मध्य प्रदेश में रिवर लिंकिंग प्रोजेक्ट की गति से सब खुश हैं. पार्वती-कालीसिंध-चंबल (पीकेसी) नदी जोड़ो परियोजना पिछले बीस साल से अटकी हुई थी. अब पीएम मोदी ने इस परियोजना की आधारशिला रख दी है. राजस्थान, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों भजनलाल और डॉ. मोहन यादव के बीच एम्ओयू हो चुका है..!!
72 हजार करोड़ की इस परियोजना से मध्य प्रदेश में इक्कीस बाँध-बैराज बनेंगे. साथ ही तेरह जिलों की चालीस लाख आबादी को पेयजल उपलब्ध होगा. पीकेसी से मध्य प्रदेश की सूरत बदलेगी. इसी महीने मध्य प्रदेश की दूसरी बड़ी केन-बेतवा लिंक नदी जोड़ो परियोजना की आधारशिला भी पीएम मोदी रखने वाले हैं.
प्रदेश में पहले ही नर्मदा- क्षिप्रा लिंक परियोजना पूरी हो चुकी है. गहन विचार, विमर्श, शोध और चिंतन के बाद नदी जोड़ो परियोजना आगे बढ़ रही है, तो सुखद भविष्य की कल्पना तो की ही जा सकती है. नदियों को जोड़ने से ज्यादा नदियों को बचाने की जरूरत है. ऐसी कोई भी नदी नहीं है जो मृत्युशैय्या पर ना दिख रही हो. मरती नदियां जोड़ने से जीवंत कैसे हो सकती है? पहले तो नदियों को जीवंत बनाना होगा. उनमें मिलने वाले गटर और नालों को रोकना होगा.
नदियों के सीने से हो रही खुदाई को संतुलित करना होगा. उद्योग जगत से निकले वेस्ट से इन महत्वपूर्ण नदियों को बचाना होगा. पिछले सिंहस्थ के पहले नर्मदा-क्षिप्रा लिंक परियोजना का जो सपना दिखाया गया था, वह प्रोजेक्ट पूर्णता के बाद भी अपने तय लक्ष्य हासिल न कर सका. क्षिप्रा के हालात आज भी पहले जैसे ही बने हुए हैं. क्षिप्रा लिंक परियोजना में नर्मदा का जल लिफ्ट करके नदी में लाया गया है, इस प्रोसेस में जितना बिजली का खर्च आता है, वह व्यवहारिकता के पैमाने पर बीच-बीच में साँसे छोड़ने लगता है.
कहने के लिए तो नदियों को माता माना जाता है लेकिन उन्हें प्रदूषित करने में कोई भी कम सहभागिता नहीं निभाता. समय के साथ नदियों का जलस्तर कम होता जा रहा है. सभ्यता का विकास नदियों का ही विनाश करने पर आमादा है. इसी सभ्यता और सभ्य लोगों ने नदियों की आत्मा को लहुलूहान किया है.
नदियों को जोड़ने से सूखे और बाढ़ के हालातो को संतुलित किया जा सकता है तो कोई संदेह नही है कि पेयजल की समस्या का भी समाधान हो सकता है. नदियां प्राकृतिक है. उनका ईकोसिस्टम नेचुरल है. उस इकोसिस्टम में बदलाव भविष्य में कोई विपत्ति नहीं पैदा करें. इस पर गहन चिंतन करना जरूरी है.
रिवर लिंकिंग से पहले रिवर से हार्ट लिंकिंग आवश्यक है. शहरों के आसपास और बीच की स्थानीय नदियां और नाले तो गटर का ही रूप ले चुके हैं. नदियों को लेकर अब तो लगता है, कोई इमोशन ही नहीं बचा है. इनका जल आचमन तो छोड़िए, स्नान के लायक भी अब शायद नहीं रह गया है.
बारह महीने बहने वाली नदियां बीच-बीच में नालों का आकार ले चुकी हैं. अतिक्रमण और खनन के लालच ने नदियों की जान में सांसत में डाल दी है. गंगा, यमुना और नर्मदा जैसी जीवंत नदियाँ भी प्रदूषण का शिकार हैं. दिल्ली में यमुना के हालात किसी से छिपे नहीं है. कानपुर में गंगा उद्योगों के वेस्ट को खपाने की नदी रह गई है. नर्मदा भी कम प्रदूषण का शिकार नहीं है. नदियों के प्रतिधार्मिक आस्था भी जनमानस को नदियां बचाने के लिए प्रेरित नहीं कर पा रही है.
