वक्त बदला लेकिन कांग्रेस नहीं बदली. कभी युवा पीढ़ी को दरकिनार कर बुजुर्ग नेतृत्व को कमांड देने वाले कांग्रेस हाईकमान ने अब पीढ़ी परिवर्तन के नाम पर एकतरफा बिना सोचविचार के वरिष्ठ नेताओं को किनारे करते हुए युवा नेतृत्व के हाथ में पार्टी दे दी. कभी युवा नेताओं पर कमलनाथ भारी पड़ रहे थे और अब कमलनाथ पर जीतू पटवारी भारी साबित हो गए हैं.
मध्यप्रदेश में कांग्रेस हारी तो कमलनाथ का कांग्रेस में भविष्य डूब गया लेकिन जीतू पटवारी अपना विधानसभा चुनाव हार कर भी कांग्रेस अध्यक्ष पद जीत गए. कांग्रेस हाकमान पहले भी वही था, आज भी वही है. पहले का निर्णय भी इसका था और आज का निर्णय भी उसी का है. दोनों निर्णय का लक्ष्य तो बदलाव का था लेकिन अप्रोच अहंकारी थी. जब निर्णय का अप्रोच अहंकार से भरा होगा तो फिर इंप्लीमेंटेशन में तो यही एटीट्यूड ही दिखाई पड़ेगा.
मध्यप्रदेश में कांग्रेस की पराजय अहंकार, तानाशाही और कार्यकर्ताओं को दरकिनार करने के कारण हुई है. कांग्रेस पार्टी नेतृत्व में कितना भी बदलाव कर ले लेकिन जब तक संगठन की कार्यपद्धति में सामूहिकता का ईमानदारी से पालन नहीं होगा तब तक पार्टी के भविष्य पर सवाल खड़े होते रहेंगे.
जीतू पटवारी और उमंग सिंगार को संगठन और विधायक दल की कमान सौंपी गई है. इन दोनों नेताओं को संगठन और वरिष्ठ नेताओं की कार्य प्रणाली से समस्या थी. मध्यप्रदेश में कमलनाथ के जाने के बाद कांग्रेस उनकी कार्यप्रणाली की समस्या से तो निजात पा सकती है लेकिन कांग्रेस के संगठन का डीएनए बदलाव के इस निर्णय में भी दिखाई पड़ रहा है. कई वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा की गई है जिन चेहरों पर भरोसा जताया गया है उन पर कई तरह के सवाल उछलते रहे हैं.
बदलाव हमेशा अच्छा होता है. नया नेतृत्व हमेशा स्वागतयोग्य होता है. जब भी कोई निर्णय होता है तब उसका विश्लेषण इस आधार पर होता है कि निर्णय के पीछे हाईकमान ने किस सोच और चिंतन के आधार पर निष्कर्ष निकाले हैं. यह दोनों नेता ऊर्जावान हैं, सक्रिय हैं. कांग्रेस के सामने युवा ऊर्जावान और सक्रिय नेताओं के असफल होने का सबसे बड़ा उदाहरण राहुल गांधी स्वयं हैं. उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. कांग्रेस लगातार राजनीतिक चुनौतियों में असफल होती ही दिखाई पड़ी. अब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष संभवत सबसे बुजुर्ग नेता हैं.
मध्यप्रदेश में नेतृत्व बदलाव का जो फैसला हुआ है उसमें गांधी परिवार का रोल साफ देखा जा रहा है. मध्यप्रदेश में राजनीतिक क्षेत्र में यह स्पष्ट धारणा लंबे समय से बनी हुई है कि यह दोनों युवा नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के करीबी रहे हैं. चुनाव में पराजय के कारण भले ही कमलनाथ को अपमानजनक परिस्थितियों में विदा किया गया हो लेकिन राज्य के राजनीतिक हालातों को कमलनाथविहीन करने में दोनों नेताओं को लंबा वक्त लगेगा. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को लेकर भी ऐसी ही राजनीतिक चर्चाएं हैं कि उन्हें भी मुख्य भूमिका से विश्राम दिया गया है. सियासत में हमेशा वही चेहरे सफल होते हैं जिन पर कोई विवाद नहीं होते हैं.
ऐसा माना जा रहा है कि जीतू पटवारी अध्यक्ष पद संभालने के बाद कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर विभिन्न अंचलों के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करेंगे. हालांकि, जीतू पटवारी और उमंग सिंगार दोनों के मालवा अंचल से होने पर भी सवाल उठ रहे हैं. पार्टी के युवा नेता जयवर्धन सिंह को भी कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जा सकता है. लीडरशिप और पर्सनालिटी के नजरिए से अगर देखा जाए तो जयवर्धन सिंह का व्यक्तित्व आकर्षक और चमकदार है.
हाईकमान द्वारा नामित नेतृत्व का पार्टी और विधायक दल में बहुमत का समर्थन शायद तौला नहीं गया है. हाईकमान द्वारा निर्णय को थोपा गया है. कमलनाथ के अध्यक्ष के कार्यकाल में पार्टी का परफॉर्मेंस जिस स्तर पर पहुंच गया है उसके पीछे भी निर्णय को एकतरफा लेने और थोपने की प्रवृत्ति काम कर रही थी. ऐसी प्रवृत्ति संगठन के लिए लाभप्रद नहीं होती है.
