• India
  • Sat , Apr , 19 , 2025
  • Last Update 05:46:AM
  • 29℃ Bhopal, India

सन्मति की विरासत से अलग है, संपत्ति की विरासत

सार

महात्मा गांधी और सरदार वल्लभ भाई पटेल की विरासत के लिए कांग्रेस और भाजपा में लड़ाई चल रही है. कांग्रेस का गुजरात महाधिवेशन इसी विरासत पर अपना दावा मजबूत करने का प्रयास है..!!

janmat

विस्तार

    अधिवेशन में पुरज़ोर ढंग से गांधी और पटेल को कांग्रेस की विरासत बताया गया. इस विरासत को हथियाने के लिए बीजेपी को कटघरे में खड़ा किया गया. विरासत की बातें खूब हुई लेकिन पार्टी को गुजरात में अपना खंडहर देखकर कुछ अनुभूति शायद नहीं हुई.

    संपत्ति की विरासत होती है, पार्टी की विरासत होती है  लेकिन विचारों की विरासत केवल बातों से नहीं हो सकती. काम, विरासत से जोड़ता है. सन्मति की कभी विरासत नहीं होती. हर लीडर की अपनी सन्मति होती है और यह विरासत में हस्तांतरित नहीं होती.

    स्वतंत्रता और भारत निर्माण के महानायकों की विरासत आज बीजेपी के साथ जुड़ रही है तो यह इसीलिए संभव हुआ क्योंकि कांग्रेस की पीढ़ियों ने विरासत की सोच और विचार पर आगे चलने की सन्मति नहीं दिखाई. सम्मेलनों और महाधिवेशनों में गांधी, पटेल और डॉ. आंबेडकर के फोटो लगाकर विरासत पर दावा करने से कोई राजनीतिक लाभ नहीं होगा. इन महान नेताओं की विरासत से कांग्रेस अपना सैद्धांतिक जोड़ भले बताने की कोशिश करें लेकिन पार्टी  नेतृत्व और कांग्रेस सरकारों के आचरण इस विरासत पर खरे नहीं उतरते.

    सबसे पहले तो कांग्रेस को भारत की विरासत से अपने आप को जोड़ना होगा. सरदार पटेल की विरासत तो बीजेपी हथिया चुकी है. इसी के चलते गुजरात बीजेपी का गढ़ बना. सरदार पटेल की विश्व की सबसे बड़ी मूर्ति पीएम मोदी ने स्थापित की थी. तब उनके इस काम की प्रासंगिकता समझ नहीं आई थी. क्योंकि पटेल की मूर्ति मोदी ने स्थापित करवाई है इसलिए राहुल गांधी और कांग्रेस नेतृत्व ने इस मूर्ति के दर्शन करने की कभी जरूरत नहीं समझी.

    पटेल के मूर्ति स्थल को बीजेपी तीर्थ के रूप में देश - दुनिया में स्थापित करने पर जुटी हुई है. उस पर न कभी राहुल गांधी गए हैं और ना ही कांग्रेस का कोई बड़ा नेता. गुजरात में अगर महाधिवेशन करके कांग्रेस सरदार पटेल की विरासत पर अपने दावे को मजबूत करना चाहती है तो फिर उसे सरदार पटेल की मूर्ति पर जाकर दर्शन करने से परहेज क्यों करना चाहिए.  सरदार पटेल को राजीव गांधी की सरकार तक भारत रत्न नहीं मिल सका. गांधी परिवार का पटेल के प्रति यह उनका दृष्टिकोण बताता है. पटेल को मरणोपरांत 41 साल बाद भारत रत्न मिल सका.

    ऐसी ही गलती गांधी परिवार ने अयोध्या में राम मंदिर में नहीं जाकर की है. सनातन की विरासत से गांधी परिवार की दूरी कांग्रेस को न केवल नुकसान पहुंचा रही है बल्कि उसका जनाधार भी लगातार कम हो रहा है. सनातन की विरासत का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और धार्मिक आयोजन महाकुंभ प्रयागराज में संपन्न हुआ राहुल गांधी या उनके परिवार का कोई भी सदस्य महाकुंभ में जाकर संगम में डुबकी लगाने की विरासत से अपने को दूर रखा.

    सरदार पटेल की पहल पर सोमनाथ में भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया था. बीजेपी तो पटेल की विरासत को अपने साथ जोड़ते हुए अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का श्रेय लेती है. बीजेपी यहां तक कहती हैकि, अगर अयोध्या का मामला भी सरदार पटेल के अधीन में होता तो उसका निराकरण भी बहुत पहले हो चुका होता.

