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डूबते बैंक और सरकारी नीति 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Wed , 31 Oct

सार

मार्च 2020 में भारत के एक महत्वपूर्ण निजी बैंक, यस बैंक के निजी प्रबंधन की गलतियों (भ्रष्टाचार सहित) के कारण लगभग दिवालिया हो गया था..!

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विस्तार

याद कीजिए, मार्च 2020 में भारत के एक महत्वपूर्ण निजी बैंक, यस बैंक के निजी प्रबंधन की गलतियों (भ्रष्टाचार सहित) के कारण लगभग दिवालिया हो गया था। लोगों का विश्वास खोने के बाद बैंक से जमाकर्ताओं ने अपनी राशि वापस लेना शुरू कर दिया जिसके चलते बैंक को अपने लेन-देन को रोकना पड़ा। ऐसे में भारतीय स्टेट बैंक (एक सरकारी बैंक) ने 49 प्रतिशत शेयर खरीद कर उसे अपने हाथ में लिया जिससे यस बैंक में जमाकर्ताओं का विश्वास पुन: जम गया। उसके बाद यह बैंक पुन: उठ खड़ा हुआ और अपनी सामान्य बैंकिंग गतिविधियों में संलग्न हो गया। बाद में यस बैंक ने नए शेयर जारी कर और पूंजी जुटाई, और भारतीय स्टेट बैंक की हिस्सेदारी 24 प्रतिशत तक आ गई। 

स्टेट बैंक के अलावा 11 अन्य ऋणदाता संस्थाएं हैं जिनके पास यस बैंक के लगभग 9.74 प्रतिशत शेयर हैं। यस बैंक के 16.05 प्रतिशत शेयर अन्य दो निजी इक्विटी फंडों के पास हैं। समाचारपत्रों की हालिया रपटों के अनुसार जापान की मितसुभिषी यूएफजे फाइनेंसिएल ग्रुप नामक कंपनी को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के यस बैंक में शेयरों को बेचने की बात आगे बढ़ गई है। प्रस्तावित विदेशी निवेशक, यस बैंक के 51 प्रतिशत शेयर कब्जाना चाहते हैं ताकि उसके पास निर्णय का अधिकार आ जाए।

इसके लिए हालांकि वे पहले तो भारतीय रिजर्व बैंक की इस नियमानुसार शर्त को मानने के लिए तैयार नहीं थे कि उन्हें अगले 15 वर्षों में अपनी प्रमोटर शेयरहोल्डिंग को 26 प्रतिशत तक लाना होगा, लेकिन अब वे वो भी मान गए हैं। गौरतलब है कि इस बैंक को उबारने में भारतीय स्टेट बैंक ने 7520 करोड़ रुपए का पुन: पूंजीकरण किया था। लेकिन बैंक के पुनरुद्धार के बाद भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा लगाई गई पूंजी बढक़र अब 18000 करोड़ रुपए पहुंच चुकी है।

भारतीय रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप के बाद न केवल जमाकर्ताओं का पैसा डूबने से बच गया, बल्कि बैंकिंग व्यवस्था में लोगों का विश्वास पुन: स्थापित हुआ और इस प्रक्रिया में भारतीय स्टेट बैंक को भी 10000 करोड़ रुपए से अधिक का पूंजीगत लाभ हुआ। ऐसे में इस बात पर विचार करना जरूरी है कि क्या यस बैंक के 51 प्रतिशत शेयरों को विदेशी हाथों में सौंप कर, यानी यस बैंक जैसे महत्वपूर्ण बैंक को विदेशी हाथों में सौंपना उचित होगा? एलपीजी नीतियों के अंतर्गत कई सरकारी उद्यमों का निजीकरण किया गया। बैंकिंग क्षेत्र में चूंकि पहले से ही निजी भारतीय और विदेशी बैंक कार्यरत थे और वे बदस्तूर चलते रहे।

इसके साथ ही साथ कुछ सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ गैर वित्तीय संस्थानों को बैंकों में बदला गया और कुछ नए बैंकों को निजी क्षेत्र में काम करने के लाईसेंस प्रदान किए गए। इस दौरान भी बैंकों के सार्वजनिक क्षेत्रों के निजीकरण से सरकार बचती रही। गौरतलब है कि बैंकिंग किसी भी देश के लिए एक महत्वपूर्ण वित्तीय क्षेत्र है। यह बात सही है कि दुनिया में निजी और सरकारी दोनों प्रकार के बैंक पाए जाते हैं। 

हाल ही में कुछ चुनिंदा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एकीकरण कर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या को कुछ कम किया गया है। साथ ही साथ समय-समय पर सरकार सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों के निजीकरण की बात को दोहराती भी रही है। अभी तक किसी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक का निजीकरण नहीं किया गया है।

आज जब देश में इस विषय पर नीतिगत चर्चा के बिना एक महत्वपूर्ण बैंक, जो भारतीय स्टेट बैंक द्वारा अधिग्रहीत कर डूबने से बचाया गया था, को विदेशी हाथों में सौंपना यस बैंक के ग्राहकों, देश के वित्तीय क्षेत्र की स्थिरता और विकास के लिए उपयुक्त होगा। क्या यस बैंक को विदेशी हाथों में सौंपना, एकमात्र विकल्प है या उसके अलावा भी विकल्प हैं? यदि विकल्प हैं तो उन पर गंभीरता से विचार हुआ है या नहीं ?