मध्यप्रदेश के नए नेतृत्व को राहुल गांधी और कांग्रेस हाईकमान का भले ही संपूर्ण समर्थन हो लेकिन दोनों नेताओं को जमीन पर अपना नेतृत्व साबित करना होगा. जिस तरह तेज और डिजिटल पॉलिटिक्स बढ़ती जा रही है उसमें केडर मैनेजमेंट के साथ ही पार्टी के लिए फंड मैनेजमेंट भी महत्वपूर्ण पक्ष होता है. कमलनाथ के साथ यह भी माना जा रहा था कि उनका बीजेपी सरकार और नेतृत्व के साथ मिला-जुला राजनीतिक गणित चल रहा था.
विपक्षी दल के सामने सबसे बड़ी समस्या यही रहती है कि जनहित के मुद्दों पर जमीन पर संघर्ष किया जाए. अक्सर ऐसा देखा गया है कि विपक्षी राजनीति सरकार के साथ एडजस्टमेंट करके आगे बढ़ने लगती है. ऐसी परिस्थितियां दूरगामी रूप से पार्टी के लिए हानिकारक साबित होती हैं.
मध्यप्रदेश में कांग्रेस आलाकमान ने कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को भले ही अलग-थलग करने के संदेश और संकेत स्पष्ट कर दिए हों लेकिन वास्तविक रूप से जमीन पर ऐसा करना फिलहाल संभव नहीं दिखाई पड़ रहा है. इन दोनों नेताओं की जड़ें मध्यप्रदेश की राजनीति में दूर-दूर तक फैली हुई हैं. उनको अलग-थलग करके पार्टी बहुत लंबी दूरी तय नहीं कर पाएगी. इन दोनों नेताओं की जड़ों का इस्तेमाल कर कांग्रेस अपनी नई शाखाओं को मज़बूत कर सकती है.
कांग्रेस के नए नेतृत्व को बीजेपी के मजबूत संगठन और नेतृत्व का मुकाबला करना है. बिना वरिष्ठ नेताओं के समन्वय और सहयोग के हो हल्ला और मीडिया अटेंशन भले पाया जा सके लेकिन पार्टी की जड़ों को मजबूत करना संभव नहीं होगा. कांग्रेस के नवनियुक्त युवा नेतृत्व के सामने सबसे पहली चुनौती लोकसभा चुनाव की होगी. यद्यपि लोकसभा के चुनाव कांग्रेस के लिए बहुत आशा भरे नहीं होंगे. लोकसभा में लगभग यह बात जनमत में गहरा चुकी है कि तीसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ देश में मोदी सरकार बनेगी. कहा यह भी जाने लगा है कि लोकसभा चुनाव में मोदी मैजिक का मुकाबला करना कांग्रेस के लिए नामुमकिन होगा.
कांग्रेस के राज्य के नए नेतृत्व को पांच साल तक संघर्ष की स्थिति में रहना होगा. इसके लिए जनता के मुद्दों को चिन्हित करना, उसके लिए सतत संघर्ष करना होगा. अब सियासत सुविधा से आगे निकलकर संघर्ष की चौखट पर पहुंच गई है. जो पार्टी और नेता केवल सुविधा को राजनीति का लक्ष्य बनाएंगे उनको तो भविष्य में निराश होना निश्चित है.
मध्यप्रदेश में कांग्रेस का नेतृत्व तो बदल गया लेकिन इस बदलाव के साथ ही कार्यपद्धति में बदलाव की लोगों को अपेक्षा रहेगी. हाईकमान का इन नियुक्तियों में जो एटीट्यूड दिखाई पड़ रहा है वह तो उसी एटीट्यूड से मेल खा रहा है जिस पर कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस चला रहे थे. जब हाईकमान ने नियुक्तियों में ऐसा एटीट्यूड अपनाया है तो फिर उससे उत्पन्न नेतृत्व भी निश्चित रूप से हाईकमान की लाइन का ही पालन करेंगे. अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस में एकजुटता की बजाय बिखराव की आशंका ज्यादा बढ़ेगी.
लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष जनता की भलाई के लिए जरूरी है. अभी तक तो कांग्रेस सकारात्मक विपक्ष की भूमिका भी नहीं निभा सकी, तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष जब विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए थे तब तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं विधायक कमलनाथ सदन से ही नदारद थे. विधायक दल और पार्टी के बीच में समन्वय का अभाव देखा जा रहा था. चुनाव के समय जिस तरह की राजनीतिक परिस्थितियां देखी गई थीं उसमें भी पार्टी में इगो की टकराहट आम बात थी.
कांग्रेस के युवा और नए नेतृत्व को अपनी लीडरशिप साबित करना होगी. कार्यकर्ता और विधायक के रूप में एक विधानसभा क्षेत्र का प्रबंधन और राज्य स्तर पर पार्टी और विधायक दल का मैनेजमेंट अलग-अलग है. जीतू पटवारी और उमंग सिंगार कांग्रेस के भविष्य हैं. कांग्रेस को उसके भविष्य के लिए उम्मीदों भरी मंगल कामनाएं.