अजब-गजब मध्य प्रदेश में घटनाएं भी अजब-गजब होती हैं. दमोह में फर्जी डॉक्टर हार्ट के ऑपरेशन करता रहा, बीमार मरते रहे और सब कुछ आराम से चलता रहा..!!
भगवान का रूप माने जाने वाले डॉक्टर जब फर्जी हैं तो फिर बीमार अपने जीवन की रक्षा के लिए कहां अर्जी लगाएगा? फर्जी डॉक्टर पर मुकदमा दर्ज हो गया. गिरफ्तारी हो गई. इसका मतलब यह नहीं है कि राज्य में स्वास्थ्य की व्यवस्था दुरुस्त हो गई है.
यह एक ही गड़बड़ी थी, जो पकड़ में आ गई. मध्य प्रदेश तो फर्जी डॉक्टर की खदान कहा जाता है. मेडिकल प्रवेश परीक्षा से ही व्यापम कांड शुरू हुआ था. जो सिस्टम के फर्जीपन का वीभत्स स्वरूप था. किसी एक राज्य का नहीं, हर राज्य में सरकारें अलग होगी लेकिन सिस्टम के फर्जीपन में समानता दिखेगी.
साइबर सिस्टम प्रभावशील होने के बाद तो फ्रॉड की संभावनाएं अनंत हो गई हैं. फ्रॉड सरकारी पोर्टल बनाए जा रहे हैं. कोई ऐसा दिन नहीं होगा जहां आम इंसान साइबर फ्रॉड का शिकार नहीं हो रहा हो. फर्जी बैंक अकाउंट बनाकर बेचे जा रहे हैं. नेताओं के फर्जी पत्रों पर सुविधा बटोरी जा रही है. फर्जी अफसर तो अक्सर पकड़ में आते हैं लेकिन फर्जी अदालत भी लगाई जा रही थी.
फर्जी अदालत फैसला कर रही हैं और अपने को असली सिस्टम बताने वाले, उनका पालन कर रहें हैं. अभी तक ऐसे मामले तो नहीं आए हैं कि, कोई फर्जी मंत्री बन गया लेकिन सिस्टम का फर्जीपन ऐसा ही बढ़ता रहा तो फिर वह दिन भी देखा जा सकता है, जब सिस्टम का कंट्रोल फर्जी हाथों में पहुंच जाए.
देश में यह तो हो ही गया है कि, पति मुख्यमंत्री करप्शन में जेल चला जाता है तो बिना सिस्टम, पात्रता, योग्यता के पत्नी को मुख्यमंत्री की शपथ दिला दी जाती है. फर्जी डॉक्टर होना अपराध है, तो बिना योग्यता और क्षमता के संसदीय सिस्टम में सत्ता पर कब्जा भी इसी श्रेणी में माना जाएगा.
किसी व्यक्ति के फर्जी होने का अर्थ है कि वह जिसके लिए योग्य नहीं है, जिसकी उसे पात्रता नहीं है, क्षमता नहीं है, स्किल नहीं है, उस पद पर वह काम कर रहा है. अगर योग्यता, पात्रता, क्षमता और स्किल के पैमाने पर आँका जाएगा तो फिर तो सिस्टम की पूरी डफली ही सवालों के घेरे में आ जाएगी. इस आधार पर सिस्टम कितना असली और कितना नकली है, इस पर कभी कोई चर्चा नहीं होती.
जो सिस्टम, शासन चलाता है, उसमें कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका की भूमिका है. कार्यपालिका और न्यायपालिका तो योग्यता, पात्रता और शिक्षा के मापदंडों पर खड़ी है लेकिन इन सबसे ऊपर जो व्यवस्था होती है, उसके कोई तय मापदंड नहीं हैं. इसमें संख्या का अंक गणित होता है, बहुमत का बाजार होता है, बहुमत की जीत होती है.
एक डॉक्टर जिसमें योग्यता नहीं है, शिक्षा नहीं है जो फर्जी है वह अगर सात बेकसूर लोगों की जान ले सकता है तो किसी भी सिस्टम में अयोग्यता और अपात्रता सिस्टम में प्राण फूंकने की बजाय सिस्टम को मारने का ही काम करती है.
अगर दमोह के डॉक्टर के मामले पर ही सवाल किया जाए तो क्या राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था में ऐसा कोई चेक एंड बैलेंस नहीं है कि जो भी डॉक्टर इलाज कर रहे हैं उनकी योग्यता और पात्रता की नियमित जांच हो?
