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सरकार, यह तो आपकी नाकामी है 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Wed , 16 Oct

सार

हिंदू देवी-देवता की प्रतिमा की विसर्जन या शोभा-यात्रा निकलती है, तो वह नफरत, अराजकता, वैमनस्य और हिंसा में तबदील करने की कोशिश हो जाती है..!!

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विस्तार

भारत में एक अजीब परिपाटी बन रही है जब भी हिंदू देवी-देवता की प्रतिमा की विसर्जन या शोभा-यात्रा निकलती है, तो वह नफरत, अराजकता, वैमनस्य और हिंसा में तबदील करने की कोशिश हो जाती है? कई बार हत्याएं भी हो जाती हैं। यह सिलसिला लगातार जारी है। दूसरे किसी मजहबी जुलूस या मौका हो, तो उस पर कोई  प्रहार नहीं करता। उसमें रोड़ा नहीं अटकाता। अजान या प्रेयर पर भी कोई सांप्रदायिक आपत्ति नहीं जताई गई है। शोभा-यात्रा निकालने की अपनी शोभा है। उस पर क्या आपत्ति होनी चाहिए? 

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और धार्मिक आजादी का मौलिक अधिकार भी हमें दिया गया है। फिर हिंसा और हत्याओं की क्या वजह हो सकती हैं? कई बार यह सवाल उठ चुके हैं कि अचानक एक भीड़ कहां से उमड़ आती है? घरों और मस्जिद की छतों से पथराव कैसे होने लगता है? ये छोटे-बड़े पत्थर कहां से, किस तरह एकत्र किए जाते हैं? कुछ शहरों, कस्बों में अचानक तलवारें भी चमकने लगती हैं। तलवारें, डंडे और हथियार कहां से आते हैं? कौन उनकी सप्लाई करता है? क्या पत्थरबाजी, दंगे, खून-खराबे की कोई पूर्व नियोजित साजिश तैयार की जाती है? तो साजिशकार कौन हैं? 

सिर्फ उप्र के बहराइच में ही सांप्रदायिक हिंसा, आगजनी, तोड़-फोड़ नहीं हुई है। बहराइच को छावनी में तबदील करना पड़ा। करीब 30 संदिग्ध लोगों को हिरासत में लिया गया और 10 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए गए। उप्र के कई इलाकों में सांप्रदायिक माहौल बिगड़ता रहा है। फिलहाल बहराइच जैसे हालात तेलंगाना, कर्नाटक, झारखंड और पश्चिम बंगाल आदि राज्यों के शहरों और कस्बों में भी पैदा किए गए हैं। सांप्रदायिक हिंसा, दंगे अपने आप ही नहीं भडक़ते, उन्हें सुलगाया और फैलाया जाता है। भारत में दंगों के काले इतिहास मौजूद हैं। दंगे औसतन सभी राज्यों में होते रहे हैं। उनके असंख्य उदाहरण भी मौजूद हैं।

सरकार किसी भी दल की रही हो! संविधान के किस अनुच्छेद में यह उल्लेख है कि अमुक इलाका अमुक क़ौम का है? ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। जिन मोहल्लों में वर्ग विशेष की आबादी रहती है, प्रशासन उन्हें ‘संवेदनशील’ घोषित करता है, जबकि अन्य क्षेत्रों के संदर्भ में ऐसा नहीं है। वर्ग विशेष की संवेदनशीलता के आधार पर नाजुक इलाके क्यों हैं? 

दरअसल देश को इलाकों और मोहल्लों में बांटा नहीं जा सकता। इस बार तो आपत्ति हुई कि शोभा-यात्रा अमुक धर्म स्थल के सामने से क्यों गुजरी? क्या यह कानूनन अपराध है या कोई प्रतिबंध लगा रखा है? किसी की छत से ‘हरा झंडा’ उतारा गया और उसकी जगह ‘भगवा झंडा’ लहराया गया, यह भी अनैतिक हरकत है। इसका कोई औचित्य भी नहीं है। यह घोर सांप्रदायिक है। अवैध कब्जे की एक हरकत है। यदि ऐसी हरकत कर भी दी गई, तो गोली मार कर एक इनसानी हत्या करने की नौबत क्यों आई? 

जिस नौजवान को मार दिया गया, उसकी शादी मात्र दो माह पहले ही हुई थी। किसी औरत को इस कदर विधवा कर देना क्या कोई ‘मजहबी प्रावधान’ है? जाहिर है कि अलग-अलग समुदायों के लोगों के भीतर नफरत और उन्माद भरे हैं। दूसरी तरफ, यदि शोभा-यात्रा के दौरान उग्रता, हुड़दंग, अभद्र शोर, भडक़ाऊ नारेबाजी की जाती है, तो वह धार्मिक यात्रा भी बेमानी है।

देश के विभिन्न राज्यों के शहरों में जो नफरती टकराव हुए, वे वाकई अपराध हैं, लेकिन क्या दंगाई भीड़ को कभी सजा दी गई है? कहा जा रहा है कि बीते चार महीने के दौरान ही देश का माहौल बदल गया और आदमी दूसरे को मरने-काटने पर आमादा है। इसका बुनियादी कारण क्या है? चार महीने में देश के सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक ढांचे में ऐसा कौनसा बदलाव आया है कि आदमी  हत्या पर उतारू हो गया  है। 

भारत तो अपनी सहिष्णुता, सौहार्द, समभाव के लिए विश्व विख्यात रहा है। यदि ऐसे ही सांप्रदायिक टकराव जारी रहेंगे, तो देश की छवि, प्रतिष्ठा कलंकित होगी। यदि शोभा-यात्रा अथवा विसर्जन के दौरान सांप्रदायिक हिंसा होने लगी, तो सरकार, प्रशासन और पुलिस की बुनियादी जिम्मेदारी है। उनकी नाकामी भी है।