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सत्ताईस साल बाद मिले मौके को परफॉर्म करना होगा

सार

बीजेपी ने महिला मुख्यमंत्री चुन लिया है. रेखा गुप्ता ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है. मंत्री परिषद भी गठित हो गई है. बीजेपी ने महिला मुख्यमंत्री का चयन कर एक तीर से कई निशाने साधे हैं. महिला सशक्तिकरण का जहां संदेश दिया है, वहीं चुने हुए विधायकों में मुख्यमंत्री के पुरुष दावेदारों को शांत करते हुए वैश्य समाज को भी साध लिया है. साथ ही संभावित विवादों को भी दरकिनार कर दिया है..!!

janmat

विस्तार

    आम आदमी पार्टी के साथ कड़ी टक्कर में कांग्रेस के त्रिकोणीय मुकाबले में बीजेपी को बहुमत मिला है, लेकिन मत प्रतिशत के मामले में आप बहुत पीछे नहीं है. इंडिया अगेन्स्ट करप्शन आंदोलन से जन्मे अरविंद केजरीवाल विपक्ष की राजनीति में फिर करप्शन के खिलाफ लड़ाई को ही अपना हथियार बनाएंगे. यद्यपि केजरीवाल और आम आदमी पार्टी करप्शन के मामले में इतना ज्यादा गले-गले तक डूब गई है, कि अब भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में फिर से इस पार्टी को विश्वसनीयता हासिल करना इतना आसान नहीं होगा. फिर भी बीजेपी के लिए दिल्ली में गवर्नेंस बड़ी चुनौती होगी. करप्शन फ्री गवर्नेंस देने के लिए बीजेपी को कड़ी मशक्कत करनी होगी.

    जिस शराब घोटाले में अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्री को जेल जाना पड़ा था, वह शराब नीति निश्चित रूप से बदली जाएगी. जो भी नई शराब नीति बनेगी उसमें दिल्ली की जनता को नया क्या मिलेगा जो आम आदमी पार्टी सरकार से अलग होगा. जो उसके लिए बेहतर होगा. दिल्ली में शराब की दुकानें क्या कम हो जाएंगी? क्या दिल्ली में शराब मिलना बंद हो जाएगी? बीजेपी ने अरविंद केजरीवाल पर दिल्ली में  शराब की नदियां बहाने का आरोप लगाया. अब उनकी नई नीति कैसी होगी जिससे कि दिल्ली में शराब की दुकानें न्यूनतम हो जाएंगी?

    दिल्ली में बीजेपी की जीत का क्रेडिट पीएम मोदी के चेहरे को जाएगा. पार्टी संगठन और कार्यकर्ता के प्रयास अपनी जगह हैं, लेकिन दिल्ली के लोगों ने पीएम मोदी की इस बात पर भरोसा किया है कि एक बार उन्हें दिल्ली की सरकार चलाने का मौका दिया जाए. यह मौका मिल गया है. इस मौके को बीजेपी को प्रूफ करना पड़ेगा. यमुना की सफाई बड़ा मुद्दा बना हुआ है. यद्यपि सफाई का काम चालू हो गया है, लेकिन यह इतना आसान नहीं है. दिल्ली में मुख्यमंत्री जो भी हो लेकिन उसका संचालन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को अपने डायरेक्ट कंट्रोल में ही कराना होगा.

    27 साल पहले जब दिल्ली में बीजेपी की सरकार थी, तब  तीन-तीन मुख्यमंत्री बदले गए थे. इस बार इस तरह की कोई गलती बीजेपी को भारी पड़ सकती है, जो विधायक निर्वाचित हुए हैं उनमें राजनीतिक रूप से कई सशक्त और परस्पर विरोधी शक्तियां हैं. हालांकि भाजपा संगठन की शक्ति से पार्टी के अंदर सभी हालातो को नियंत्रित कर लेती है. 

    अरविंद केजरीवाल ने मुफ्त की योजनाओं के जरिए अपने जनाधार को विकसित किया है. उनका यह जनाधार खत्म नहीं हुआ है. मुफ्त की योजनाओं को एकदम से बंद करना बीजेपी की नई सरकार के लिए आसान नहीं होगा. लाड़ली बहनों के लिए जो राशि हर माह देने की घोषणा की गई है, उसे भी नई सरकार को जल्दी ही पूरा करना होगा.