यहां तो ऐसी भी घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जहां फर्जी नियुक्तियों पर डॉक्टर सहित अनेक कर्मचारी लंबे समय तक सेवा में काम करते रहते हैं. अनुसूचित जाति और जनजाति के प्रमाण पत्र फर्जी बना कर इन वर्गों की सुविधाओं और आरक्षण तक लेकर शासकीय सेवा में आने वालों की तो बहुत बड़ी संख्या है.
इसकी जांच पड़ताल के लिए सरकार में एक सिस्टम बना हुआ है लेकिन एक बार सेवा में आ जाने के बाद फर्जी प्रमाण पत्र वाला व्यक्ति भी नौकरी से निकाला नहीं जा सकता. अगर कोई कदम उठाया भी जाता है तो फिर न्यायालय से स्थगन आ जाता है. इन सारे घटनाक्रमों का सार यही निकलता है कि, फर्जी व्यवस्था आकस्मिक नहीं है.
फर्जीपन एक सोचा समझा कमाई का जरिया होता है. ऐसा नहीं होता कि किसी सिस्टम में फर्जी व्यवस्था काम कर रही हो और उस पर किसी की नजर नहीं जाए. नजर जाती भी होगी तो हिस्सेदारी शुरू हो जाती है. जो फर्जी पकड़े भी जाते हैं, उजागर भी होते हैं, वह सिस्टम के अंदर ही राहत पाकर फिर से मैदान में कूद जाते हैं.
मध्य प्रदेश के लिए इससे बड़ी घटना क्या होगी कि, एक पूर्व परिवहन आरक्षक के यहां से करोड़ों रुपए जब्त होते हैं. पचास किलो से ज्यादा सोना पकड़ा जाता है लेकिन निर्धारित समय में जांच एजेंसी अदालत में चालान प्रस्तुत नहीं कर पाती है और आरोपियों को जमानत मिल जाती है. अगर सिस्टम ऐसा होता है तो फिर डॉक्टर के और इस तरह के फर्जीपन में क्या अंतर है?
इसकी कल्पना तो शायद भगवान भी नहीं कर सकता कि, जिस व्यक्ति के पास डॉक्टर की कोई शिक्षा नहीं है, कोई योग्यता नहीं है, वह छोटे-मोटे इलाज नहीं बल्कि हार्ट के ऑपरेशन करने का दुस्साहस करता है.अगर कोई बड़े से बड़े अस्पतालों में भी देर रात इमरजेंसी में पहुंचा है तो उसे स्वास्थ्य के सिस्टम और डॉक्टर की योग्यता पर जो अनुभव हुए होंगे उसे फर्जी डॉक्टर पकड़े जाने पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ होगा.
प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरों की सीटें एलॉट हो जाती हैं. एडमिशन हो जाते हैं. कॉलेज के मालिकों को फीस मिलती रहती है. पढ़ने वाला कभी आता ही नहीं और उसे डिग्री भी मिल जाती है. ऐसी घटनाएं कोरी कल्पना नहीं है बल्कि उनकी वास्तविकता कभी भी जाँची जा सकती है.
सिस्टम कालजयी है. यह हमेशा से चलता रहा है और चलता भी रहेगा. सिस्टम में फर्जीपन नहीं होगा तो फिर कमाई कहां से होगी? जब कमाई ही सिस्टम का सत्य बन जाएगा तो फिर असली नकली में अंतर करना मुश्किल होगा. सिस्टम के बाजार में खोटा सिक्का इतना हावी हो जाएगा कि, असली ढूंढना मुश्किल हो जाएगा.
मृत्यु तो सत्य है. चाहे फर्जी डॉक्टर ने मारा हो और चाहे विशेषज्ञ के हाथों के इलाज के बाद मौत मिली हो. मौत ही सत्य है, बाकी तो सब सत्य का आभास और सपना है. ऑपरेशन के बाद एक मरीज ने जब आंखें खोली तो यमराज उसके सामने थे. मरीज ने समझा डॉक्टर है. उसने कहा डॉक्टर साहब अब हम रोग मुक्त हो गए हैं, तो यमराज ने कहा, डॉक्टर तो धरती पर रह गया है, तुम तो हमारे लोक में आ गए हो.
‘कौन फर्जी, कितना फर्जी, सब सिस्टम की मर्जी’.