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चाहिए इन्वेस्टमेंट तो सुधारिए, ब्यूरोक्रेटिक कमिटमेंट

सार

पीएम नरेंद्र मोदी इन्वेस्टमेंट के एमपी-कुंभ में शामिल होने आ रहे हैं. राजधानी भोपाल सज गई है, मानव संग्रहालय इन्वेस्टर्स के स्वागत के लिए पलक पांवड़े बिछाए हुए हैं..!! 

janmat

विस्तार

    ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट हर राज्य में होती है लेकिन जिस राज्य में इसका उद्घाटन पीएम नरेंद्र मोदी करते हैं, उस राज्य की GIS की सफलता की गारंटी होती है. जिस GIS में पीएम मोदी हो उसमें देश का कौन सा इन्वेस्टर नहीं पहुंचना चाहेगा? सीएम डॉक्टर मोहन यादव को इन्वेस्टर्स समिट के लिए पीएम का समय मिल जाना ही, उनकी बड़ी सफलता मानी जाएगी. एमपी में पहले भी GIS होती रही है. एक दो में पीएम भी शामिल हुए हैं लेकिन कई समिट में पीएम का आना नही हुआ.

    एमपी में इन्वेस्टमेंट के लिए रीजनल समिट करने के बाद देश के कई हिस्सों में सीएम मोहन यादव ने रोड शो एवं इन्वेस्टर्स से चर्चा की. विदेश यात्राएं भी की. उनकी सारी तैयारी और भूमिका का अंतिम लक्ष्य ग्लोवल इन्वेस्टर्स समिट में पूरा हो सकता है. राजनीतिक रूप से तो पीएम मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के आगमन के साथ ही मुख्यमंत्री का अपना पॉलिटिकल टारगेट सफल हो गया है.

    पीएम नरेंद्र मोदी समिट के एक दिन पूर्व राजधानी भोपाल पहुंचगे. यह पहला अवसर है जब पीएम, बीजेपी के विधायकों और सांसदों के साथ सीधा संवाद करने वाले हैं. पीएम का संवाद कई मायने रखता है. पीएम की कार्यशैली ऐसी है कि, उनके हर कदम के मायने परिणाम के बाद ही स्पष्ट होते हैं. उनकी वर्किंग और शैली को समझने में पॉलिटिकल पंडित भी चूक जाते हैं.

    इसमें कोई दो राय नहीं है कि, एमपी में इन्वेस्टमेंट की अनंत संभावनाएं हैं. यह संभावनाएं ही बताती है कि, अभी तक इनका दोहन नहीं किया गया है. हर GIS में पंच लाइन बदल दी जाती है. अभी तक फ्यूचर रेडी स्टेट कहा जा रहा था और अब अनंत संभावनाओं का प्रदेश कहा जा रहा है.

    GIS की तैयारी में प्रशासन का अतिउत्साह भी देखा जा रहा है. राजधानी को सजाया संवारा जा रहा है, भिखारियों को भगाया जा रहा है, सड़कों को साफ सुथरा किया जा रहा है. जहां कचरा दिख सकता है वहां नेट भी लगाया जा रहे हैं.सड़कों के किनारे चित्रकारी भी हो रही है. होर्डिंग्स पर तो GIS के ही पोस्टर दिखाई पड़ते हैं. होर्डिंग पर अनंत संभावनाएं दिखाना जितना आसान है, जमीन पर इन्वेस्टमेंट उतना ही कठिन है.

    GIS से शुरू इन्वेस्टमेंट के प्रस्ताव जमीन पर उतरने के लिए ब्यूरोक्रेटिक कमिटमेंट सबसे ज्यादा जरूरी है. पॉलिटिकल गवर्नमेंट पॉलिसी बनाती है. असल इंप्लीमेंट तो ब्यूरोक्रेसी के ही हाथ में होता है. एमपी में इन्वेस्टमेंट का इतिहास तो बहुत सुखद नहीं रहा है.  GIS तो हर साल होती है लेकिन उनके नतीजे जमीन पर दिखाई नहीं पड़ते हैं. 

    इन्वेस्टमेंट की सबसे बुनियादी बात इन्वेस्टर के लिए शासन, प्रशासन से सुविधा और धंधे में लाभ की गारंटी ही होती है. सस्ती बिजली, पानी, ट्रांसपोर्टेशन, लेबर जिन राज्यों में होता है वहां इन्वेस्टमेंट के लिए समिट की आवश्यकता ही नहीं होती. महाराष्ट्र, गुजरात इन्वेस्टमेंट में ट्रेडिशनल रूप से काफी आगे रहे हैं और आज भी वहां इन्वेस्टमेंट 365 दिन 24*7 का विषय होता है. 

