एमपी में नवीन साल में विकास के लिए चार नए मिशन और पूर्व परिवहन आरक्षक से जुड़े छापों की खबरें साथ-साथ चल रही हैं. युवा, महिला, किसान व गरीबों के लिए राज्य सरकार मिशन प्रारंभ कर रही है.मंत्रालय में ई- फाइलिंग शुरू हो गई है..!!
नवीनता हमेशा स्वागत योग्य होती है. शासन के हर प्रयास परिणाम से आंके जाते हैं. प्रतीकों में शासन और परिणाम में करप्शन सरकार का ‘सीआर’ खराब करते हैं. सिस्टम को अगर सरकार का शरीर मान लिया जाए तो करप्शन उसकी चेतना कही जा सकती है. कोई भी सुधार, योजनाओं की नवीनता और अनूठापन तभी सार्थक हो सकता है, जब परिणाम सिस्टम हितेषी ना होकर जनहितेषी साबित हो.
एमपी में दशकों से लोक परिवहन नहीं है. राज्य परिवहन निगम बंद हो गया है. लोग, परिवहन के साधन के लिए तरस रहे हैं और परिवहन विभाग सोना उगल रहा है. यह भी ख़ुशी की बात है कि अब यह लोक परिवहन फिर से प्रारम्भ होने जा रहा है.
परिवहन विभाग के बैरियर भी मॉर्डनाईज किए गए थे. कंप्यूटराइज भी किए गए थे. पारदर्शिता और ईमानदारी की बातें भी की गई थीं, लेकिन परिणाम छापों से साबित हुआ है. अब तो परिवहन की डायरी में शामिल नामों पर सियासत हो रही है. एजेंसी द्वारा सिस्टम के करप्शन पर छापों का लंबा इतिहास है. सुधार के सारे प्रयासों की पोल छापों में जब्ती खोल देती है.
राज्य सरकार ने परिवहन चेकपोस्ट जब बंद की थी, तब बहुत वाहवाही हुई थी. सिस्टम ने मिशन करप्शन पर चलते हुए चेक पोस्ट की जगह चेक प्वाइंट बना लिए. अब ट्रांसपोर्ट कमिश्नर को पद से हटा दिया गया है, पद से हटाने से क्या सारे पाप धुल जाएंगे. सिस्टम की यही त्रासदी है, कि ज्यादा सा ज्यादा सज़ा ट्रांसफर होती है. नई जगह पर जाकर संबंधित अफसर फिर सिस्टम में पार्ट अदा करने लगता है.
युवाओं, महिलाओं, किसानों और गरीबों की बेहतरी के लिए अगर मिशन एप्रोच ही आवश्यक था तो अभी तक इस पर विचार क्यों नहीं किया गया. जब इन वर्गों के लिए बने सरकारी विभागों ने इतनी लंबी अवधि तक काम किया है. प्रदेश के गठन से अब तक इनके विकास पर खर्च राशि का आंकलन किया जाएगा तो आंखें फटी की फटी रह जाएंगी. इनके परिणाम यह निकले कि,सरकार को नए मिशन बनाने पड़ रहे हैं.
खेती को लाभ का धंधा बनाने और किसानों की आय दोगुनी करने के नारों के साथ किसान सम्मेलन, महा-सम्मेलन के नाम और पब्लिसिटी पर जितनी रकम खर्च की गई होगी उसके परिणाम तो नए मिशन के गठन के साथ ही पता चल जाते हैं. अगर वास्तव में परिणाम सार्थक होते तो आय दुगनी हो चुकी होती और आज इस लक्ष्य के लिए नए मिशन बनाने की कोई आवश्यकता नहीं होती.
मंत्रालय में ई-फाइलिंग शुरू हो गई है. सिस्टम चाहे ऑनलाइन हो या ऑफलाइन, उसको चलाने का दायित्व तो सिस्टम के इंसान के पास ही रहेगा. ई-फाइलिंग सिस्टम इन फाइलों पर कोई टिप्पणी तो नहीं लिख सकेगा.सिस्टम के मिशन करप्शन को ई-फाइलिंग कैसे रोकेगा. योजनाओं के नाम, विभागों के नाम बदलने से मिशन करप्शन तो नहीं बदल जाएगा?
प्रतीकों का शासन, शैली का स्वभाव बन गया है. पंच ज से शुरु गोकुल ग्राम, आओ बनाएं स्वर्णिम आत्मनिर्भर मध्य प्रदेश होते हुए, अब मध्य प्रदेश वृंदावन ग्राम के प्रतीक तक पहुंच गया है. चाहे योजनाओं के नाम हों, सड़कों के नाम हों, शहरों के नाम हों, सभी प्रतीकात्मक रखे जाते हैं.
