूप से जारी नहीं हो सका. इसका सबसे बड़ा कारण यही होता है कि अधिकांश रसूख वाले भोपाल के बड़े तालाब के कैचमेंट एरिया में कब्जा जमाए हैं. इसी तरह कलियासोत-केरवा की पहाडी और ग्रीन बेल्ट इलाके में सारे धनाड्य-रसूखदार लोग काबिज हैं. ऐसे लोगों की हमेशा यही कोशिश होती है कि उन्हें ज्यादा से ज्यादा निर्माण की अनुमति मिले. ग्रीन बेल्ट की पाबंदी खत्म हो, तालाब के कैचमेंट एरिया की बंदिशों पर रोक लगे.
चुनाव के पहले मास्टर प्लान पर आपत्तियां बुलाई गई थीं, ऐसा माना जा रहा था कि चुनाव की अधिसूचना के पहले मास्टर प्लान का अंतिम प्रकाशन कर दिया जाएगा लेकिन फिर इस बार भी मास्टर प्लान राजनीति का शिकार हो गया. अब नई सरकार अभी लोकसभा चुनाव में व्यस्त है. भोपाल को तो उम्मीद है कि नई सरकार भविष्य के भोपाल की रूपरेखा और संभावनाओं को मास्टर प्लान के रूप में जरूर लाएगी. मास्टर प्लान के मामले में राजनीतिक आम सहमति भी दिखाई देती है. सभी दलों के नेता इसके विरोध में ही सक्रिय हो जाते हैं.
झीलों के शहर भोपाल की शान बड़ा तालाब है. बड़े तालाब के कैचमेंट एरिया में अवैध अतिक्रमण जैसे भोपाल में रसूख साबित करने का माध्यम बने हैं. तालाब के कैचमेंट एरिया की कई सारी मीनारें खोजने पर भी नहीं मिल रही हैं. लालघाटी पर कई मैरिज हॉल बने हैं जिन्हें हर साल कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण के नाम पर नोटिस दिए जाते हैं लेकिन उनका कोई निराकरण नहीं होता और फिर सब कुछ पहले जैसा ही चलता रहता है. यह हालत तब जबकि लगभग हर साल वहां होने वाली शादियों में शासन-प्रशासन से लगाकर हर महत्वपूर्ण व्यक्ति जरूर जाता है. पुराने मास्टर प्लान में घोषित रास्तों पर अवैध कब्जा है. कितनी प्रस्तावित सड़कें और फ्लाईओवर हैं जिनका अभी तक निर्माण नहीं हो सका है. हजारों की आबादी इनका निर्माण नहीं होने से परेशानी का सामना कर रही है. मास्टर प्लान का अमल भी ईमानदारी से होना चाहिए.
भोपाल की खूबसूरती हर आने वाले का मन मोहती रही है लेकिन धीरे-धीरे इस खूबसूरती पर दाग लगते जा रहे हैं. हर व्यक्ति को जीने का अधिकार है. उसे रोटी कपड़ा मकान की बुनियादी पूर्ति का भी अधिकार है. भोपाल के विकास के नियोजन के प्रति सरकारों की अनदेखी के कारण बेतरतीब मकान बन रहे हैं. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश के बाद कलियासोत नदी के 33 मीटर के दायरे में आने वाले निर्माण को लेकर अब तक करीब 550 लोगों को नगर निगम द्वारा नोटिस दिए गए हैं, जिन निर्माण के लिए नोटिस जारी किए गए हैं वह सभी निर्माण नगर निगम और सरकार की संबंधित एजेंसियों की अनुमति से ही बने हैं.
अगर यह अनुमतियां गलत दी गई थीं तो फिर अनुमति देने वालों के खिलाफ अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की गई? अनुमति अभी तक निरस्त क्यों नहीं की गई? जब गलत अनुमतियाँ देने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को दंडित किया जाएगा तभी प्रशासन में यह स्पष्ट संदेश जाएगा कि भोपाल की आबोहवा और पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करने के लिए सजा अवश्य मिलेगी.
भोपाल का मौसम बहुत खुशनुमा होता था. यहां की जलवायु कभी भी अति की तरफ नहीं होती थी. हमेशा हर मौसम में प्लीजेंट माहौल होता था. भोपाल में ग्रीनरी को बचाना और बढ़ाना हर रहवासी का कर्तव्य होता था. इस मामले में तो अब जैसे शहर को कोई नजर लग गई है. हर रसूखदार कैचमेंट एरिया और ग्रीन बेल्ट को नुकसान पहुंचा कर ही अपने विलासितापूर्ण जीवनयापन में आनंद महसूस कर रहा है. भोपाल के विकास को लेकर सरकारी सिस्टम में सोच बदलना चाहिए.
नई सरकार में नगरीय प्रशासन और विकास मंत्री के रूप में एक ऐसे राजनेता को दायित्व मिला है जिसे जमीनी सच्चाई का अनुभव है और ताकत के साथ निर्णय लेने और उसे क्रियान्वित करने की जिजीविषा है. नए मुख्यमंत्री का उन्हें समर्थन भी है. इसलिए इन अनुकूल परिस्थितियों में प्रदेश के शहरों के विकास के लिए जो बुनियादी आवश्यकताएँ वर्षों से लंबित हैं उन्हें पूरा करने के लिए तुरंत कदम उठाने की जरूरत है. मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव और नगरीय प्रशासन और विकास मंत्री इस दिशा में आगे बढ़ेंगे तो राज्य उनको लंबे समय तक याद रखेगा.
पर्यावरण के नाम पर सबसे सुंदर और स्वच्छ शहर भोपाल के लिए पर्यावरण सुरक्षा बड़ी चुनौती है. शहर के विकास के लिए हरित क्षेत्र की बलि चढ़ाने की प्रक्रिया को तुरंत रोका जाना चाहिए. शहरों में मलिन बस्तियां भले ही जरूरी हों लेकिन इनके बेहतर प्रबंधन की भी आवश्यकता है. सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं और यातायात की समस्या भोपाल राजधानी में भी आम है. बेतरतीब यातायात भोपाल की एक गंभीर समस्या बन गई है.
राजधानी में सार्वजनिक परिवहन सेवाएं लगभग समाप्त कर दी गई हैं. शहरों की सड़कों पर गड्ढे- सीवर प्रणाली का अभाव, जलभराव से होने वाली बीमारियां, बिजली-पानी एवं संचार सुविधाओं का अस्त-व्यस्त स्वरूप भोपाल के जनजीवन को इतना अधिक समस्या मूलक बनाता जा रहा है कि भविष्य की समस्याओं की विकरालता की कल्पना मात्र से सिहरन हो जाती है.
भोपाल की ख़ूबसूरती को नुकसान पहुंचाए बिना लिखी विकास की गाथा भोपाल को देश का सुंदरतम शहर बना सकती है. प्रदेश का इंदौर शहर देश के स्वछतम शहरों में शामिल है. शहर के निवासियों का कर्तव्यबोध भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. भोपाल के शहरवासियों में नागरिक कर्तव्यबोध का अभाव दिखता है. चकाचौंध से ज्यादा अच्छी आबोहवा वाले शहर के रूप में भोपाल को विकसित करने का नजरिया नीति निर्माताओं का होना चाहिए. सजावटी और चमकीली इवेंट आधारित विकास नीतियों से संतुलित विकास नहीं बल्कि शहर के भविष्य का विनाश ही होगा.