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हुआ है तो दिखेगा, केवल दिखाने से तो हो नहीं जाएगा

सार

मध्यप्रदेश में जैसे-जैसे चुनाव करीब आते जा रहे हैं वैसे-वैसे विकास यात्रा और हिसाब यात्रा शुरू हो गई हैं. यह दोनों यात्राएं हर रोज चलना चाहिए. जो सरकार चलाते हैं उन्हें हर दिन विकास की यात्रा को आगे बढ़ाना चाहिए और जो विपक्ष में है उन्हें हर दिन सरकार से हिसाब मांगने की यात्रा ताकत के साथ चलाना चाहिए. दुर्भाग्यजनक स्थिति यह है कि विकास और हिसाब यात्रा चुनाव के एक साल पहले निकाली जाती हैं. इसके पहले पूरे समय राजनीति राजनीति और केवल राजनीति ही खेली जाती है.

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विस्तार

विकास, सृजन निश्चित रूप से कठिन काम होता है. मध्यप्रदेश सरकार की विकास यात्रा के जो नजारे प्रदेश में दिखाई पड़ रहे हैं, हास-परिहास और विरोध के जो दृश्य प्रकट हो रहे हैं, जनमानस के बीच विकास मनीषियों का जैसा स्वागत हो रहा है, उसने विकास की दशा-दिशा और दृष्टि पर करारा सवाल खड़ा कर दिया है. जैसा बताया जा रहा है उसके मुताबिक सरकार की विकास यात्रा अब तक किए गए विकास को जनता तक पहुंचाने के लिए की जा रही है. बुद्धिजीवी इस पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं कि विकास हुआ है तो जिनका विकास हुआ है उनको उसके बाद भी क्या कुछ बताने की जरूरत होनी चाहिए?

सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि जब जनता के विकास की बातें बताई जा रही हैं तब फिर इसका जगह-जगह विरोध क्यों किया जा रहा है? मध्यप्रदेश में पहली बार सरकार द्वारा विकास यात्रा निकाली जा रही हो ऐसा भी नहीं है. इसके पहले 2018 में भी सरकार द्वारा विकास यात्रा निकाली गई थी उसके बाद चुनाव में आए जनादेश को विकास के नजरिए से जन अदालत का फैसला ही कहा जाएगा.

अब 2023 के चुनाव के पहले फिर से विकास यात्रा के नाम पर पूरे प्रदेश में रोड शो जैसे किए जा रहे हैं. होर्डिंग और बैनर के साथ प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में विकास की गाथा गाई जा रही है.

राजनीति और विकास की प्रोफेशनल दृष्टि में काफी अंतर दिखाई पड़ता है. डेवलपमेंट एक्सपर्ट जिसे विकास मानते हैं उस तरह का एप्रोच राजनीतिक सरकारों का नहीं होता. इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में सभी राज्य सरकारें कम निवेश करती हैं. तात्कालिक लाभ लेने के लिए मुफ्त की योजनाओं और अनुदान देने की नीतियों पर सरकारों द्वारा ज्यादा निवेश किया जाता है.

चुनाव पूर्व शुरू की जाने वाली नई योजनाओं का अध्ययन किया जाए तो स्पष्ट पता लग जाएगा कि केवल मत प्राप्त करने के लिए सरकारी खजाने से अरबों रुपए नगद वितरित करने के उपक्रम रचे जाते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों संसद में अपने भाषण में राज्य सरकारों द्वारा सरकारी धन के बेतहाशा और बिना दूरगामी सोच के खर्च पर गंभीर चिंता व्यक्त की है.

उन्होंने तो यहां तक कहा कि भारत के पड़ोसी कई देशों में अर्थव्यवस्था और हालात को देखते हुए राज्यों को सचेत होने की जरूरत है. अगर आज कदम नहीं उठाए गए तो भावी पीढ़ी के लिए चिंताजनक स्थिति निर्मित हो सकती है. कोई भी राजनीतिक दल अर्थव्यवस्था पर चर्चा नहीं करता. राज्य सरकारें कर्जों में डूबी हुई हैं. पूंजीगत व्यय लगातार कम होता जा रहा है. केवल दिखावे और आयोजनों पर बड़ी धनराशि का दुरुपयोग आमतौर पर देखा जाता है.