राम वनगमन पथ और श्री कृष्ण पाथेय प्रतीकों के शासन का ही रास्ता है. शासन जनजातीय गौरव के प्रतीक तलाश लेते हैं. दलितों के प्रतीक गौरव खड़े किए जाते हैं. विचारधारा के महापुरुषों के नाम पर योजनाओं के प्रतीक खड़े किए जाते हैं. इस सब में सिस्टम के करप्शन की चेतना सतत प्रवाहित होती है.
जिन वर्गों के लिए मिशन बनाए जा रहे हैं, उन पर सरकार के विभाग बहुत पहले से काम कर रहे हैं. जब यह विभाग लक्ष्य हासिल नहीं कर पाए तो फिर मिशन यह लक्ष्य कैसे हासिल करेगा? मिशनों का संचालन भी उन्ही हाथों में होगा, जो हाथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विभागों का संचालन कर रहे हैं.
एजेंसियों के छापे और घोटाले की ख़बरें छोटे-बड़े रूप में आती रहती हैं. अब तो छापों में ही मिशन करप्शन की बातें होने लगी हैं. पूर्व परिवहन आरक्षक और उससे जुड़े लोगों के ठिकानों पर तीन एजेंसियों ने छापे मारे हैं. पहले, दूसरे और तीसरे क्रम में की गयी छापेमारी में, हर बार कुछ नया मिला है. नए मिलने का मतलब है कि, पुरानी छापेमारी में या तो कुछ छूट गया या छोड़ दिया गया.
सीसीटीवी के फुटेज सोने की गाड़ी का रूट बता रहें हैं. एक दूसरे एजेंसी की देखी और अनदेखी, मीडिया में उजागर हो रही है. जब मिशन करप्शन सिस्टम की चेतना बन गई हो तो फिर कोई भी सुधार या नयापन परिणाम तो वही लाएगा जो अभी निकलता दिखाई पड़ रहा है.
ऑनलाइन सिस्टम स्पीड तो बढ़ा सकता है. यहां तक कि अगर उसमें फीडिंग ईमानदारी से होगी तो रिजल्ट भी ईमानदारी से आएगा. फीडिंग तो जो हाथ करेंगे वह उनकी मर्जी पर ही निर्भर करेगा. अवसर की अन-उपलब्धता अगर ईमानदारी का कारण है, तो फिर ऑनलाइन या ऑफलाइन से क्या फर्क पड़ेगा ?
सरकारी सिस्टम को अपनी चेतना बदलनी पड़ेगी. अगर शासन लोक का लक्ष्य करप्शन की चेतना से मोक्ष हासिल कर परलोक सुधारने का है तो, फिर इस लोक को तो सुधारना संभव नहीं लगता. जब चेतना एक समान हो तो फिर उसमें बड़े या छोटे आदमी के हिसाब से कुछ भी अलग नहीं होता. पावर हाउस एक ही होता है, जहां से पूरा सिस्टम पावर प्राप्त करता है. करप्शन का चक्र घूमता रहता है. इस चक्र में भी पद और पावर के हिसाब से शोषण का चक्र चलता है.
अब तो ऐसा लगने लगा है कि, करप्शन के प्रति सिस्टम में संवेदनशीलता ही समाप्त हो गई है. अब तो कितनी बड़ी राशि और कितनी बड़ी मात्रा में ही सोना निकले, लोगों को विचलित नहीं करता. आम लोगों ने तो सिस्टम में करप्शन को स्वीकार कर लिया है.
यह पूरा चक्र काले धन से व्यवस्था को संचालित करता है. चुनाव में काला धन ट्रांसफर, प्रमोशन में काला धन, ठेकों में काला धन का उपयोग होता है तो, इसका जनरेशन सिस्टम से ही होता है.
नवीनता का स्वागत है लेकिन आज की नवीनता भविष्य में जो परिणाम देगी उस पर ही प्रयोग की सफलता कायम होगी. यक्ष ने संसार में सबसे बड़े आश्चर्य की बात पूछी थी तो युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि, ‘हर रोज आंखों के सामने कितने ही प्राणियों की मृत्यु हो जाती है, यह देखते हुए भी इंसान अमरता के सपने देखता है, यही महान आश्चर्य है’.
कभी सिस्टम का कोई यक्ष किसी धर्मराज से सवाल करेगा, तब शायद यही उत्तर आएगा कि, सब कुछ मिट्टी में मिल जाता है, सब मिट जाते हैं फिर भी करप्शन से कमाई की मानसिकता नहीं मिटती, यही सबसे बड़ा आश्चर्य है.