    कम से कम अब यह हालात तो नहीं बनेंगे कि सरकार और उप राज्यपाल के बीच हर दिन विवाद की स्थिति बनती रहे. केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार  के समन्वय से विकास को गति मिल सकती है

    राजनीति में करप्शन एक बड़ी समस्या बन गई है. यूपीए सरकार का पतन करप्शन के आरोपों पर ही हुआ था. अरविंद केजरीवाल का उदय करप्शन के खिलाफ लड़ाई से ही हुआ. केजरीवाल स्वयं करप्शन के मामले में फंसते गए. उन्होंने अपनी मुफ्त की योजनाओं को अपना वोट बैंक मान लिया था.

    उन्होंने अपनी फॉल्स पर्सनेलिटी बनाई और उसी में स्वयं उलझते चले गए. उनको ऐसा लगता था, कि जो मुफ्त की योजनाएं लोगों को मिल रही है वह उनको जरूर वोट करेंगे, लेकिन लोगों ने नेतृत्व की विश्वसनीय को महत्व दिया. केजरीवाल का अहंकारी और दंभी व्यक्तित्व भी उनके खिलाफ गया. उनका यह बयान कि उन्हें दिल्ली में हराने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी को दूसरा जन्म लेना पड़ेगा. केजरीवाल को बहुत महंगा पड़ा है.

   पीएम मोदी से सीधे तकरार की केजरीवाल की राजनीति भी दिल्ली के लोगों ने पसंद नहीं की. शराब घोटाले में जब उन्हें जेल जाना पड़ा, तब उन्होंने मुख्यमंत्री का पद नहीं छोड़ा. उनका यह निर्णय भी मतदाताओं ने पसंद नहीं किया. 

    केजरीवाल की सबसे बड़ी गलती कांग्रेस के साथ गठबंधन में जाना रहा है, जिस कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार का आंदोलन करते हुए उन्होंने अपनी राजनीति चालू की थी, उसी पार्टी के साथ गठबंधन में जाना उनके लिए वाटरलू साबित हुआ है. कांग्रेस के ही जनाधार पर आम आदमी पार्टी खड़ी हुई थी, ऐसा लगता है कि जनाधार हथियाने के साथ ही आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस की करप्शन की रणनीतियों को भी अपना लिया था. यह पार्टी कांग्रेस की कार्बन कॉपी साबित हुई. 

   इसका मतलब यह नहीं है, कि करप्शन फ्री गवर्नेंस मतदाताओं की जरूरत नहीं है, बीजेपी के सामने चैलेंज है, कि देश में करप्शन फ्री गवर्नमेंट की मजबूत आधारशिला खड़ी करे. बहुत सारे राज्यों में उनकी सरकारें हैं, लेकिन गवर्नेंस में करप्शन सामान्य प्रक्रिया के रूप में सभी सरकारों में चल रहा है. यह बात जरूर है, कि बीजेपी शीर्ष नेतृत्व विशेष कर पीएम मोदी की इमेज एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ लीडर की है.

    मोदी के ब्रांड पर ही बीजेपी का विकास लगातार आगे बढ़ता जा रहा है. बीजेपी शासित राज्यों में करप्शन के हालात बाकी राज्यों जैसे ही देखे जा सकते हैं. उनमें कोई खास अंतर दिखाई नहीं पड़ रहा है. करप्शन के आरोपों के कारण ही कांग्रेस राजनीतिक पतन पर पहुंची है. मतदाताओं की जरूरत करप्शन फ्री गवर्ननेंस है. फिर विकल्प के रूप में जो भी बेहतर दिखता है उसे चुन लिया जाता है. 

    बीजेपी आजदेश के अधिकांश क्षेत्र में विकल्प बनी हुई है.  ऐसे हालात में बीजेपी को करप्शन फ्री गवर्नेंस के लिए सशक्त प्रयास करने की जरूरत है. चुनावी फंडिंग के लिए पारदर्शी व्यवस्था करने की जरूरत है. चुनाव में काला धन के उपयोग  को नियंत्रित करने की भी आवश्यकता है. 

    हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में बीजेपीकी सरकारों को चुनाव में कांग्रेस से पराजित होना पड़ा है. कांग्रेस की इमेज भ्रष्टाचार की बनी हुई है, इसके बाद भी बीजेपी को हराकर फिर से सत्ता में शायद इसीलिए आ पाए हैं कि बीजेपी सरकार करप्शन फ्री गवर्नेंस देने में सफल साबित नहीं हो पाई. दिल्ली में बीजेपी को इस दिशा में विशेष रूप से सतर्क रहने की जरूरत है. नई मुख्यमंत्री के सामने चुनौतियां कम नहीं हैं, लेकिन दिल्ली को उनसे उम्मीदें भी बहुत हैं.