    समिट में भाग लेने वाले इन्वेस्टर कमोवेश वही होते हैं, जो सभी राज्यों में पहुंचते हैं. टाटा, बिरला, अंबानी, अडानी देश के औद्योगिक विकास के चेहरे हैं. जिस GIS में इनकी भागीदारी होती है, वह प्रथम दृष्टि में सफल मान ली जाती है. इन्वेस्टमेंट प्रस्ताव के आंकड़े तो हमेशा से बहुत आकर्षक होते हैं. इनका आंकलन तो तब होता है जब जमीन पर पहुंचते पहुंचते यह प्रस्ताव अपनी मौत मर जाते हैं. 

    जब भी GIS करीब आती है तब सरकारें नई-नई नीति लाती हैं. MSME के लिए पॉलिसी आती है और स्टार्टअप की भी. मध्य प्रदेश सरकार ने भी नई पॉलिसी घोषित की है. पॉलिसी के मामले में मध्य प्रदेश किसी भी राज्य से पीछे नहीं हो सकता. जमीन पर इन्वेस्टमेंट के मामले में जरूर मध्य प्रदेश को अभी बहुत आगे जाना है. 

    समिट के लिए शहर को सजाने संवारने से ज्यादा अगर शासन-प्रशासन इस बात को साबित करें कि, मध्य प्रदेश में तुलनात्मक रूप से इन्वेस्टर्स के लिए पानी, बिजली, ट्रांसपोर्टेशन, लेबर सस्ता है, उद्योगों में कास्टिंग कम आएगी. जो भी इन्वेस्ट करना चाहता है, उसे स्वागत से नहीं, लागत की कमी से प्रभावित किया जा सकता है.

    मध्यप्रदेश देश के केंद्र में है. जमीन तो यहां पर्याप्त मात्रा में है लेकिन फिर भी अभी तक प्रदेश का औद्योगीकरण वांछित स्तर तक नहीं हो पाया तो इसके पीछे कोई बुनियादी ऐतिहासिक कारण ही होंगे. जब तक इन कारणों को दूर नहीं किया जाएगा, तब तक GIS के सफल आयोजन से भी ज़मीनी हकीकत नहीं बदली जा सकेगी.

    मध्य प्रदेश में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट की शुरुआत दिग्विजय सिंह के कार्यकाल से हुई है. पहली समिट खजुराहो में आयोजित की गई थी. उसके बाद तो शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में कोई साल नहीं था जबकि GIS नहीं आयोजित की गई हो. हर साल कई लाख करोड़ के इन्वेस्टमेंट के प्रस्ताव भी प्रचारित किए जाते रहे हैं लेकिन जमीन पर वास्तविकता अगर बदली होती तो आज फिर सरकार को यह कहने की आवश्यकता नहीं पड़ती कि, एमपी अनंत सम्भवानाओं का प्रदेश है.

    अब तक सारी संभावनाओं का दोहन हो जाना चाहिए था. मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट के लिए कमिटमेंट दिखाई तो पड़ रहा है लेकिन पॉलिसी के लेवल पर बेहतर प्रयास भी तब तक सफल नहीं होंगे जब तक ब्यूरोक्रेटिक कमिटमेंट सुनिश्चित नहीं किया जा सकेगा. अगर इन्वेस्टमेंट चाहिए तो फिर ब्यूरोक्रेटिक कमिटमेंट सुधारना ही पड़ेगा.

   मध्य प्रदेश के लिए यही सबसे सही समय है, जब देश के प्रधानमंत्री का प्रदेश के विकास के लिए कमिटमेंट जग जाहिर है. ‘मोदी के मन में एमपी और एमपी के मन में मोदी’, भाजपा की नई सरकार के गठन का आधार रहा है. भिखारी भगाने से अगर इन्वेस्टमेंट सुनिश्चित हो सकता है तो किसी राज्य में भिखारी नहीं होते. भविष्य और संभावनाओं में जीते हुए तो मनुष्य अपना वर्तमान गँवा देता है. जीना वर्तमान में पड़ेगा. ब्रांडिंग संभावनाओं की नहीं, वर्तमान सुविधाओं की करना होगी. 

    मोदी है तो मुमकिन है, मोहन का अपना सम्मोहन है, इन्वेस्टमेंट के एमपी कुम्भ के लिए यह सबसे अनुकूल परिस्थिति और सत्ता ग्रह की गणना है. एमपी तो यही चाहता है कि  यह इन्वेस्टर्स समिट सफल हो और संभावनाओं का इन्वेस्टमेंट जमीन पर उतरता हुआ दिख सके.