    कश्मीर में धारा 370 को हटाने के निर्णय को भी बीजेपी, सरदार पटेल की विरासत वाला कदम बताती है. उनका कहना है कि, देश की सभी रियासतों के मामले सरदार पटेल देख रहे थे, केवल कश्मीर रियासत का मामला पंडित जवाहरलाल नेहरू के अधीन था. और आखिरकार कश्मीर में ही मामला बिगड़ गया. धारा 370 का अभिशाप लागू हुआ जिसे बीजेपी ने हटाने का निर्णय लिया.

    विरासत का संघर्ष केवल बातों से नहीं लड़ा जा सकता. विरासत के विचार सन्मति और संकल्पों पर काम करने की जरूरत होती है. डॉ भीमराव अंबेडकर की विरासत पर भी कांग्रेस अपना दावा मानती है जबकि उनके पंच तीर्थ के विकास का काम भाजपा द्वारा संपन्न किया गया है. पंडित जवाहरलाल नेहरू को छोड़कर किसी भी स्वतंत्रता आंदोलन या देश के निर्माण में लगे महापुरुषों की पॉलीटिकल पार्टी परिवार की पार्टी के रूप में स्थापित नहीं हुई है.

    कांग्रेस अकेली पार्टी है, जिस पर आजादी के समय से अभी तक गांधी परिवार का ही नियंत्रण है. परिवारवाद की राजनीति महानायकों का आदर्श नहीं था. बातें कितनी भी की जाएं लेकिन कांग्रेस पर गांधी परिवार का कब्जा यही साबित करता है कि, इस पार्टी में महापुरुषों की नही बल्कि परिवार की विरासत को ही सहेज कर रखने की कोशिश की जाती है.

सरदार पटेल की विरासत तो कांग्रेस से पूरी तौर से जा चुकी है. डॉक्टर अंबेडकर की विरासत पर भी बीजेपी ने काम कर करके अपना दावा मजबूत कर लिया है. अब तो महात्मा गांधी की विरासत पर भी कांग्रेस में खतरे की घंटी बजती दिखाई पड़ रही है. केवल महापुरुषों का नाम लेकर विरासत नहीं बचाई जा सकती.

    वर्तमान नेतृत्व में इतनी बौद्धिक क्षमता, उदारता और विशालता होनी चाहिए जो महापुरुषों के विचारों को सही परिपेक्ष में समझ सके, सही दिशा में काम कर सके.

    जो पार्टी जाति, क्षेत्र और भाषा से ऊपर उठकर सबके लिए काम करने का नैतिक बल दिखा सके. नेतृत्व ऐसा चाहिए जिसकी विश्वसनीयता असंदिग्ध हो. जिस पर भेदभाव और तुष्टिकरण के आरोप कोशिशों के बाद भी चिपकाए ना जा सके. राहुल गांधी तो इसके विपरीत सुविधा के हिसाब से बातें करते हैं.

    यह कहने मात्र से कोई लाभ नहीं होगा कि, कांग्रेस दलित, मुस्लिम, ब्राह्मण में लगी रही और ओबीसी छिटक गए. मंडल कमीशन का राजीव गांधी ने विरोध कर जो विरासत बनाई है, उस पर कांग्रेस को सबसे पहले तो माफी मांगनी पड़ेगी.

    भारत में ओबीसी राजनीति के जनक के रूप में विश्वनाथ प्रताप सिंह को देखा जाता है. विश्वनाथ प्रताप सिंह भी पूर्व कांग्रेसी ही थे. राजीव गांधी से मतभेदों के कारण उन्होंने पार्टी छोड़ी. कांग्रेस नेतृत्व में इतनी उदारता दिखनी चाहिए कि, अगर हमारा कोई नेता विचार के रूप में किसी विरासत के लिए स्वीकारा जा सकता है तो उस पर चलने से कोई एतराज नहीं होना चाहिए.

    देश में ओबीसी पॉलिटिक्स की जब भी चर्चा होगी तो बी पी सिंह और मंडल कमीशन को नकारा नहीं जा सकता. कांग्रेस ओबीसी की विरासत तो लेना चाहती है लेकिन बी पी सिंह का नाम लेने से परहेज करती है. विचारों में ऐसा ही दोगलापन किसी भी पार्टी को विरासत से दूर कर देता है.

    महापुरुषों की विरासत की जंग कांग्रेस हारती हुई दिखाई पड़ रही है. केवल जवाहरलाल नेहरू ही कांग्रेस के विरासत के रूप में बचे रह सकते हैं. वह भी शायद इसलिए कि, उनका परिवार ही पार्टी पर काबिज़ है. जब तक वर्तमान को सन्मति नहीं मिलेगी तब तक विरासत की दम पर कोई भी पार्टी ज्यादा लंबे समय तक नहीं चल पाएगी.