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सरकार सुविधा दे सकती है, बशर्ते आप भी...! 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Tue , 08 Sep

सार

वर्ष 2012-13 के बाद महंगाई के हिसाब से जिस आयकरदाता और मध्यम वर्ग को राहत नहीं मिली है, अब वित्तमंत्री नए बजट के माध्यम से आयकरदाता और मध्यम वर्ग की क्रयशक्ति बढ़ाकर मांग में वृद्धि करके अर्थव्यवस्था को गतिशील करने की रणनीति पर आगे बढ़ सकती हैं..!!

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विस्तार

23 जुलाई को जब आप ‘प्रतिदिन’ पढ़ रहे होंगे, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण केंद्रीय बजट 2024-25 को लेकर अंतिम क़वायद कर रही होंगी । वर्ष 2012-13 के बाद महंगाई के हिसाब से जिस आयकरदाता और मध्यम वर्ग को राहत नहीं मिली है, अब वित्तमंत्री नए बजट के माध्यम से आयकरदाता और मध्यम वर्ग की क्रयशक्ति बढ़ाकर मांग में वृद्धि करके अर्थव्यवस्था को गतिशील करने की रणनीति पर आगे बढ़ सकती हैं। 

इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि मध्यम वर्ग को राहत देने को लेकर विशेष रूप से कोरोना महामारी के बाद लगातार मांग तेज हुई है। सरकार ने विगत वर्षों में जहां गरीब लोगों के लिए ढेर सारी राहतों का ऐलान किया, वहीं कॉरपोरेट जगत पर भी सरकार ने ध्यान दिया। लेकिन राहत पाने के मद्देनजर सबसे अधिक टैक्स देने वाला मध्यम वर्ग पीछे छूट गया। 18वीं लोकसभा चुनाव के मतदान में मध्यम वर्ग की नाराजगी भी दिखाई दी है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक संबोधन में कहा है कि मध्यम वर्ग देश के विकास का चालक है और मध्यम वर्ग कैसे कुछ बचत बढ़ा सके तथा मध्यम वर्ग के लोगों की जिंदगी को कैसे आसान बनाया जा सके, इस परिप्रेक्ष्य में रणनीतिकपूर्वक आगे बढ़ा जाएगा। गौरतलब है कि इस पूर्ण बजट 2024-25 के समय वित्तमंत्री सीतारमण के पास आयकर संबंधी मजबूत परिदृश्य मौजूद है।

पिछले 10 वर्षों में आयकर रिटर्न भरने वाले आयकरदाताओं की संख्या और आयकर की प्राप्ति में छलांगे लगाकर वृद्धि हुई है। 2023-24 में आयकर रिटर्न रिकॉर्ड 8 करोड़ के स्तर को पार कर चुका है और पिछले 10 वर्षों में आयकर रिटर्न भरने वाले दोगुने से अधिक हुए हैं। आयकर विभाग के द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2013-14 में आयकर संग्रह करीब 2.38 लाख करोड़ रुपए था। यह फिर तेजी से बढ़ता गया। यह वर्ष 2019-20 में 10.5 लाख करोड़ रुपए हो गया। कोरोनाकाल के कारण यह वर्ष 2020-21 में घटकर 9.47 लाख करोड़ रुपए पर आ गया। यह वर्ष 2021-22 में 14.08 लाख करोड़ रुपए, वर्ष 2022-23 में 16.64 लाख करोड़ रुपए और वर्ष 2023-24 में 19.58 लाख करोड़ रुपए हो गया। 

ऐसे में वित्तमंत्री सीतारमण आयकर के नए और पुराने दोनों स्लैब की व्यवस्थाओं के तहत करदाताओं व मध्यम वर्ग को अभूतपूर्व राहतों से लाभान्वित कर सकती हैं। खासतौर से वेतनभोगी वर्ग को लाभान्वित करने के भी विशेष प्रावधान नए बजट में दिखाई दे सकते हैं। इसके तहत मानक कटौती (स्टैंडर्ड डिडक्शन) सीमा को 50000 रुपए से बढ़ाकर एक लाख रुपए तक किया जा सकता है। ज्ञातव्य है कि वर्ष 2018 में मानक कटौती की सीमा 40 हजार रुपए थी और वर्ष 2019 में इसे बढ़ाकर 50 हजार रुपए किया गया था। नए बजट के तहत आयकर से संबंधित विभिन्न टैक्स छूटों में वृद्धि की जा सकती है। मौजूदा समय में धारा 80 सी के तहत 1.50 लाख रुपए की छूट मिलती है। इसके तहत ईपीएफ, पीपीएफ, एनएससी, जीवन बीमा, बच्चों की ट्यूशन फीस और होम लोन का मूलधन भुगतान भी शामिल है।

मकानों की बढ़ती हुई कीमत को देखते हुए धारा 80 सी के तहत 2.5 लाख से तीन लाख की छूट की सम्भावना है। इसी तरह सरकार के द्वारा इनकम टैक्स एक्ट की धारा 80 डी के तहत कर कटौती की सीमा को बढ़ा सकती है। ऐसे में सरकार के द्वारा 80 डी के तहत हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम पर टैक्स छूट को बढ़ा सकती है ताकि टैक्पेयर्स हेल्थ इंश्योरेंस को लेकर प्रेरित हों। 80 डी में कर छूट सीमा को बढ़ाने के साथ-साथ वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष सीमा बढ़ाई जाने से लोगों को स्वास्थ्य बीमा कराने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। सार्वजनिक भविष्य निधि (पीपीएफ) में योगदान की वार्षिक सीमा को मौजूदा 1.5 लाख रुपए से बढ़ाकर 3 लाख रुपए किया जा सकता है। नि:संदेह देश में कर सुधारों से आयकर के संग्रहण में आशातीत वृद्धि हुई है। 

जहां वर्ष 2024-25 के बजट से वित्तमंत्री आयकर राहत संबंधी उपहार सौंप सकती हैं, वहीं वे बजट में आयकर के दायरे का विस्तार करने की नई रणनीति का ऐलान कर सकती हैं। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि बड़ी संख्या में उद्योग-कारोबार सेक्टर में कार्यरत रहते हुए कमाई करने वाले, महंगी आरामदायक व विलासिता की वस्तुओं का उपयोग करने वाले, पर्यटन के लिए विदेश यात्राएं करने वालों में से बड़ी संख्या में लोग या तो आयकर न देने का प्रयास करते हैं या फिर बहुत कम आयकर देते हैं। ऊंची कमाई करके भी बड़ी संख्या में लोग आयकर नहीं देना चाहते। वर्ष 2023-24 में देश के 140 करोड़ से अधिक लोगों में से सिर्फ 2.79 करोड़ लोगों ने ही आयकर दिया है। यानी देश की आबादी के 1.97 फीसदी लोगों ने ही आयकर दिया है। ऐसे में देश में आयकर संग्रहण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आकार की तुलना में महज 11.7 फीसदी ही है, जबकि यह जर्मनी में 38 फीसदी, जापान में 31 फीसदी, ब्रिटेन में 25 फीसदी, अमेरिका में 25 फीसदी और चीन में 18 फीसदी है। स्थिति यह है कि अमेरिका की 60 फीसदी और ब्रिटेन की 55 फीसदी आबादी आयकर चुकाती है।