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हिंदुत्व की पहचान को भी मिलेगा, सरकारी सम्मान

सार

धर्मनिरपेक्षता की नई सियासी परिभाषा बन रही है. सियासत के पुराने व्यंजन, व्याकरण और समीकरण बदल रहे हैं. कुर्ते पर जनेऊ, धर्म और गोत्र चुनाव में हिंदुत्व का एजेंडा सेट कर रहे हैं. अभी तक सरकारी खजाने से दिल्ली राज्य में जो वेतन केवल इमाम को मिल रहा था, वह अब पुजारी और ग्रंथियां को भी देने की घोषणा की जा रही है..!!

janmat

विस्तार

    बीजेपी का हिंदुत्व का एजेंडा सियासी मजबूरी बन गया है. भाजपा शासित राज्यों में पुजारी को पहले से ही मानदेय मिल रहा है, अब तो इसे महंगाई से भी जोड़ा जाएगा. इमाम और पुजारी को एक समान वेतन या मानदेय की बात होगी. यह केवल पुजारी के वेतन तक नहीं रुकेगा, बल्कि बाकी धर्म के धर्मस्थलों के समान मंदिरों का प्रबंधन भी सरकारों को छोड़ना होगा. साल 2025 धर्मनिरपेक्षता की सापेक्षता का साल हो सकता है.

   धर्मनिरपेक्षता की सापेक्षता यही कहती है कि, सभी धर्म के लिए एक समान व्यवस्था और एक समान प्रबंधन होना चाहिए. अगर वक्फ़ बोर्ड संवैधानिक है, तो फिर संविधान के तहत सनातन बोर्ड का गठन ही असली धर्मनिरपेक्षता होगी.

    दूसरे धर्म के धर्मस्थलों का प्रबंधन उस धर्म के अनुयायियों के हाथ में है तो फिर मंदिरों का प्रबंधन हिंदुओं को सौंपने में सरकारों को आपत्ति क्यों होना चाहिए. मंदिरों पर राज्य का नियंत्रण धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध है.

    भले ही अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली चुनाव के लिए पुजारी और ग्रंथियां के लिए हर माह 18000 रुपए की सम्मान निधि देने की घोषणा की है. लेकिन यह ऐलान टाइम बम जैसा हर राज्य में फटेगा. इसकी गूंज हर दल में सुनाई पड़ेगी.

    कई धर्मनिरपेक्षता के पुरोधा इसे संविधान के विरुद्ध भी कहेंगे. जो लोग सेकुलिरिजम को केवल अल्पसंख्यकों के संरक्षण का हथियार मानते हैं, उनको तकलीफ भी होगी.

    चुनावी राजनीति और सत्ता लालसा की मजबूरी इस टाइम बम को हर राज्य तक पहुंचाएगी. पॉलिटिक्स में अरविंद केजरीवाल को पसंद किया जाए या नापसंद किया जाए लेकिन राष्ट्रीय राजनीतिक दलों का इस नेता ने समीकरण जरूर बिगाड़ दिया है.

    महिला सम्मान और बुजुर्गों को फ्री इलाज की उनकी घोषणाएं भी अल्टीमेटली राजनीतिक दलों की मजबूरी बनेगी. अगर मुफ्तखोरी की योजनाओं के इतिहास पर नजर डाली जाए तो उनकी शुरुआत अरविंद केजरीवाल ने ही की थी. अब धीरे-धीरे हर दल उस पर आगे बढ़ रहा है.

    पुजारी और ग्रंथियां को सरकार के खजाने से हर महीने सम्मान राशि देने की योजना तो भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे को मजबूत करेगी. भाजपा शासित राज्यों यहां तक कि, मध्य प्रदेश में भी, पुजारी को हर माह मानदेय दिया जाता है. सरकार द्वारा नियंत्रित मंदिरों में जमीन भी जुड़ी है.

    जमीनों के हिसाब से मानदेय निर्धारित है. यह मानदेय वर्ष 2018 के चुनाव के पहले बढाकर रूपये तीन हजार तक किया गया था. अब जब अठ्ठारह हज़ार रुपए सम्मान निधि की बात हो रही है तो फिर अगले चुनाव के पहले बीजेपी को भी अपने राज्यों में यह मानदेय बढ़ाना ही पड़ेगा.

    हिंदुत्व राजनीति की सफलता के बाद अब  सभी राजनीतिक दलों को उसी एजेंडे को अपनाना पड़ रहा है. हिंदुत्व विरोधी और तुष्टीकरण के पक्षधर दलों में हिंदुत्व के प्रति बढ़ती स्वीकार्यता से बीजेपी के सामने हिंदुत्व की अपनी राजनीति को सरकारी व्यवस्था में अधिक प्रभावशाली बनाने की चुनौती रहेगी. 