किसी भी सरकार के लिए बुनियादी सुविधाओं का विस्तार सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए. मध्यप्रदेश आज इंफ्रास्ट्रक्चर, इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट के फील्ड में भारत के अन्य राज्यों की तुलना में पीछे है. स्वास्थ्य, सिंचाई, शिक्षा के मामले में भी मध्यप्रदेश को अभी काफी लंबा रास्ता तय करना है. मातृ-मृत्यु दर, शिशु-मृत्यु दर और कुपोषण के मामले में मध्य प्रदेश की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है. ट्राईबल डेवलपमेंट मध्यप्रदेश की सर्वोच्च प्राथमिकता होना चाहिए.

नगद या मुफ्त की योजनाओं से राज्य के विकास पर कोई असर नहीं पड़ता. राजनीतिक दलों को तात्कालिक लाभ हो सकता है लेकिन इसका राज्य के विकास पर कोई दूरगामी प्रभाव नहीं होता. मध्यप्रदेश में राजनीतिक और प्रशासनिक धारा में न मालूम ऐसी कौन सी चीज है कि जो राजनीति को ज्यादा प्रश्रय और प्रमुखता देती है और विकास हमेशा दूसरे दर्जे पर आता है. देश के दूसरे राज्यों को देखा जाए तो वहां राजनीति भले अस्थिर हो लेकिन प्रशासनिक तंत्र राज्य के विकास को पटरी से भटकने नहीं देता.

महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे आम लोगों के जीवन से जुड़े सबसे बड़े मुद्दे हैं. इन पर तमाम प्रयासों के बावजूद कोई खास उपलब्धि हासिल होती नहीं दिखाई पड़ रही है. राजधानी भोपाल का ही अगर उदाहरण लिया जाए तो यहां एमबीए और इंजीनियर छात्रों के लिए भी दस से 15 हज़ार रुपये से ज्यादा की नौकरियां उपलब्ध नहीं है. प्रदेश का इंदौर एकमात्र ऐसा शहर है जहां इससे अधिक वेतन की नौकरियां थोड़ी बहुत मिल सकती हैं. बाकी प्रदेश का कोई शहर नहीं है जहां रोजगार के लिए नौकरियों की कोई खास गुंजाइश उपलब्ध हो. 

हर साल प्रदेश से हजारों नौजवान नौकरियों की तलाश में राज्य से बाहर चले जाते हैं. इससे परिवारों पर ऐसी विसंगति निर्मित होती है कि मां-बाप अकेले रह जाते हैं. राज्य में आर्थिक गतिविधियां ऐसी हैं नहीं कि बच्चों को मां-बाप अपने साथ रख सकें और बच्चे बाहर जाकर जो भी कमा पा रहे हैं उसमें वे अपने परिवार को साथ रखने की सामर्थ्य हासिल नहीं कर पाते.

मध्यप्रदेश की विकास यात्रा तभी सार्थक और सफल कही जाएगी जब राज्य में युवाओं को रोजगार के पर्याप्त अवसर होंगे. पढ़ाई-लिखाई और स्वास्थ्य के लिए प्रदेश में ही बेहतर अवसर मिल सकेंगे. नगद-अनुदान या मुफ्त खोरी की योजनाओं से विकास को कोई नया आयाम नहीं मिलने वाला.

नगरीय विकास के क्षेत्र में भी अभी बहुत अधिक काम किया जाना है. अवैध कॉलोनियों को नियमित करने को भी विकास की परिभाषा में सरकारें शामिल करती हैं. बड़ा प्रश्न यह है कि चुनाव के पहले दशकों से ऐसा क्यों होता रहा है कि अवैध कॉलोनियों के नियमितीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है? अभी भी यही हो रहा है पहले भी यही होता रहा है. किसी एक पार्टी की सरकार में नहीं हर पार्टी की सरकार में अवैध कालोनियों के नियमितीकरण को विकास के पैमाने के रूप में बताया जाता रहा है.

कवि हृदय की नजर से अगर कहा जाए तो ‘जैसे चांद बदली की आड़ में छिप जाता है वैसे ही राजनीति की आड़ में विकास छिप सा गया है. राजनीति और विकास का चोली-दामन का साथ होता है. राजनीति में विकास ही पहला प्यार बताया जाता है. जनता भी अब समझने लगी है कि बिना दबाए रस ना दे जैसे नींबू-आम, ऐसे बिना दबाव पूरे ना हो त्यों सरकारी काम? 

राजनीति के बारे में ऐसा माना जाता है कि ‘राजनीति शतरंज है, विजय यहां वो पाय, जब राजा फंसता दिखे पैदल दे पिटवाय'. इन हालातों में जनता-जनार्दन को विकास का हिसाब रखना ही होगा.