बहुत लंबे समय के बाद एमपी कांग्रेस ने एकजुट होकर भोपाल में सामूहिक उपवास का सत्याग्रह किया. इसका उद्देश्य बेटियों और महिलाओं के विरुद्ध अपराधों पर रोक लगाने का था..!!
पांच घंटे चले इस सामूहिक उपवास में पुरुष नेताओं ने अपनी बात नहीं रखी. केवल महिला नेतृत्व को ही भाषण देने का मौका दिया गया. इसे पॉजीटिव दृष्टिकोण से ही देखना चाहिए. पुरुष नेताओं को मौका न देने के पीछे, अगर कोई सियासी मोटिव है, तो यह नैरेटिव कब तक चलेगा.
सत्याग्रह में उपवास महात्मा गांधी की देन है. गांधी जी कहते हैं, कि उपवास को यंत्रवत नहीं किया जा सकता. यह एक शक्तिशाली चीज है. लेकिन अगर इसे शौकिया तौर पर किया जाए, तो यह खतरनाक भी हो सकता है. इसके लिए पूरी तरह से आत्मशुद्धि की जरूरत है. इसे व्यक्ति की आत्मा की गहराई से आना चाहिए. इसलिए यह हमेशा दुर्लभ होता है.
क्रिमिनल माइंड सेट ह्यूमन माइंड सेट है. कुकर्म और दुष्कर्म सियासत का विषय नहीं हो सकते. जब भी इस पर सियासत होती है, तो यह दृष्टि बुराई की ही दृष्टि होती है. बुराई कभी हटाई नहीं जा सकती. बल्कि भलाई लाई जा सकती है. जब भलाई लाने की दृष्टि होगी, तो बुराई अपने आप मिटेगी. अंधकार मिटाया नहीं जाता बल्कि प्रकाश जलाया जाता है. प्रकाश के आते ही अंधकार अपने आप चला जाता है.
बेटियों के साथ अन्याय और दुराचार की घटनाएं कहां नहीं हो रही हैं. विपक्ष की राजनीति नकार पर सिमट गई है. जिस राज्य में जिस पार्टी की सरकार है, उस पर बुराई थोपने के दृष्टिकोण से विपक्षी दल इस तरह के कुकर्मों पर सियासी दांवपेच चलते हैं. मध्य प्रदेश में क्योंकि कांग्रेस विपक्ष में है, इसलिए इस उपवास के बहाने उसने सियासत को ही आगे बढ़ाया है. जिन राज्यों में बीजेपी विपक्ष में है, वहां कमोबेश इसी तरह का व्यवहार भाजपा द्वारा भी किया जाता है.
अपराधों की सियासी तुलना होती है, हमारी सरकार में कम और उनकी सरकार में ज्यादा अपराध को उपलब्धि बताया जाता है. यही महिलाओं के अपराध के मामले में भी एमपी कांग्रेस कर रही है.
भलाई की दृष्टि से ही बुराई पर जीत पाई जा सकती है. कांग्रेस की उपवास की दृष्टि के साथ ही एमपी बीजेपी की सरकार की एक दृष्टि भी सामने आई है. राज्य सरकार ने कैबिनेट में आज ही नाबालिक दुष्कर्म पीड़ितों के बच्चों की परवरिश के लिए महत्वपूर्ण योजना घोषित की है. इसके तहत दुष्कर्म पीड़िताओं और उनसे जन्मे बच्चों के पुनर्वास और कल्याण के लिए सरकार काम करेगी.
ऐसी महिलाओं और बच्चों को एक ही स्थान पर स्वास्थ्य सुविधाएं, परवरिश, शिक्षा, पुलिस सहायता और काउंसलिंग की सुविधा मिलेगी. प्रोटेक्शन फॉर चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस पॉक्सो एक्ट के तहत विक्टिम केयर एवं सपोर्ट स्कीम के तहत यह कदम उठाए जा रहे हैं. यह भलाई की दृष्टि है. दुष्कर्म के दुष्परिणाम भुगत रही पीड़िताओं और बच्चों को अच्छा जीवन देने का सरकार का प्रयास निश्चित ही सराहनीय है.
बेटियों, महिलाओं के खिलाफ अपराध समाज के भीतर ही होते हैं. सियासत बहुमत देखती है. बहुमत अगर अपराधियों के सपोर्ट से मिल रहा है, तो उसका भी स्वागत किया जाता है. अब तो हालत यह हो गए हैं, कि आपराधिक छवि के लोग बड़ी संख्या में राजनीति में हावी हैं.
