देश के पॉलीटिकल पावर हाउस दिल्ली में राज्य के चुनाव शुरु हो गए हैं. आचार संहिता लगते ही पहले ही दिन पॉलिटिकल ड्रामेबाजी चरम पर पहुंच गई. राज्य के पीडब्ल्यूडी मंत्री और सांसद उनके विभाग के अंतर्गत नियंत्रित सरकारी बंगले के सामने धरने पर बैठ गए..!!
बीजेपी के नेता मुख्यमंत्री के नाम से आवंटित बंगले पर प्रदर्शन करने पहुंच गए. पोस्टर बाजी तो त्रिकोणीय हो गई है. भाजपा कांग्रेस और आप एक-दूसरे के खिलाफ़ नए-नए पोस्टर प्रयोग कर रहे हैं. चुनावी दिल्ली में गठबंधन की खिल्ली उड़ रही है. दिल्ली से बाहर तो कांग्रेस और आप का गठबंधन है, लेकिन दिल्ली में आमने-सामने लड़ाई का अनोखा बंधन है.
हर दल फ्री की पतंगबाजी उड़ा रहा है. कट्टर ईमानदार और कट्टर बेईमान की कबूतरबाजी हो रही है. दिल्ली चुनाव में देश के दूसरे राज्यों के चुनाव से ज्यादा आक्रामकता, कट्टरता, ड्रामेबाजी, मुद्दों की कबूतरबाजी और दोस्ती-दुश्मनी की सौदेबाजी देखी जा सकती है.
अरविंद केजरीवाल फिर से सीएम बनने के लिए थीम सोंग लॉन्च कर रहे हैं. देश की सुप्रीम अदालत के बेल ऑर्डर के मुताबिक तो केजरीवाल शायद ही सीएम बन पाएं. उन्हें इस पद से हटाया किसने था. उन्होंने स्वयं इस्तीफा दिया था. इसका कारण यह बना, कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने बेल ऑर्डर में यह शर्त लगा दी थी, कि केजरीवाल मुख्यमंत्री कार्यालय नहीं जा सकते, फाइलों पर हस्ताक्षर नहीं कर सकते, अधिकारियों की मीटिंग नहीं ले सकते, अगर मुख्यमंत्री यह सब नहीं करेगा, तो फिर मुख्यमंत्री रहने का ही क्या मतलब है.
जो केजरीवाल जेल में रहते हुए मुख्यमंत्री बने हुए थे, वह बेल ऑर्डर के बाद मुख्यमंत्री पद से इसीलिए हटे क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की शर्तें उन पर लागू हो गईं. यह शर्तें अभी भी लागू हैं. जनादेश में अगर मुख्यमंत्री बनने लायक उन्हें बहुमत भी मिल जाता है, तब भी बेल ऑर्डर की शर्तों में रियायत के बिना केजरीवाल सीएम नहीं बन सकते. अगर यह शर्तें लागू रहीं तो जनादेश में जीत के बाद भी केजरीवाल को किसी दूसरे को ही मुख्यमंत्री बनाना पड़ेगा. फिर से केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाने का उनका थीम सोंग बेल ऑर्डर की शर्तों के अधीन अप्रसांगिक है.
दिल्ली चुनाव में इंडिया गठबंधन और कांग्रेस की पूरी तरह से गिल्ली उखड़ गई है. इससे ज्यादा इस गठबंधन की खिल्ली क्या हो सकती है, कि सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी का समर्थन कर रहे हैं. ममता बनर्जी भी इसी का समर्थन कर रही हैं. यहां तक कि गठबंधन के सभी दल केजरीवाल का ही साथ दे रहे हैं. दूसरी तरफ कांग्रेस केजरीवाल को हराने के लिए सारे हथकंडे अपना रही है.
दिल्ली की चुनावी लड़ाई त्रिकोणीय हो गई है. वैसे तो यह लड़ाई भाजपा और आप के बीच ही मानी जा रही है. कांग्रेस के परफॉर्मेंस में सुधार बीजेपी की जीत और आम आदमी पार्टी की हार का कारण बन सकती है. दिल्ली में कांग्रेस को वोट कटवा पार्टी के रूप में ही देखा जा रहा है. दिल्ली में धराशाई हुआ इंडिया गठबंधन आने वाले वर्षों में राज्य के चुनाव में किसी भी राज्य में मजबूत खड़ा रह पाएगा, इसकी संभावना जीरो ही कही जाएगी.