हमारी नदियां सरकार के प्रयासों से नहीं बच सकती हैं. शहरीकरण और बढ़ती जनसंख्या का दबाव नदियों पर कहर ढा रहा है. लगभग सभी नदियां मलमूत्र और शहरों के दूसरे वेस्ट को बहाने का साधन बन गई हैं. नदियों के किनारे के शहरों में गंदे जल को शुद्ध करने के लिए वॉटर ट्रीटमेंट के प्लांट भी अभी तक पूरी तरह से स्थापित नहीं हो पाए हैं, जो स्थापित भी हो गए हैं, वह शुद्धता के साथ काम नहीं कर पा रहे हैं.
करप्शन के केंसर और इंसानी लालच को भले ही अभी नदियों का भविष्य दिखाई नहीं पड़ रहा हो लेकिन यह तभी समझ आएगा जब इंसान का भविष्य बर्बाद हो जाएगा. नदी जोड़ो परियोजना को लेकर भी पक्ष और विपक्ष में तर्क हैं. गंगोत्री से निकली गंगा, सागर तक अपनी यात्रा किसी नक़्शे और किसी प्रोजेक्ट के तहत नहीं करती. यह सब प्राकृतिक रचना है. प्रकृति को बचाने से ज्यादा उसे मनुष्य ने बर्बाद किया है. अब तो ऐसा लगने लगा है कि, विकास और निर्माण के नाम पर प्रकृति के ईकोसिस्टम को जब भी छेड़ा गया है, तब भविष्य में खतरा ही पैदा हुआ है.
केन-बेतवा लिंक परियोजना और पीकेसी प्रोजेक्ट से मध्य प्रदेश को होने वाले लाभ के जो अनुमान पेश किया जा रहे हैं उनको सही ही मानना पड़ेगा. वैसे तो बिजली और पानी की जितनी भी बड़ी परियोजनाएं अब तक स्थापित हुई हैं, उनमें कोई भी परियोजना अपने प्रोजेक्टेड एस्टीमेट के अनुसार परिणाम नहीं दे पा रही है.
कई इरिगेशन प्रोजेक्ट और बाँध तो निर्माण के समय टारगेट बढ़ाकर कॉस्ट बढाने के उदाहरण देखे जा सकते हैं. जितने भी बड़े सिंचाई प्रोजेक्ट हैं उनमें टेल एंड तक सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध नहीं होता. जिस प्रोजेक्ट में लाखों एकड़ भूमि के सिंचाई के लक्ष्य बताए गए थे, वह वास्तव में कभी भी पूरे नहीं होते. यही स्थिति पेयजल प्रोजेक्ट में भी होती है.
नदियां और जल सबसे ज्यादा निगलेक्टेड हैं. जल ही जीवन है, लेकिन जल ही प्रदूषित है. इंसान निद्रा में जाते ही सब कुछ विस्मृत कर जाता है. किसी दूसरे लोक में चला जाता है. निद्रा में सपना देखता है और जागृत अवस्था में सपना दिखाता है. नदियों का वर्तमान जब तक स्वच्छ, निर्मल और भरपूर नहीं होगा, तब तक नदी जोड़ो परियोजना के टारगेट सपने से ज्यादा महत्व नहीं रखेंगे.
रिवर लिंकिंग प्रोजेक्ट्स भविष्य की बात है, लेकिन मरती नदियां तो वर्तमान हैं. जब वर्तमान ही मर रहा है तो भविष्य में जीवन की कल्पना सियासत ही कर सकती है. रिवर लिंकिंग प्रोजेक्ट पर जरूर आगे बढ़ना चाहिए, लेकिन जिनको लिंक किया जा रहा है, उनका अस्तित्व कितना बचा है, इस पर नजर सबसे पहले डालनी चाहिए. हार्ट का लिंक अगर स्वार्थ से है, करप्शन और सियासत से है, तो रिवर लिंकिंग मानवता की लिंकिंग करने में सफल नहीं हो पाएगी. लिंकिंग जरूरी है लेकिन नदियों की लाइफ के डेंजर को भी सुधारने के लिए हार्ट, माइंड और सोल को नदियों से लिंक करना होगा.