• India
  • Sat , Feb , 22 , 2025
  • Last Update 10:50:AM
  • 29℃ Bhopal, India

संन्यास की उम्र में कामना का हिमालय

सार

एमपी की राजनीति संन्यास की उम्र में कल्पना और कामना का हिमालय खड़ा कर रही है. कुछ लोगों की लिप्सा और लालसा राजनीतिक गंदगी के स्तर पर पहुंचती दिखाई पड़ रही है. भोपाल की सड़कों पर राजनीतिक चेहरे के साथ हैवान के पोस्टर लगाए जा रहे हैं. नई पीढ़ी के लिए सब कुछ छोड़ कर खुद में झांकने और जीवन के सत्य को समझने का जब समय हो तब राजनीति के कीचड़ में पहलवान बनने का दिखावा राज्य को नहीं खुद को धोखे में रखने जैसी बात है..!

janmat

विस्तार

यह बात किसी नेता की नहीं बल्कि बात राजनीति में ताजगी शुद्धता और राजनीति के हिमालय पर पहुंच चुके लोगों में अनुभव से ना सीखने की ऐतिहासिक भूल के कारण राजनीति के साथ खुद को नुकसान पहुंचाने की प्रवृति की है.

कच्चे फल को नहीं तोड़ना चाहिए. पका फल अपने आप गिर जाता है. अस्तित्व हमें सिखाता है कि जब पका फल गिरता है तो ना फल को कष्ट होता है और ना वृक्ष को. राजनीति शायद अस्तित्व के विधान को भी बदलने पर आमादा होती है. झुके कंधे और डगमगाते कदम भी लिप्सा और लालसा पर भारी पड़ते हैं. जो लोग दशकों तक सांसद-विधायक, मंत्री-मुख्यमंत्री रहे हैं, वह आज भी उन्हीं पदों की कल्पना और कामना से अगर ऊपर नहीं उठ सके हैं तो इसका मतलब है कि जीवन के अनुभवों से उन्होंने कुछ भी नहीं सीखा है.

जीवन की सबसे बड़ी भूल के बारे में यक्ष के प्रश्न पर युधिष्ठिर ने जवाब दिया था कि अनुभव से नहीं सीखना जीवन की सबसे बड़ी भूल है. सत्ता और पद के अनुभवों से जिन नेताओं ने उनकी निरर्थकता नहीं अनुभव की है जो आज भी सत्ता के लिए सब तरह के हथकंडे अपनाने को राजनीतिक बुद्धिमत्ता मानते हैं. ऐसे जीवन को ही सार्थक कहना अनुचित होगा जिसने सत्ता का सुख ना भोगा हो, उसे तो सत्ता की लालसा स्वाभाविक है लेकिन जो नेता दशकों से सत्ता भोग रहे हैं और उन्हें सत्ता से त्याग का भाव ना जाग्रत हो तो उनकी लिप्सा की केवल कल्पना ही की जा सकती है.

एमपी में नया पोस्टर राजनीतिक चेहरे के साथ हैवान लिखकर लगाया गया है. यह राजनीतिक गंदगी की पराकाष्ठा है. इसके पहले भी दोनों दलों के प्रमुख चेहरों को लेकर भ्रष्टाचार के आरोपों के पोस्टर लग चुके हैं. भ्रष्टाचार पर राजनीतिक लाभ के लिए बातें तो की जाती हैं लेकिन लड़ाई कोई भी नहीं लड़ता. 


कांग्रेस ने भ्रष्टाचार पर लाखों करोड़ों रुपए के आरोप पत्र जारी किए हैं लेकिन किसी भी नेता ने भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कराने के लिए वैधानिक एजेंसियों के पास शिकायत करने की जहमत नहीं उठाई है. इसके पहले भी कई सरकार और दलों ने विरोधी पर भ्रष्टाचार के सार्वजनिक आरोप तो लगाए लेकिन जाँच को अंजाम तक पहुँचाने में राजनीति ही दिखाई पड़ी.

एक दूसरे को बदनाम कर परसेप्शन बनाकर जो सियासी लाभ लिया जा सकता है केवल वही भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के पीछे मकसद दिखाई पड़ता है. एमपी की राजनीति में सियासत का यह स्तर अब गंदगी का लोक व्यापीकरण कर रहा है.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने पहले यह कहा था कि बीजेपी राज्य में दंगे कराना चाहती है. इस पर जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से सवाल पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि जब दंगे नहीं हो तो उन नेता से पूछना कि दंगे क्यों नहीं हुए? अभी तक तो दंगे नहीं हुए हैं लेकिन दंगे की बात कोई नासमझी में नहीं बल्कि परसेप्शन के ध्रुवीकरण के लक्ष्य के साथ रखी गई. अब यही नेताजी कह रहे हैं कि एमपी के विपक्षी नेताओं के यहां आयकर और ईडी के छापे की तैयारी की जा रही है. चुनावी दंगा और चुनावी छापों की संभावनाएं भी वोट की राजनीति को आगे बढ़ाने के प्रयास कहे जाएंगे.

सेवा के लिए राजनीति में लोगों की लिप्सा और लालसा इतनी ज्यादा क्यों बढ़ जाती है? यह बात अब सामान्य लोगों की समझ नहीं आ रही है. एक दूसरे को बेईमान और भ्रष्ट बताते-बताते राजनेता यह भी भूल जाते हैं कि ऐसा करते करते वह खुद को भी भ्रष्ट और बेईमान साबित कर रहे हैं.

सूरज और चांद पर पहुंचने वाले भारतीय वैज्ञानिकों के लिए अंतरिक्ष का अनुसंधान अब इतनी चुनौती नहीं है जितना भारतीय जनता के लिए राजनेताओं की राजनीति में लिप्सा और लालसा के कारणों का अनुसंधान चुनौती बन गया है.