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 AI से फेक प्रचार, स्तरहीन राजनीतिक प्रहार

सार

आतंकवाद और अलगाववाद के पीछे विदेशी हाथ तो भारत ने खूब झेला है.अब जब आतंकवाद नियंत्रण में है, देश की आंतरिक सुरक्षा मजबूत है, तब फेक वीडियोक्रेसी, डेमोक्रेसी के लिए खतरा बनी हुई है..!!

janmat

विस्तार

   वीडियोक्रेसी से बनाई गई पप्पू की इमेज अब आरक्षण खत्म करने के फेक वीडियो तक पहुंच गई है. आरक्षण के लाभार्थी को आरक्षण खत्म होने का डर नहीं है, बल्कि राजनीति के लाभार्थी आरक्षण ख़त्म होने का डर दिखा रहे हैं. विचारों की बातें अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन किसी के निर्विचार को भी फेक विचार के रूप में पेश करना युद्ध से भी ज्यादा ख़तरनाक होता है.

    लोकसभा चुनाव में एक तरफ दल से बड़े देश की आवाज़ आ रही है, तो दूसरी तरफ ऐसे प्रचार की फलां दल आया तो देश बिखर जाएगा. चुनाव में डर फैलाकर डेमोक्रेसी को हथियाने का विचार जिस डाल पर बैठे हैं, उसको ही काटने का विचार है. चुनाव में ऐसी-ऐसी बातें आ रही है, कि विकास के बुनियादी मुद्दे भटक गए हैं. हर दिन नए मुद्दे उठ जाते हैं. विचारधारा और नीतियों की बातें तो गायब हैं. अब तो AI  और फेक वीडियो का असर चुनाव में मापा जा रहा है. 

    केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का एक फेक वीडियो जिस पर केस दर्ज हो गया है. कुछ गिरफ्तारियां भी हो गई हैं. कांग्रेस के मुख्यमंत्री को भी पूछताछ के नोटिस दिए गए हैं. इस फेक वीडियो में ऐसा बताया गया है, कि अमित शाह ऐसा कह रहे हैं, कि उनकी सरकार बनी तो आरक्षण समाप्त कर दिया जाएगा. अमित शाह इस फेक वीडियो का असली वीडियो सामने लाते हैं. जिसमें वह कह रहे हैं, कि उनकी सरकार आएगी तो धार्मिक आधार पर कांग्रेस द्वारा दिए गए आरक्षण को समाप्त कर दिया जाएगा. 

     कांग्रेस की ओर से अभी तक इस पर कोई भी सफाई नहीं आई है,कि संयुक्त आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में धार्मिक आधार पर मुसलमानों को आरक्षण देने की क्या पहल की गई? प्रधानमंत्री और बीजेपी के सभी बड़े नेता मुस्लिम आरक्षण को संविधान विरुद्ध बताते हुए, इसे समाप्त करने की बात कर रहे हैं. धार्मिक आधार पर आरक्षण देने के असंवैधानिक कृत्य पर कांग्रेस चुप्पी साधे हुए है, तो आरक्षण समाप्त करने के फेक वीडियो को राजनीतिक लाभ के लिए हवा दे रही है.

    सोशल मीडिया में वीडियो और रील्स भरी पड़ी हैं. जिनकी सत्यता की कोई गारंटी नहीं है. लोकसभा के वर्तमान चुनाव सोशल मीडिया के प्रभाव के आंकलन का भी चुनाव बन गया है. भारतीय जनमानस बहुत संवेदनशील होता है. AI और डीप फेक टेक्नोलॉजी इतनी ज्यादा विकसित हो रही है, कि असली और नकली वीडियो में पहचान करना सामान्य आदमी के लिए कठिन हो गया है.

    असली भारतीयों की इसी कमजोरी को राजनीतिक क्लास के लिए मिसयूज़ किया जा रहा है. चुनाव में विकास के मुद्दे नदारत दिखाई पड़ते हैं. यहां तक की सरकारी पक्ष की ओर से भी चुनावी सभा में विकास की बातों से ज्यादा ऐसे मुद्दों के या तो प्रश्न उठाए जा रहे हैं या उत्तर दिए जा रहे हैं, जो जाति धर्म और संप्रदाय से जुड़े हुए हैं. 

     मुस्लिम तुष्टिकरण और हिंदू ध्रुवीकरण पर चुनाव को समेटने के लिए सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग-दुरुपयोग किया जा रहा है. बहुत सारे वीडियो और रील्स फिल्मी नायकों के दृश्यों का उपयोग कर नेताओं की इमेज को अविश्वसनीय और हल्का स्थापित कर रही है.

     नेताओं के सेक्स वीडियो भी उजागर हो रहे हैं. कर्नाटक में सांसद प्रत्याशी के सेक्स वीडियो की जांच चल रही है. अब तो कोरोना वैक्सीन कोवीशील्ड को लेकर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं. विदेशी अदालत के किसी संदर्भ में सोशल मीडिया पर ऐसा ट्रेंड किया जा रहा है, जैसे सरकार ने वैक्सीन लगाकर कोई बहुत बड़ा गुनाह किया है. दुनिया में आज तक कोई भी दवा कंपनी ऐसा दावा नहीं कर सकती है, कि उसके द्वारा निर्मित दवा का कोई साइड इफेक्ट नहीं हो सकता.