मध्य प्रदेश की अगर चर्चा की जाए तो यौन हिंसा के आरोपी सियासत के बड़े-बड़े पदों पर नेतृत्व कर रहे हैं. राजनीतिक दलों के आलाकमान यौन हिंसा के आरोपियों को पद देने में क्या गौरव समझते हैं? लगता तो ऐसा है, कि सेवा की सियासत तो दफन हो गई है, अब तो मनी मैनेजमेंट सियासी उपलब्धियां हासिल करने का सटीक और सरल रास्ता बन गया है.
नारी शक्ति लगातार हर दृष्टि से ताकतवर हो रही है. अब तो राजनीतिक दृष्टि से भी नया दौर शुरू होने वाला है. महिलाओं को विधायिका में आरक्षण के बाद राजनीतिक दल और विधायिका के फैसलों में महिलाओं का दबाव बढ़ेगा. महिलाओं को कानूनी संरक्षण के प्रावधान बहुत सारे और सख्त हैं, लेकिन फिर भी क्रिमिनल माइंड सेट अपराध कर ही जाते हैं. गलत शिक्षा और इतिहास का गलत संदेश भी बेटियों को कई बार गलत दिशा में ले जाते हैं.
बेटियों के विरुद्ध बहुत सारे अपराध प्रेम के बहाने घटित होते हैं. ऐसे अपराधों मेंधार्मिक कट्टरता भी कई बार कारण बनती है. बेटियों के साथ कई वीभत्सकारी घटनाएं देश में हुई हैं. भारत की संस्कृति और इतिहास प्रेम से भरा हुआ है, लेकिन हमें ऐसा इतिहास पढ़ाया गया है, जो सत्य से दूर रहा है.चाहे पाठ्य पुस्तकों में हो या चाहे चलचित्र के जरिए हो.
प्रेम के प्रतीक के रूप में जो दृष्टि युवाओं के सामने रखी गई है, उसमें जोधा-अकबर, सलीम-अनारकली, लैला-मजनू, सीरी-फरहाद, मुमताज-शाहजहां जैसे प्रतीकों को प्रेम के उदाहरण के रूप में बताया गया है. अगर केवल अकबर की ही बात की जाए, तो उसके हरम में हजारों की संख्या में बेटियां थीं. ऐसे सम्राट को प्रेम का प्रतीक कैसे कहा जा सकता है. इतिहास की गलत व्याख्या, गलत दृष्टिकोण और गलत संदेश भी अनेक बार बेटियों को बरगलाने का कारण बन जाता है.
सबसे पहले शिक्षा में सही दृष्टिकोणऔर भारतीय संस्कृति के यशस्वी नायकों का समावेश जरूरी है. कुछ बदलाव तो हो रहे हैं. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बाद शिक्षा व्यवस्था में बदलाव शुरू हुआ है.
वक्त बदल रहा है. बेटियां ताकतवर हो रही हैं. बेटियों की आवाज अब दबाना संभव नहीं है. धीरे-धीरे क्रिमिनल माइंडसेट भी सुधार दिए जाएंगे. पहले दहेज प्रथा की बुराई बेटियों पर अभिशाप थी. आज बराबरी से बेटियां शादी विवाह के फैसले करने में अपनी भूमिका अदा कर रही हैं. बेटियां सियासी पैंतरेबाज़ी भी समझ रही है.
ऐसे सामूहिक उपवास किसी को भी प्रभावित नहीं करते. चेहरे देखकर राजनेताओं का एनालिसिस हो जाता है. सोशल मीडिया के बाद तो सभी के कुकर्म जग जाहिर हो जाते हैं. सार्वजनिक जीवन में कुछ भी छुपाना अब संभव नहीं लगता है. लोगों के चेहरे बोलते हैं. मुंह से बोलने की कोई जरूरत नहीं पड़ती.
सियासत अगर बेटियों की भलाई करना चाहती है, तो उसे नकारात्मक और क्रिमिनल माइंडसेट से बचना चाहिए सफेद कपड़ों के पीछे, छिपे दाग को दबाना नहीं बल्कि उजागर करना चाहिए. महिलाओं को सशक्त करने के कदम उठाना चाहिए. सियासत में अक्सर देखा गया है, कि परिवार के बेटों को ही आगे बढ़ाया जाता है. बेटियों को तो मजबूरी में ही अवसर दिया जाता है.
उपवास की पात्रता राजनीतिक पदों से नहीं आती. नैतिक मूल्य और सेवा की ईमानदारी जीवन यात्रा हो, तो ही उपवास का श्रृंगार शोभा देता है. शौंकिया या सियासी उपवास तो उपहास का ही पर्यायवाची है.