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ख़ुद की कसम ख़ुद कर गए हज़म

सार

भगवान कृष्ण के गीता ज्ञान जैसा हरियाणा ने सबको राजनीतिक ज्ञान दिया है. आम आदमी पार्टी के संयोजक हरियाणा के लाल अरविंद केजरीवाल को ज़मानत जब्ती का ज्ञान दिया है. आप सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. जीती एक भी नहीं लेकिन 88 सीटों पर पार्टी की ज़मानत जब्त हो गई..!!

janmat

विस्तार

    सुप्रीम कोर्ट से भले ही ज़मानत मिल गई हो, लेकिन हरियाणा के लोगों ने केजरीवाल की ज़मानत लेने से इनकार कर दिया. दावा यह किया जा रहा था, कि हरियाणा के परिणाम पार्टी को बेदाग साबित करेंगे और जनादेश के सहारे जनता की अदालत में जीत दर्ज करेंगे. आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय दल होने का रुतबा हासिल कर चुकी है. इस पार्टी ने यह उपलब्धि भी हासिल की है, कि भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाने के बाद भी मुख्यमंत्री का पद कायम रखा गया.

     जब जनता की अदालत में जाने का वक्त आया तो फिर वही ईमानदारी का राग अलापा गया. मुख्यमंत्री का पद छोड़ा गया, चहेते को मुख्यमंत्री के पद पर बिठाया गया. हरियाणा में इस रणनीति को दांव पर लगाया गया. अरविंद केजरीवाल ने हरियाणा के लाल होने का भी पूरा फायदा उठाने की कोशिश की, फिर भी राजनीतिक ईमानदारी की ज़मानत लेने वाला हरियाणा में कोई नहीं मिला.

    दिल्ली में भी चुनाव नजदीक हैं. दिल्ली आम आदमी पार्टी का गढ़ माना जा सकता है. कांग्रेस के साथ हरियाणा में जो गठबंधन टूट गया है, वह दिल्ली में तो होना संभव नहीं दिखाई देता है.

    राजनीति चालू कहीं से होती है, खत्म कहीं पर होती है. राजनीति की पगडंडी सीधी शायद चलती ही नहीं है. ईमानदारी की कसम खाकर जनविश्वास हासिल करने वाली आप पार्टी भ्रष्टाचार के आरोपों का रिकॉर्ड बना रही है. सारे मामले अदालतों में चल रहे हैं, लेकिन परसेप्शन की जनअदालत में आम आदमी पार्टी अपनी ज़मानत खो चुकी है.

    खुद ही ईमानदारी की कसम खाई गई थी. खुद ही इस कसम को हज़म किया गया है. सियासत से ईमानदारी की अपेक्षा कोई नहीं करता है. सियासत स्वयं एकदूसरे को बेईमान साबित करने के लिए ऐसे-ऐसे हथकंडे चलती है, कि पूरी सियासत को ही बेईमान साबित कर दिया जाता है. अरविंद केजरीवाल ने जब राजनीतिक दल बनाया था, तब सियासत में भ्रष्टाचार के प्रतीक बने नामों को उजागर किया गया था.

    वादा किया था, कि इन सबको बेनकाब किया जाएगा. इसके विपरीत कांग्रेस पार्टी के साथ ही चुनावी गठबंधन कर लिया गया. अरविंद केजरीवाल कांग्रेस की दिल्ली की सरकार को भ्रष्टाचारी साबित कर ही सत्ता में आए थे. और बाद में उन्हीं के साथ गलबहियां करने लगे. 

    सियासी बातों और आचरण में तो ज़मीन-आसमान का अंतर दिखाई पड़ता है. समाज में आज भी ऐसे उदाहरण हैं, जहां अपनी बातों की रक्षा के लिए सब कुछ बलिदान कर दिया जाता है. इसके विपरीत सियासत का चरित्र सत्ता में आते ही सारे वादों और सारी बातों को भुला देने का दिखाई पड़ता है. 

    हरियाणा के चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में टकराव चालू हो गया है, जो दिल्ली चुनाव आते-आते चरम पर पहुंच सकता है. कांग्रेस और आप का गठबंधन दिल्ली में अगर नहीं होता है, तो चुनाव में बीजेपी खुशी का मौका तलाश सकती है. 

