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भारत : मोटापे और भुखमरी दोनों से ग्रस्त

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 03 Mar

सार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात की 119वीं श्रृंखला में देश में बढ़ती मोटापे की समस्या पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि पिछले कुछ वर्षों में मोटापे के मामले दोगुने हो गए हैं और भारत में मोटापे की व्यापकता पर ध्यान देने की तत्काल आवश्यकता है, प्रधानमंत्री ने कहा कि हम सब मिलकर छोटे-छोटे प्रयासों से इस चुनौती से निपट सकते हैं..!!

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विस्तार

हमारे देश भारत में एक तरफ अनावश्यक और अत्यधिक खाने से बढऩे वाला मोटापे से होने वाली बीमारियां राष्ट्रव्यापी समस्या बनती जा रही हैं, वहीं दूसरी तरफ आबादी का एक बड़े हिस्सा दो वक्त का भरपेट भोजन नसीब नहीं होने से कुपोषित होकर रोगग्रस्त हो रहा है। यदि मोटापा खत्म या नियंत्रित हो जाए तो इससे भुखमरी व कुपोषण के लिए धन की कमी पूरी हो सकती है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात की 119वीं श्रृंखला में देश में बढ़ती मोटापे की समस्या पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि पिछले कुछ वर्षों में मोटापे के मामले दोगुने हो गए हैं और भारत में मोटापे की व्यापकता पर ध्यान देने की तत्काल आवश्यकता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हम सब मिलकर छोटे-छोटे प्रयासों से इस चुनौती से निपट सकते हैं। जैसे एक तरीका है कि खाने के तेल में 10 प्रतिशत की कमी करना। भोजन में खाद्य तेल की खपत को कम करने के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए प्रधानमंत्री ने देश के दस प्रसिद्ध लोगों को नामांकित किया। मोटापा सिर्फ सेहत का मसला नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरा है। एक अध्य्यन के अनुसार भारत में मोटापे का आर्थिक बोझ 2030 तक बढक़र 6.7 लाख करोड़ रुपए प्रति वर्ष हो जाएगा।

यह लगभग 4700 रुपए प्रति व्यक्ति होगा, जोकि जीडीपी का 1.57 प्रतिशत है। ग्लोबल ओबेसिटी ऑब्जर्वेटरी के अनुसार, 2019 में मोटापे का आर्थिक प्रभाव 2.4 लाख करोड़ रुपए था। यह लगभग 1800 रुपए प्रति व्यक्ति और जीडीपी का 1.02 प्रतिशत था। 2060 तक यह आंकड़ा बढक़र 69.6 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है, जो प्रति व्यक्ति 44200 रुपए और जीडीपी का 2.5 प्रतिशत होगा। यह अध्य्य्न बताता है कि मोटापा सिर्फ एक स्वास्थ्य समस्या नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी बड़ा खतरा है। 

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार पुरुषों और महिलाओं में क्रमश: 44 प्रतिशत और 41 प्रतिशत लोग अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त हैं। पिछले सर्वेक्षण में यह आंकड़ा क्रमश: 37.7 प्रतिशत और 36 प्रतिशत था। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि मोटापे की समस्या तेजी से बढ़ रही है। विश्व मोटापा महासंघ ने कहा कि भारत में दुनिया में मोटे व्यक्तियों का तीसरा सबसे बड़ा प्रतिशत है। किसी व्यक्ति को तब मोटापे की श्रेणी में रखा जाता है जब उसका बीएमआई 27.5 से अधिक हो। पिछले 10 वर्षों में, भारत की मोटापे की दर लगभग तीन गुनी हो गई है, जिसका असर देश की शहरी और ग्रामीण दोनों आबादी पर पड़ रहा है। मोटापे का वैश्विक संकट सभी उम्र के लोगों को प्रभावित कर रहा है।

एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में मोटापे की दर अधिक है, जो देश के तेज आर्थिक विस्तार और बदलती जीवन शैली मानकों के साथ मेल खाता है। भारत में 100 मिलियन से अधिक लोग मोटापे से जूझ रहे हैं। भारत में 12 प्रतिशत पुरुष और 40 प्रतिशत महिलाएं पेट के मोटापे से ग्रस्त हैं। केरल (65.4 प्रतिशत), तमिलनाडु (57.9 प्रतिशत), पंजाब (62.5 प्रतिशत) और दिल्ली (59 प्रतिशत) में यह दर बहुत ज्यादा है। मध्य प्रदेश (24.9 प्रतिशत) और झारखंड (23.9 प्रतिशत) में यह दर कम है। आंकड़ों के अनुसार, भारत में पहले से ही 14.4 मिलियन बच्चे मोटे हैं। भारत में बचपन में मोटापे के प्राथमिक कारणों में खराब आहार विकल्प, निष्क्रियता और एक गतिहीन जीवन शैली शामिल है। प्रोसेस्ड स्नैक्स और फास्ट फूड की बढ़ती लोकप्रियता के कारण बच्चे उच्च कैलोरी, कम पोषक तत्व वाले आहार खा रहे हैं, जिससे वजन बढ़ता है और मोटापा होता है।

