इस घटना के बाद सीमा पर दोनों देशों की सेनाओं का बड़ा जमावड़ा है..!
चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग का जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लेने का कोई स्पष्ट कारण तो नहीं बताया गया है, मगर उनकी अनुपस्थिति के कई संभावित कारण हो सकते हैं। यह तो सभी जानते हैं कि अब भारत और चीन के बीच कूटनीतिक संबंधों में दरार आ गई है, खासकर 2020 में गलवान घाटी में दोनों देशों के बीच सैन्य झड़प के बाद स्थिति असामान्य हो गई है। इस घटना के बाद सीमा पर दोनों देशों की सेनाओं का बड़ा जमावड़ा है।
शी के नहीं आने का भारत के लिए यह संकेत हो सकता है कि दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच हो रही मौजूदा बातचीत के बावजूद सीमा विवाद का समाधान जल्द निकलने वाला नहीं है। चीन के राष्ट्रपति की अनुपस्थिति इस ओर भी इशारा कर रही है कि चीन संभवतः नहीं चाहता कि भारत की अध्यक्षता में जी-20 शिखर सम्मेलन सफल रहे। पिछले कुछ वर्षों में दुनिया में सामरिक एवं आर्थिक दोनों मोर्चों पर भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है। चीन ने रूस के साथ मिलकर मंत्री-स्तरीय बैठकों में सदस्य देशों के बीच आम सहमति स्थापित करने में खलल डाला है।वैसे भी चीन जी-20 समूह में अधिक रुचि नहीं लेना चाहता है और उसका ध्यान केवल ब्रिक्स के विस्तार पर है ताकि अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों के गठबंधन को चुनौती दी जा सके।
देखा जाए तो अस्तित्व में आने के बाद एक समूह के रूप में ब्रिक्स ने कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं की है। उदाहरण के लिए चीन अमेरिकी मुद्रा डॉलर की प्रमुखता वाली अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली का विकल्प खोजने का प्रयास कर रहा है, मगर वर्तमान में पूंजी नियंत्रण पर चीन की स्थिति और इसकी वित्तीय प्रणाली में कमजोरी को देखते हुए नहीं लगता कि डॉलर का विकल्प खोजना उसके लिए इतना सरल होगा।एक प्रमुख बात यह भी है कि पश्चिमी देशों से संबंध तोड़ना स्वयं चीन के हित में नहीं है। यह भी संभव है कि रूस को समर्थन देने के विषय पर पश्चिमी देशों के नेताओं के प्रश्नों से बचने के लिए शी ने भारत में जी-20 सम्मेलन में हिस्सा नहीं लेने का निर्णय किया हो।
जी-20 शिखर सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति की अनुपस्थिति आयोजन को थोड़ा फीका कर देगी। यह भी संभव है कि शुरू से ही चीन और रूस की आपत्तियों को देखते हुए उनके नेताओं की अनुपस्थिति से सम्मेलन के अंत में संयुक्त वक्तव्य जारी करना कठिन हो जाएगा।
यद्यपि, यह अभी स्पष्ट नहीं है कि भारत की अध्यक्षता में दुनिया कितनी आगे बढ़ेगी, मगर कुछ विषयों पर प्रगति अवश्य हो रही है। ध्यान देने योग्य है कि ऋण स्थिरता के संदर्भ में चीन का सहयोग आवश्यक होगा। मगर चीन किसी तरह का नुकसान नहीं उठाना चाहता है क्योंकि उसका कहना है कि निम्न आय वाले देशों को दिए गए ऋण वाणिज्यिक श्रेणी में आते हैं।
जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लेने के शी के निर्णय से दुनिया में एक बढ़ती महाशक्ति के रूप में चीन की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी नुकसान पहुंचेगा। यह निर्णय चीन के शीर्ष नेतृत्व के प्रति अविश्वास को जन्म देगा। वर्तमान परिस्थितियों का आकलन करने के बाद भारत को जी-20 जैसे समूहों की आवश्यकताओं के दायरे से बाहर जाकर चीन के साथ निपटना होगा।निकट भविष्य में भारत और चीन के द्विपक्षीय संबंधों में सुधार की गुंजाइश नहीं है। चीन से आयात पर भारत की निर्भरता काफी अधिक है, इसलिए आर्थिक जोखिम की आशंका भी बनी हुई है। चीन से आयात पर निर्भरता कम करने के साथ-साथ भारत को सैन्य एवं कूटनीतिक स्तर पर भी पूरी सावधानी से कदम बढ़ाने होंगे।