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इतनी मिली जीत, फिर भी धमकी भरा गीत

सार

महाराष्ट्र और झारखंड में आम चुनाव के साथ राज्यों में हो रहे लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव भी काफी अहम बने हुए हैं. दोनों राज्यों में बीजेपी और कांग्रेस के गठबंधन चुनाव लड़ रहे हैं तो उपचुनाव में गठबंधन की गांठे ढीली हो गई हैं. सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के व्यवहार का बदला ले लिया है..!!

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विस्तार

    यूपी में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को एक भी सीट नहीं दी. मध्य प्रदेश में भी सपा ने कांग्रेस से ही अर्जुन आर्य को पार्टी में शामिल कराकर चुनाव मैदान में उतार दिया है. दूसरा उपचुनाव एमपी के विजयपुर में हो रहा है. यह सीट कांग्रेस की ही रही है. कांग्रेस के ही नेता, बीजेपी के मंत्री रामनिवास रावत अब वहां से चुनाव लड़ रहे हैं. मध्य प्रदेश की दोनों सीटें राजनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण हैं.

    बीजेपी और कांग्रेस अपना सर्वस्व दांव पर लगा रही हैं. कांग्रेस जीत का माहौल बना देती है, लेकिन जीत से दूर रह जाती है. माहौल में बीजेपी डरी हुई दिखती है, लेकिन चुनाव जीत जाती है. ऐसा ही माहौल बुधनी और विजयपुर में बन रहा है.

    शिवराज सिंह चौहान झारखंड में बीजेपी के चुनाव प्रभारी हैं. एक राज्य जिताने की उनकी अहम जिम्मेदारी है. बुधनी  सीट का चुनाव भी शिवराज का ही चुनाव है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि यह उनकी परंपरागत सीट है. इस सीट से जीत कर 16 साल से अधिक समय तक  प्रदेश में मुख्यमंत्री रहे.

    जब-जब विदिशा से सांसद रहे तब भी इस क्षेत्र का वह सांसद के रूप में नेतृत्व करते रहे. सांसद के रूप में अभी भी बुधनी उनके संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है. रमाकांत भार्गव का लोकसभा टिकट काटकर शिवराज सिंह चौहान को बीजेपी ने सांसद बनाया और नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में कृषि मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर बिठाया है.

    बुधनी उपचुनाव में शिवराज सिंह चौहान के पुत्र कार्तिकेय चौहान भी टिकट के प्रबल दावेदार थे. टिकट तो नहीं मिला लेकिन पार्टी के प्रचार में जुड़े हुए हैं. अनुभव की कमी राजनीतिक जीवन में सबसे बड़ी कमी मानी जाती है.

   बुधनी की चुनावी सभा में कार्तिकेय चौहान का संबोधन चर्चा का केंद्र बना हुआ है. वह कह रहे हैं कि अगर गलती से भी ऊंच-नीच हो जाता है, तो किस मुंह से जाएंगे अपने नेताओं के पास काम कराने के लिए. अगर गलती से भी कांग्रेस जीती तो कृषि मंत्री से कोई एक ईंट भी नहीं लगवा पाएगा.  लोकतंत्र में इस प्रकार की भाषा स्वीकार्य नहीं हो सकती. 

   शिवराज सिंह चौहान तो ऐसे नेता हैं जो विपरीत  परिस्थितियों में धैर्य और मेहनत से अपनी पोजीशन बना लेते हैं. जब मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के पद से उन्हें हटाया गया था तब तो उन्हें विचलित हो जाना था. क्योंकि उनके नेतृत्व में ही मध्य प्रदेश में जीत हुई थी लेकिन उन्होंने अनुभवी और गंभीर नेता के रूप में आचरण किया और आज वे बीजेपी में और केंद्रीय सरकार में महत्वपूर्ण पोजीशन पर बैठे हुए हैं. कार्तिकेय चौहान वैसे ही आचरण कर रहे हैं जैसे एक अनुभवहीन अपरिपक्व नेता से अपेक्षा की जा सकती है.

    बुधनी विधानसभा क्षेत्र में अभी भी विकास की ईंट की दरकार बनी हुई है तो फिर विकास की बात करना ही बेमानी होगी. जिस विधानसभा क्षेत्र का नेतृत्व सोलह साल तक एक मुख्यमंत्री ने किया है, उस क्षेत्र में विकास का बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर, सड़क, बिजली पानी तो स्थापित ही होना चाहिए. शिक्षा स्वास्थ्य के मामले में तो ऐसा क्षेत्र एक उदाहरण होना चाहिए. 