    ट्रेंडिंग के लिए फेक कंपनियां फेक यूजर्स और फेक वीडियो का सहारा लिया जा रहा है. यहां तक कि विदेशी हाथ भी इसके पीछे पूरी ताकत से कम कर रहे हैं. चुनाव वैचारिक आधार पर जनता के सामने अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को रखते हुए बहुमत प्राप्त करने का जरिया हैं. लेकिन यह चुनाव तो बिल्कुल भारत-पाकिस्तान, रूस-यूक्रेन और इजरायल-गाजा युद्ध जैसा सारी सीमाओं और मर्यादाओं को खंडित कर रहा है. चुनाव के सभी प्रमुख स्टेक होल्डर दल महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस नहीं करते. एक दूसरे पर आरोप लगाकर जनता को भरमाते और मुद्दों को भटकाते हैं. 

    अब तो फेक वीडियो के जरिए फेक ढंग से डेमोक्रेटिक पावर हड़पने की चालें चली जा रही हैं. किसी भी व्यवस्था को समाप्त करने का भय दिखाकर हासिल राजनीतिक समर्थन देश के लिए उपयुक्त नहीं हो सकता. कांग्रेस जो कभी SC, ST और OBC को अपना मजबूत वोट बैंक मानती थी. यह वोट बैंक कांग्रेस की ओर से खिसक गया है. बीजेपी ने इस वोट बैंक पर अपनी पकड़ बना ली है. कांग्रेस को ऐसा लगता है, कि आरक्षण खत्म करने का डर दिखाकर इस वोट बैंक को फिर से अपनी तरफ मोड़ा जा सकता है. 

     पॉलीटिकल अवेयरनेस बढ़ने के कारण आज किसी को भी भरमाना इतना आसान नहीं है. लोग अच्छी तरह से जानते हैं, कि आरक्षण की समय अवधि को दस साल बढ़ाने का काम पीएम नरेंद्र मोदी के इसी कार्यकाल के दौरान किया गया है. OBC को आरक्षण देने में कांग्रेस सरकारों की कभी भूमिका नहीं रही. SC, ST रिजर्वेशन भी संविधान के साथ ही लागू हुआ था. इसे भी देश में लागू करने के लिए कांग्रेस की नीतियां जिम्मेदार नहीं कहीं जा सकतीं. संविधान निर्माताओं की समानता की दूर दृष्टि इसका आधार रही है. कोई भी राजनीतिक दल बहुमत की इतनी बड़ी आबादी को मिलने वाले आरक्षण के लाभ को समाप्त करने की हिम्मत कभी भी नहीं कर सकता. 

    फेक आधार पर फेक वीडियो राजनीतिक प्रहार का मजबूत आधार कभी नहीं बन सकता. कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी यही रही है कि वह पिछले 10 वर्षों में बीजेपी सरकार के खिलाफ कोई भीऐसा मुद्दा जनमत के सामने स्थापित नहीं कर पाई जिसका उसे राजनीतिक लाभ मिलता. जिन भी मुद्दों पर कांग्रेस आगे बढ़ती है, वह बहुत तात्कालिक होते हैं और सीमित समय में उनकी उपयोगिता समाप्त हो जाती है.

    कई बार तो ऐसा देखा गया है, कि कांग्रेस के नेता ही अपने मुद्दों को थोड़े समय के बाद ही छोड़ देते हैं. फेक वीडियो नहीं बल्कि दल और नेता की विश्वसनीयता जनमत को प्रभावित करती है. फेक वीडियो तो दल और नेता की विश्वसनीयता को समाप्त करते हैं. 

    ट्रेंडिंग पॉलिटिक्स जिस तबके को प्रभावित करती है, वह तबका चुनाव में मतदान केंद्र तक जाकर वोट देने से भी परहेज करता है. केवल परसेप्शन वॉर में इस तरह की फेक वीडियो कुछ हद तक प्रभावकारी माने जा सकते हैं. लेकिन दूर दृष्टि में इसके भी उलटे प्रभाव होते हैं.

    पीएम मोदी और बीजेपी के मुकाबले के लिए जो राजनीतिक ज़रूरत थी वह तो कांग्रेस और उसका गठबंधन कर नहीं पाई. पीएम का कोई सर्वसम्मत चेहरा देश के सामने रखने में कांग्रेस फेल रही है. बिना चेहरे के, बिना इंजन की रेलगाड़ी जैसा चुनावी केबिन में कांग्रेस धक्के खा रही है. पर्सनल लॉ और UCC वैचारिक लड़ाई में भी कांग्रेस का पक्ष भटका हुआ है. हेट्रेट में फंसी कांग्रेस फेक वीडियो से चुनावी लड़ाई नहीं जीत सकती है.

     फेक का चुनावी इंटेक बढ़ता जा रहा है. सोशल मीडिया में AI  आधारित फेक वीडियो की भरमार है. इस बीच भारतीय मतदाता का मन अपने भविष्य के लिए बेकरार है. फेक शब्द और वीडियोक्रेसी से अनुभूति नहीं बदली जा सकती. अनुभूति वीडियो की नहीं खुद के अनुभव का जगत है. अनुभव ही फेक शब्दों और वीडियो का मुकाबला करते हैं. यही मुकाबला इस लोकसभा चुनाव में भी हो रहा है. चुनाव परिणाम फिर अनुभव द्वारा अनुभव के लिए अनुभव को ही जीत दिलाएंगे.  फेक राजनीतिक प्रहार हारेंगे  और मजबूत लोकतंत्र का अनुभव भारत को विश्व में नए मुकाम तक पहुंचाएगा.