बेशक छद्म ही सही, राम रहीम लाखों श्रद्धालुओं के लिए पूज्य है, आस्था का पात्र है, लेकिन वह नाबालिग साध्वियों के साथ बलात्कार और एक पत्रकार की हत्या सरीखे जघन्य अपराधों में सजायाफ्ता है, उसे एक मामले में 20 लंबे साल और अन्य मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है..!!
डेरा सच्चा सौदा का प्रमुख गुरमीत राम रहीम को हरियाणा चुनाव के मतदान से ठीक पहले 20 दिन के पैरोल पर रिहा किया गया है। चार साल में 15वीं बार उसे पैरोल पर जेल से बाहर आने का मौका मिला है। न कोई आपातस्थिति है, न कोई आकस्मिकता है और न ही कोई मरणासन्न है,लेकिन किसी ‘फैमिली मैटर’ के आधार पर पैरोल दी गई है। वह पारिवारिक मामला क्या है? क्या बाबाओं का भी पारिवारिक मामला होता है? बेशक छद्म ही सही, राम रहीम लाखों श्रद्धालुओं के लिए पूज्य है, आस्था का पात्र है, लेकिन वह नाबालिग साध्वियों के साथ बलात्कार और एक पत्रकार की हत्या सरीखे जघन्य अपराधों में सजायाफ्ता है। उसे एक मामले में 20 लंबे साल और अन्य मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है।
बेशक पैरोल एक सजायाफ्ता कैदी का स्थितिजन्य अधिकार है और फरलो को जेल के दस्तावेजों और नियमों में ‘इनाम’ करार दिया गया है। जब भी पुलिस और जेल सुधारों का उल्लेख होता है, तो उनमें कैदी को ज्यादा से ज्यादा जेल के बाहर रखना ‘सुधारात्मक’ माना गया है। उससे कैदी के व्यवहार और मानसिकता में सुधार होगा और वह ज्यादा सामाजिक होगा। उन सुधारों में ही ‘फरलो’ को एक इनाम माना गया है, जो जेल प्रशासन एक कैदी को दे सकता है। हालांकि अलग-अलग राज्य में फरलो की अवधि तय है। फरलो का ही विकल्प पैरोल है। बहरहाल यह संयोग है या कोई प्रयोग है कि राम रहीम को लोकसभा, विधानसभा, नगरपालिका या पंचायत चुनावों के दौरान ही पैरोल या फरलो दी जाती रही है। बेशक वह एक प्रभावशाली शख्स है और पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, पश्चिमी उप्र और राजस्थान आदि राज्यों में डेरे के असंख्य भक्त और अनुगामी हैं, लिहाजा डेरा प्रमुख के किसी आह्वान या अपील का असर भक्तों पर व्यापक तौर से होता है। हालांकि चुनाव इस अनुपात में प्रभावित नहीं होते, लेकिन राजनीतिक दलों का फायदा जरूर होता है।
अब राम रहीम को पैरोल पर छोड़ा गया है, तो एक अनिवार्य शर्त यह है कि वह चुनावी गतिविधियों में हिस्सा नहीं लेगा।वह किसी भी दल या उम्मीदवार विशेष के पक्ष में कोई अपील जारी नहीं करेगा। क्या इन शर्तों पर कानून की कोई पहरेदारी मौजूद है? राम रहीम उप्र के बागपत के बरनावा स्थित आश्रम में मौजूद है। उसके जेल के बाहर आते ही डेरे की सूचना कमेटियों ने हरियाणा की संगत को ब्लॉक स्तरीय ‘नामचर्चा’ करने के आदेश भी दिए । माना जा रहा है कि इसमें डेरे की तरफ से किसी दल को समर्थन देने के संकेत दिए जा सकते हैं। यदि डेरे में हरियाणा की संगत जमा होती है, तो चुनावों की चर्चा भी संभव है। हरियाणा के मुख्य चुनाव अधिकारी, जेल प्रशासन और राज्य सरकार ने राम रहीम की पैरोल मंजूर की है और फिलहाल सभी ‘भाजपाई’ हैं। बीते 10 साल के शासन-काल में भी भाजपा की राम रहीम पर कृपा बनी रही है, जाहिर है कि डेरे में भाजपा के पक्ष में बहुत कुछ प्रचारित किया जा सकता है। बेशक राम रहीम के मुंह से यह प्रचार सार्वजनिक न हो!
दरअसल पैरोल या फरलो आपातकालीन होनी चाहिए। मसलन-घर में किसी की मौत हो गई है या किसी की शादी है अथवा कोई सख्त बीमार है, तो उस आधार पर पैरोल दी जा सकती है। इस संदर्भ को दोहराना जरूरी है कि फरवरी में 50 दिन की पैरोल के खिलाफ शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की दलीलें सुनने के बाद पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि अदालत की सहमति के बिना पैरोल नहीं दी जाएगी। अगस्त में मामले की सुनवाई पूरी हो गई, तो उच्च न्यायालय ने पैरोल की वह शर्त भी उठा ली। दरअसल पैरोल या फरलो के फैसले भी सवालिया रहे हैं। बीबी जागीर कौर या मनु शर्मा (जेसिका मर्डर केस वाला) अथवा ओडिशा के पूर्व पुलिस महानिदेशक का बलात्कारी बेटा, जो पैरोल के दौरान भाग गया था, इन केसों को याद करें, लिहाजा 2023 में सर्वोच्च अदालत ने निर्देश दिए कि पैरोल के तहत जो प्रभावशाली लोग बार-बार जेल से बाहर आते रहते हैं, उनके पैरोल दिनों को उनकी सजा की अवधि से अलग रखा जाए। दरअसल यह महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दा है, लिहाजा अदालत को ही संज्ञान लेना चाहिए।