    मध्य प्रदेश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जिन क्षेत्रों ने ऐसे जनप्रतिनिधियों को चुना जिन्होंने राज्य का मुख्यमंत्री के रूप में नेतृत्व किया है. वह सभी क्षेत्र विकास के वाट अभी भी जोह रहे हैं. छत्तीसगढ़ विभाजन के बाद जो पूर्व मुख्यमंत्री के क्षेत्र उस राज्य में चले गए उनको छोड़ दिया जाए तो मध्य प्रदेश में चुरहट, राधौगढ़, बुधनी ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं जहां से निर्वाचित जनप्रतिनिधियों ने लंबे समय तक राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में नेतृत्व किया है. 

    इन तीनों क्षेत्रों में विकास के हालात कमोवेश एक जैसे ही बने हुए हैं. इसे मध्य प्रदेश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि यहां की लीडरशिप में विकास के विजन की दृष्टि का अभाव दिखाई पड़ता है. सहकारी नेता सुभाष यादव ने अपने क्षेत्र में विकास के लिए जो दृष्टि दिखाई है, वह इन क्षेत्रों में दिखाई नहीं पड़ी है. अर्जुन सिंह, दिग्विजय सिंह और शिवराज सिंह चौहान यह तीनों नेता जनता में पॉपुलर लीडर रहे हैं. लेकिन अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास के मामले में नजरिया एक जैसा ही दिखाई पड़ता है.

    दूसरे राज्यों में पालिटिकल लीडरशिप तमाम कमजोरी के बाद भी निर्वाचन क्षेत्र में विकास के मामले में हमेशा सक्रियता और मजबूती के साथ खड़ी दिखाई पड़ती है. चाहे दक्षिण भारत के राज्य हैं या फिर महाराष्ट्र जैसे गठबंधन वाले प्रदेश. वहां के राजनीतिज्ञ  विकास के प्रति ज्यादा कमिटेड दिखाई पड़ते हैं. विकास के चरण चिन्ह इन राज्यों में देखे जा सकते हैं. 

   मध्य प्रदेश में तो शासन ऐसी प्रणाली से चलाया जाता रहा कि लोगों को निशुल्क एक व्यक्ति कनेक्शन दे दिया जाए, बैंक खातों में नगद पैसे दे दिए जाएं, सिंचाई पंपों को निशुल्क बिजली दे दी जाए. मध्य प्रदेश विकास के मामले में ऐसी मानसिकता का शिकार दिखाई पड़ रहा है कि लोगों को मदद करो, उनके मत प्राप्त करो लेकिन उन्हें आत्मनिर्भर और सक्षम बनाने की अधोसंरचना पर ध्यान केंद्रित नहीं करो.

    मध्य प्रदेश में राजनीतिक हालात भी अब विचारधारा के तो बचे नहीं हैं. सरकार का स्वरूप जब सार्वजनिक रूप से दिखाई पड़ता है, तो जो चेहरे फोटो फ्रेम में आते हैं उसमें विचारधारा की भिन्नता स्पष्टता  से दिखाई पड़ती है. रामनिवास रावत विजयपुर से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीते थे. लोकसभा चुनाव के दौरान वह बीजेपी में शामिल हुए, मंत्री बनाए गए और अब इस सीट से भाजपा के सिंबल पर चुनाव लड़ रहे हैं. 

    कमलनाथ ने भी पिछले चुनाव में ऐसा माहौल बनाया था कि कांग्रेस की सरकार तो आने ही वाली है. कांग्रेस तो इतने अति आत्मविश्वास में आ गई कि नई कैबिनेट का खाका भी तैयार करने लगी थी. अमरवाड़ा उपचुनाव कांग्रेस हार चुकी है. बुधनी और विजयपुर के उपचुनाव में भी माहौल ऐसे ही स्थापित किया जा रहा है कि जैसे कांग्रेस जीत की तरफ बढ़ रही है. कार्तिकेय का धमकी भरा भाषण कांग्रेस को जीत के लिए आश्वत होने में सहयोग दे रहा है. 

    कार्तिकेय चौहान अगर राजनीति की भाषा और आचरण अपने पिता सक्सेसफुल पॉलीटिशियन शिवराज सिंह चौहान से नही सीख पाए तो, फिर तो कुछ भी नहीं कहा जा सकता. राजनीतिक भाषा के प्रति उन्हें सजग होने की आवश्यकता है.

    उपचुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टी में भीतर घात हो रहा है. कांग्रेस में तो अर्जुन आर्य पार्टी छोड़ चुके हैं और सपा की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. आंतरिक विद्रोह बीजेपी में भी कम नहीं दिखाई पड़ रहा है. बुधनी विधानसभा सीट शिवराज सिंह चौहान की सीट है.

    चुनाव भले रमाकांत भार्गव लड़ रहे हो लेकिन यह जीत और हार,  शिवराज सिंह चौहान की ही होगी. बीजेपी और वर्तमान सरकार के मुख्यमंत्री की सेहत पर इन उपचुनाव परिणाम का जितना प्रभाव होगा उससे ज्यादा उसका प्रभाव शिवराज सिंह चौहान की सेहत पर होगा.