पीएम मोदी आम आदमी पार्टी की सरकार को आपदा बता रहे हैं. केजरीवाल कट्टर ईमानदारी और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से नेता बने थे, जो उनका आधार था. उसी पर सबसे ज्यादा चोट हो रही है. केजरीवाल का मुख्यमंत्री के रूप में सरकारी बंगला भ्रष्टाचार के स्मारक के रूप में शीशमहल कहलाने लगा है. शीशमहल के जितने किस्से प्रचारित हो रहे हैं, उसने केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की विलासिता पूर्ण जीवनशैली को उजागर किया है.
मुख्यमंत्री के बंगलो पर सरकारी धन तो बेतहाशा खर्च किया ही जाता है, केजरीवाल का सरकारी बंगला इसलिए करप्शन का मुद्दा बन पा रहा है, क्योंकि उन्होंने अपनी सियासत का आधार यह बनाया था, कि वह सरकारी बंगला नहीं लेंगे. जो बंगला नहीं लेना चाहता था, उसके बंगले में जनधन से विलासिता के काम निश्चित रूप से सवाल खड़े करेंगे.
केजरीवाल राजनीति के चतुर खिलाड़ी लगते हैं. वह भी चुनाव जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. बीजेपी के साथ दो-दो हाथ करने में आप बिल्कुल पीछे नहीं है. कांग्रेस जरूर उसे तकलीफ पहुंचा रही है. कांग्रेस का अभी दिल्ली में कोई विधायक नहीं है. शून्य पर खड़ी कांग्रेस विधायकों की संख्या अगर बढ़ाती है तो यह नुकसान आम आदमी पार्टी को ही होगा. यही केजरीवाल के लिए सबसे बड़ी चिंता है.
आप और कांग्रेस के बीच में गठबंधन की दोस्ती ना केवल टूट चुकी है, बल्कि दुश्मनी का मौसम भी खुलकर दिखाई पड़ रहा है. मुस्लिम वोट बैंक विभाजन की कगार पर है. कांग्रेस और आप दोनों इस वोट बैंक पर नज़रें गड़ाए हुए हैं. इनमें विभाजन बीजेपी के लिए लाभ का सौदा साबित हो सकता है.
दिल्ली चुनाव कंप्लीट होने तक राजनीतिक तापमान और तनाव चरम पर रहेगा. आप की एनजीओ पोषित राजनीति और भाजपा विरोधियों का केजरीवाल को समर्थन तनाव को बढ़ाता रहेगा. चलते चुनाव और चुनाव परिणाम के बाद भी चुनाव प्रक्रिया को शक के दायरे में लाने के हर मुमकिन प्रयास किए जाएंगे.
पुरानी दिल्ली में अभी भी कबूतरबाजी की खेल संस्कृति है. कबूतर मास्टर या कबूतरबाज कबूतरों को उड़ाते हैं. कमीशन खाकर बेरोजगारों को अवैध तरीके से विदेश पहुंचाने के मामले में कबूतरबाजी शब्द का मुहावरेदार इस्तेमाल प्रचलन में है. सियासत में मुद्दों की कबूतरबाजी हो रही है. एक-दूसरे के मुद्दों को हवा में उड़ा दिया जाता है. धरातल पर कोई भी ईमानदारी से अपना वादा पूरा नहीं कर रहा.
राजनीति में नीति से ज्यादा अनीति दिखाई पड़ती है. राजनीति का लक्ष्य सेवा नहीं सत्ता रह गया है. राजनीति में ईमानदारी केवल बातों के लिए है. लक्ष्य घोटाला, बेईमानी, बिलासिता और पद लिप्सा रह गई है.
फ्री में सब कुछ देने के लिए हर दल जुटा हुआ है. आप महिलाओं को 2100 रुपए देने की घोषणा कर रही है, तो कांग्रेस 2500 देगी. बीजेपी का जब संकल्प पत्र आएगा तो वह भी इस मामले में पीछे नहीं रहना चाहेगी.
सब फ्री की पतंगबाजी उड़ा रहे हैं. एक दूसरे की पतंग काटने की कोशिश कर रहे हैं, फ्री-बाजी जनता के लिए नहीं है, बल्कि सत्ता के लिए साधन है. सत्ता के हर केजरीवाल को ‘काजरीलाल’ बनने में देर नहीं लगती. सत्ता का काजल उसको लग ही जाता है.
दिल्ली चुनाव भारत-पाकिस्तान युद्ध जैसा लड़ा जाएगा. वही थ्रिल रहेगी, वैसा ही थॉट रहेगा, जीते कोई भी हारना तो जनता को ही है. चाहे केजरीवाल रहें या कोई दूसरे लाल रहें दिल्ली में गंदी यमुना, खुले गटर, रैन बसेरों में जीवन की स्थितियों में कोई बदलाव ना आया है, ना आएगा. सियासत का चेहरा और चरित्र अब डराने लगा है. दिल्ली तो इस मामले में देश का दिल ही है.