एनसीआरबी के रिकॉर्ड के मुताबिक 2021 की तुलना में 2022 में महिलाओं पर अपराध में चार प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
भारत की संस्कृति का मूल आधार नारी सम्मान कहीं खोता जा रहा है। हाल ही में सामने आए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि महिला सुरक्षा के मोर्चे पर देश के हालात बेहद खराब हैं। एनसीआरबी के रिकॉर्ड के मुताबिक 2021 की तुलना में 2022 में महिलाओं पर अपराध में चार प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
कहने को यह बढ़ोतरी मामूली लग सकती है,लेकिन इसी अवधि में संज्ञेय अपराधों में आई 4.5 प्रतिशत की कमी के बरअक्स देखें तो यह अच्छी खासी वृद्धि है। वर्ष 2022 में कुल 4,45,256 मामले दर्ज किए गए, यानी हर घंटे 51 प्राथमिकी दर्ज की गईं। इसके बावजूद यह चौंकाने वाला आंकड़ा शायद काफी हद तक सीमित तस्वीर पेश करता है और केवल उन्हीं अपराधों के बारे में बताता है जिन्हें दर्ज किया गया।
इस सर्व मान्य तथ्य को हम सभी जानते हैं कि महिलाएं अपने विरुद्ध होने वाले अपराधों की जानकारी देने के लिए सामने नहीं आतीं। इसकी कई वजह हैं जिनमें सामाजिक शोषण से लेकर व्यक्तिगत खतरा, हठधर्मिता और पुलिस तथा न्यायपालिका की उदासीनता तक शामिल हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि संकट कहीं अधिक गंभीर है।
महिलाओं के लिए असुरक्षित माहौल ही उन्हें श्रम शक्ति में शामिल होने से रोकता है। यह बात भी देश की कमजोर श्रम शक्ति भागीदारी दर के लिए जिम्मेदार है। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि समस्या की शुरुआत भारतीय परिवारों में ही होती है जहां पति या रिश्तेदारों की क्रूरता 31.4 प्रतिशत मामलों की प्राथमिक वजह है।हालांकि यह विशिष्ट अपराध के मामले में दहेज विरोधी कानूनों को सख्त बनाने की तत्काल आवश्यकता है लेकिन इसके साथ ही यह महिलाओं को वस्तु समझने के सामाजिक रूढ़िवादी दृष्टिकोण को भी दर्शाता है।
मोटामोटी अर्थ यह है कि ऐसे रवैये में पुरुष नौकरी या करियर के मामले में परिवार की महिलाओं की वित्तीय या सामाजिक स्वतंत्रता को प्रोत्साहित करने की प्रवृत्ति नहीं रखते। यह पुरुषवादी मानसिकता कई स्तरों पर प्रभाव उत्पन्न कर सकती है: यह स्वत: ही कार्यस्थल तक पहुंच जाता है और महिला कर्मचारियों के करियर को प्रभावित करता है।
इसके साथ ही महिलाओं को घर तक सीमित रखना भी सार्वजनिक माहौल को बहुत हद तक असुरक्षित रखने वाला है। महिलाओं पर अपराधों में 26 प्रतिशत बलात्कार और हमलों के हैं। इसके अलावा कन्याओं के खिलाफ मध्ययुगीन सामाजिक प्राथमिकताओं के चलते देश के कई हिस्सों में महिला-पुरुष अनुपात बहुत बुरी तरह बिगड़ गया है। यही कारण है कि अपहरण करके महिलाओं को लाया जाता है ताकि उन्हें पत्नी बनाया जा सके और बच्चे पैदा किए जा सकें। इस श्रेणी का अपहरण महिलाओं के खिलाफ अपराध में तीसरे क्रम पर है।
एक अन्य अहम बिंदु यह है कि महिलाओं पर सबसे अधिक अपराध अपेक्षाकृत औद्योगिक राज्यों मसलन महाराष्ट्र और राजस्थान में हो रहे हैं या ऐसे राज्यों में जिन्हें खुद को आर्थिक शक्ति के रूप में बदलने की आवश्यकता है, मसलन पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश। इसमें बाद वाले राज्यों में महिलाओं पर अपराध के 65,000 मामले पंजीकृत हैं।
यह दुख और शर्म की बात है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में महिलाओं पर अपराध की दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। केंद्र सरकार को इस बात पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि वहां का पुलिस बल सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन आता है। सार्वजनिक स्थानों पर महिला सुरक्षा के मामले में दिल्ली की कमजोर प्रतिष्ठा को याद करने के लिए 2012 में एक पैरामेडिक छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना काफी है।
इसके चलते कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां महिला कर्मियों की नियुक्ति नहीं करतीं। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि हमारा देश अपनी आधी आबादी की तरक्की की गारंटी नहीं दे पा रहा है। यह एक अंतर्निहित सामाजिक संकट का संकेत है जो राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा वाले हमारे देश को प्रगतिशील समाजों की सूची में पीछे धकेलता है।