बचपन में मोटापे के परिणाम व्यापक हैं और लंबे समय में बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। मोटे बच्चों को टाइप 2 मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और सांस लेने में कठिनाई जैसी दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएं होने का उच्च जोखिम होता है। इसके अतिरिक्त उन्हें निराशा और खराब आत्मसम्मान सहित मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव होने की अधिक संभावना है, जो उनके सामान्य स्वास्थ्य को खराब कर सकता है। विडंबना यह है कि देश मोटापे से होने वाली चुनौतियों से जूझ रहा है, वहीं कुपोषण की समस्या से भी जूझ रहा है। 

ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट 2024 में 127 देशों में भारत का स्थान 105वां है। हालांकि पिछले सालों की तुलना में इस साल भारत की रैंक में सुधार हुआ है। लेकिन भारत अभी भी गंभीर भूख की समस्याओं वाले देशों में शामिल है। 2024 की रिपोर्ट में भारत का स्कोर 27.3 है जो भुखमरी के एक गंभीर स्तर को दर्शाता है। रिपोर्ट में हाल के वर्षों में भारत में कुपोषण के प्रसार में मामूली वृद्धि का उल्लेख किया गया है। भारत की रैंकिंग अपने पड़ोसी देशों श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार और बांग्लादेश से पीछे है, जबकि पाकिस्तान और अफगानिस्तान से केवल ऊपर है। श्रीलंका 56, नेपाल 68 और बांग्लादेश 84वें स्थान पर भारत से काफी आगे हैं। भारत में कुपोषण की जो स्थिति है वो किसी से छिपी नहीं है। यहां बहुतों को तो पेट भर खाना भी नहीं मिलता और जिनको मिल भी रहा है उनके भोजन में पोषण की भारी कमी है। इसका खामियाजा नन्हें बच्चों को उठाना पड़ रहा है। भारत को अभी भी बाल कुपोषण जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें विश्व स्तर पर बच्चों में दुबलापन (18.7 प्रतिशत) सबसे अधिक है।

देश में बच्चों के बौनेपन की दर 35.5 प्रतिशत, पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 2.9 प्रतिशत और कुपोषण का प्रसार 13.7 प्रतिशत है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक रिपोर्ट में भारत में पोषण की स्थिति गंभीर बताई गई है। रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक देश में पांच वर्ष से कम उम्र के 31.7 फीसदी बच्चे स्टंटिंग का शिकार हैं। मतलब कि ये बच्चे अपनी उम्र के लिहाज से ठिगने हैं। यह रिपोर्ट ‘लेवल्स एंड ट्रेंड इन चाइल्ड मालन्यूट्रिशन 2023’ संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ), विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और वल्र्ड बैंक द्वारा संयुक्त रूप से जारी की गई थी। बाल कुपोषण एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है, जिसमें दुबलापन और बौनापन दोनों ही खतरनाक रूप से उच्च स्तर पर हैं। इंपीरियल कॉलेज लंदन द्वारा की गई इस रिसर्च के मुताबिक भारतीय किशोर, नीदरलैंड के समान आयु वर्ग के बच्चों की तुलना में 15.2 सेमी ठिगने हैं। इसी तरह यदि वेस्टिंग यानी ऊंचाई के लिहाज से वजन को देखें तो देश में भारत में पांच वर्ष या उससे कम आयु के 18.7 फीसदी बच्चों का वजन उनकी ऊंचाई के हिसाब से कम था।

मतलब कि 2020 में इस आयु वर्ग के देश के करीब 2.2 करोड़ बच्चे वेस्टिंग का शिकार थे। मोटापे की समस्या से निपटना बहुत मुश्किल काम नहीं है। जीवनशैली और खानपान में बदलाव के साथ नियमित व्यायाम इत्यादि से इस समस्या को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। यह समस्या व्यक्तिगत है, इसलिए देश के हर व्यक्ति की निजी जिम्मेदारी है कि वह अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखे। ऐसा करने से व्यक्ति और उसके परिवार के साथ देश का भी नुकसान नहीं होगा। असल चुनौती तो कुपोषण और भुखमरी की भयावहता से निपटने की है। यह समस्या मोटापे की तरह व्यक्तिगत नहीं है। इसके लिए मौजूदा और पिछली केंद्र की सरकारों के साथ राज्यों की सरकारें भी जिम्मेदार हैं। इस समस्या से निपटने के लिए धन और भ्रष्टाचार रहित पारदर्शी नीति की आवश्यकता है। विशेषकर मोटापे से होने वाले आर्थिक नुकसान को रोक कर कुपोषण और भुखमरी जैसी अमानवीय समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। राजनीतिक दल जब तक अपने निहित क्षुद्र स्वार्थों को छोड़ कर ऐसे राष्ट्रीय मुद्दों पर एकराय नहीं होंगे, तब तक इस तरह की समस्याएं देश की विडंबनाओं को उजागर करने के साथ ही देश की तरक्की के कथित पैमानों को मुंह चिढ़ाती रहेंगी।