    भारत के राज्यों की कोई भी सरकार ऐसी नहीं है, जहां नशे का व्यवसाय फल-फूल ना रहा हो. यहां तक कि नशाबंदी वाले राज्यों में भी भरपूर शराब और दूसरे नशे आसानी से मिल जाते हैं. दिल्ली सरकार में शराब घोटाले के दाग ने आम आदमी पार्टी की बुनियाद को हिला दिया है. मुख्यमंत्री स्वयं इन आरोपों में जेल तक चले गए हैं. बिहार में नशाबंदी है, फिर भी वहां शराब आसानी से उपलब्ध है. ऐसे ही गुजरात में भी हो रहा है. आजकल तो सूखे नशे का कारोबार पूरे देश में फैला दिखाई पड़ रहा है.

    मध्य प्रदेश में तो पहली बार नशे की फैक्ट्रियां पकड़ी जा रही हैं. भोपाल के बाद झाबुआ में भी ड्रग्स की फैक्ट्री पकड़ी गई है. गुजरात और दिल्ली में तो आए दिन ड्रग्स पकड़े जा रहे हैं. ड्रग्स के कारोबार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि पिछले 15 दिनों में जांच एजेंसियों द्वारा 13000 करोड़ से ज्यादा कोकीन ड्रग और नशे के पदार्थ पकड़े गए हैं.

    औसतन हर दिन 800 करोड़ के ड्रग्स की जब्ती कारोबार की भयावह स्थिति का संकेत कर रहे हैं. बिहार में तो जन स्वराज पार्टी के प्रशांत किशोर ने शराबबंदी समाप्त करने का चुनावी वादा कर दिया है. ठीक भी है, जब शराबबंदी से शराब की उपलब्धता में कोई फर्क नहीं पड़ता तो, फिर इससे राज्य के राजस्व को नुकसान क्यों पहुंचाया जाना चाहिए.

    आम आदमी पार्टी जनता की अदालत में अपनी जमानत इसलिए खो रही है, क्योंकि ईमानदारी की बातें सबसे ज्यादा उनके द्वारा ही की गई थीं. जो ईमानदारी की बातें करता है, उसे अपने आचरण में ईमानदारी दिखाने की नैतिक जिम्मेदारी बन जाती है. 

    राजनीतिक दल बिना पैसे के चलते नहीं लेकिन पैसा लेने का कोई वैधानिक तरीका अब तक है नहीं. चुनावी बॉन्ड कानून सुप्रीम कोर्ट द्वारा अवैधानिक घोषित कर दिया गया है. हर व्यक्ति को पता है, कि राजनीतिक दलों को पैसा कैसे मिल रहा है और इसी पैसे से  राजनीतिक दुकानें सजाई जाती हैं. भ्रष्टाचार से सजी दुकान ईमानदारी की दुहाई देती है, यही लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा लग रहा है. 

    आम आदमी पार्टी उम्मीद लगाए हुए है, कि दिल्ली में उनकी फिर से सत्ता में वापसी होगी. जनादेश पर कोई अनुमान लगाना सही नहीं होगा. लेकिन यह पार्टी भ्रष्टाचार मुक्त और ईमानदार शासन के लिए बनी थी. इस वायदे पर तो आम आदमी पार्टी की वापसी की कोई आशा दिखाई नहीं पड़ती है.

    सियासी लोगों ने ऐसे हालात बना दिए हैं, कि अब सियासत का नाम ले लो तो फिर भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, विभाजन, जातिवाद, संप्रदायवाद शब्द बोलने की कोई आवश्यकता ही नहीं है. सियासत मतलब यह सब होगा ही. सियासत का रास्ता एक ही लगता है. कभी इस रास्ते पर एक सफल हो जाता है, तो कभी दूसरा सफल हो जाता है. लेकिन रास्ते में कोई अंतर दिखाई नहीं पड़ता. 

    ईमानदारी की कसम का श्राप आप भुगत रही है. जन धारणा तो ऐसी बन गई है, कि सियासत में ईमानदारी की बात सबसे बड़ा अभिशाप है. चुनावी नतीजे ईमानदारी की गारंटी नहीं होते. सांस  का तो समय निर्धारित है, चाहे वह जीव की हो या सियासत की, नीव की हो.