    हिंदुत्व में राजनीतिक जागरूकता बढ़ रही है. अब केवल चुनावी भाषणों और प्रवचनों से हिंदुत्व को नहीं साधा जा सकता. तुष्टीकरण के पक्षधरों ने जिस तरह से एक समुदाय विशेष को संविधान के दायरे में लाकर सरकारी  खजाने से लाभान्वित करते रहे हैं, वह रणनीति अब हिंदुओं के मामले में भी सक्रियता से करनी पड़ेगी. मुस्लिम विरोधी राजनीति ही हिंदुओं को संतुष्ट नहीं कर पाएगी. हिंदुओं के लिए पॉजिटिव एफर्ट करने की जरूरत होगी. 

    कांग्रेस द्वारा वर्ष 1991 में लाया गया प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट तुष्टिकरण की पराकाष्ठा है. इस एक्ट के कारण हिंदुओं को अपने धर्मस्थलों की पहचान करने में भी कानूनी बाधा खड़ी कर दी गई है.

    हिंदुओं के देश में क्या ऐसा सोचा जा सकता है कि, किसी कानून के तहत उन्हें अदालत में जाने से भी रोक दिया जाएगा. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार को अपना पक्ष प्रस्तुत करना है. हिंदू हितों के मामलों को बहुत लंबे समय तक इसलिए नहीं टाला जा सकेगा कि, अब सभी राजनीतिक दल इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.

    मंदिरों पर राज्य का नियंत्रण समाप्त करने के लिए समुदाय की ओर से लगातार मांग की जाती रही है. हिंदू समुदाय मंदिरों के प्रबंधन के मामलों में प्रतिनिधित्व के अपने अधिकार की मांग कर रहे हैं. हिंदुओं के धार्मिक आयोजनों में भाजपा सरकारों की सक्रियता निश्चित रूप से हिंदुत्व की राजनीति को धार दे रही है.

    प्रयागराज में होने वाला महाकुंभ आज पूरे विश्व को आकर्षित कर रहा है, तो यह सब उत्तरप्रदेश सरकार की सक्रियता और सहभागिता से ही संभव हो सका है.  सुप्रीम कोर्ट ने केरल के श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर में राज्य सरकार के नियंत्रण के खिलाफ फैसला देकर यह मार्ग तो प्रशस्त ही कर दिया है कि, हिंदुओं के मंदिरों का प्रबंधन समुदाय के नियंत्रण में सौंपना संविधान सम्मत ही है. 

    हिंदू मंदिरों में श्रद्धालुओं द्वारा दिया जा रहा दान इतना अधिक है कि, अगर इस राशि का सनातन धर्म और हिंदू आस्थाओं को पल्लवित और पुष्पित करने के लिए किया जाएगा तो देश के साथ समुदाय को भी लाभ होगा.

    जब देश में धर्मनिरपेक्षता की सापेक्षता का माहौल बन रहा है. जो राजनीतिक दल हिंदुत्व का विरोध कर रहे थे, उन्हें भी इस एजेंडे पर आना पड़ रहा है तो फिर अब समय हिंदुत्व को समानता के साथ सरकारी संरक्षण देने का है.

    वक्फ़ बोर्ड में सुधार के लिए प्रयास समय की जरूरत है लेकिन सनातन बोर्ड की मांग भी धर्मनिरपेक्षता की सापेक्षता ही है. कहा तो यहां तक जा रहा है कि, वक्फ़  बोर्ड जैसे प्रावधान ही सनातन बोर्ड के लिए लागू कर दिए जाएँ तो फिर सही मायने में धर्मनिरपेक्षता स्थापित हो जाएगी.

    सरकारी योजनाओं में सर्वधर्म समभाव की धर्मनिरपेक्षता है, तो फिर कानून में ऐसा समभाव क्यों नहीं स्थापित किया जाता. जिन-जिन कानूनों में विभिन्न समुदायों के बीच विभेद है, उनको समाप्त करना और सब पर एक समान कानून लागू करने की मांग को पूरा करने में बहुत विलंब नहीं होना चाहिए.

    हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम 1951 के एक बड़े हिस्से को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द कर दिया गया. न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि, ये प्रावधान धार्मिक स्वतंत्रता पर विनाशकारी आक्रमण है, ऐसे अधिनियम सभी धार्मिक संस्थाओं पर लागू किये जाना चाहिए ताकि उनके पूजा स्थलों के प्रबंधन में पर्याप्त स्वतंत्रता मिल सके.

    हिंदुत्व की राजनीति का सत्ता में एकाधिकार का काफी समय हो चुका है. हिंदुत्व के हितों को संरक्षित करने के लिए अब विरोधियों से ज्यादा समर्थकों पर जवाबदारी है. धार्मिक स्वतंत्रता पर जो असमानता कानून में है उनको तुरंत हटाया जाना चाहिए.

    जिस तरह की सुविधा और कानूनी प्रोटेक्शन दूसरे धर्म को हैं, वही हिंदुत्व को भी मिलनी चाहिए. हिंदुत्व का एजेंडा व्यवस्था की जमीन पर उतर तो रहा है लेकिन इसकी गति और प्रगति तेज होनी चाहिए.