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हम बदलेंगे तो, यह देश बदलेगा 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 31 Jan

सार

संविधान सभा ने 29 नवम्बर 1949 को संविधान को अंतिम रूप दिया था..!!

janmat

विस्तार

और एक गणतंत्र दिवस गुजर गया। अक्सर लोग पूछते हैं कि गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस में फर्क क्या है? मोटे तौर पर इसका मतलब है संविधान लागू होने का दिन। संविधान सभा ने 29 नवम्बर 1949 को संविधान को अंतिम रूप दिया था। लोकतंत्र ब्रिटेन में भी है, पर वह गणतंत्र नहीं है। सिद्धांततः उसका स्वामी वहां का राज-परिवार है, भारत के मालिक हम, यहां के नागरिक हैं। हमारे संविधान का पहला वाक्य है, ‘हम, भारत के लोग…।’ यह प्रस्तावना है, जिसमें नागरिकों की ओर से कुछ संकल्प किए गए हैं। इसका अंतिम वाक्य है, ‘…इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।’ इसे किसी ने हम पर आरोपित नहीं किया है, बल्कि हमने अपने ऊपर इसे लागू किया है।

आज कुछ सवाल पूछने का मन करता है। किस तरह चला रहे हैं आप अपने देश को? आपके गणतांत्रिक सपने किस अवस्था में हैं? सोए हुए हैं या जागे हैं? आप कह सकते हैं कि मैं किस खेत की मूली हूं। मेरी हैसियत ही क्या है? बात सही है, पर पूरी तरह नहीं। जब पूरा समाज सपने देखता है, तभी वे पूरे होते हैं। सपने नहीं देखना खतरनाक स्थिति होती है। सपने भी कई तरह के होते हैं। खेल के मैदान से लेकर विज्ञान की प्रयोगशाला तक। ऐसे सपने जो हम सब मिलकर देखें।

तेजी से आगे बढ़ने के लिए हमें आर्थिक विकास की तेज गति चाहिए। केवल गति नहीं, कुशल और ईमानदार कोशिशें इसकी ज़रूरी शर्त है। उपलब्धियों का वितरण भी उचित अनुपात से होना चाहिए। यह बड़ा सपना है, पर इस गति और प्रगति का नेतृत्व करने वाली राजनीति जबर्दस्त अंतर्विरोधों की शिकार है। उसका मतलब झूठ और फरेब हो गया है, जो चुनाव के दौर में चरम पर होता है। झूठ और सच के भेद को पकड़ पाना आसान नहीं है। खासतौर से ऐसे दौर में जब तकनीक इसका रूप बदल रही है। झूठ का स्वाद मीठा और सच ‘कड़वा’ हो गया है। घपले -घोटाले  इस लोकतंत्र के अनिवार्य अंग बन चुके हैं। उस पर नज़र रखने वाला समाज अबोध-अशिक्षित और कुपोषित है। सच यह भी है कि पारदर्शिता बढ़ रही है, इसलिए हमें दोष भी नज़र आ रहे हैं, पर यह दोष शीशे का नहीं, हमारा है। 

पुराना भारत नए देश के रूप में प्रस्फुटित हो रहा है, हम निराश होकर कहते हैं कि कुछ नहीं हो पाएगा। क्यों नहीं हो पाएगा? लोग चाहते हैं कि व्यवस्था कुशल और कारगर हो। इसके लिए कोई बाहर से नहीं आएगा। आपकी भागीदारी होगी, तो यही व्यवस्था बेहतरीन परिणाम देगी। एक और बात, भारत चुनाव-संचालन में इतना सफल क्यों है? फिर कहा, उसके बाकी काम इतनी सफलता से क्यों नहीं होते? उसके स्कूल, स्वास्थ्य व्यवस्था, पुलिस वगैरह से लोगों को शिकायत क्यों है? आज़ादी के बाद हमारी अनेक विफलताएं हैं तो कुछ उपलब्धियां भी हैं। लोकतंत्र में  नागरिक के पास सपने और संकल्प होने चाहिए। वही बदलेगा, तो देश बदलेगा।