लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने अपना मेनिफेस्टो जारी कर दिया है. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस न्यायपत्र 2024 के नाम से जारी इस मेनिफेस्टो में पृष्ठ आठ पर लिखा हुआ है कि ‘भारत के इतिहास और लोकतांत्रिक परंपराओं को समझते हुए कांग्रेस का मानना है कि तानाशाही या बहुसंख्यकवाद के लिए देश में कोई जगह नहीं है’..!!
कांग्रेस के मेनिफेस्टो के अंतिम पृष्ठ पर लिखा गया है कि ‘देश में माहौल नफरत भरा एवं विभाजनकारी हो गया है, संवैधानिक मूल्यों को पृष्ठभूमि में धकेल दिया गया है एवं बहुसंख्यकवाद हावी हो गया है. अनउदारवाद और अधिनायकवाद का भी मेनिफेस्टो में जिक्र किया गया है.
कांग्रेस वैचारिक रूप से क्या मृत हो चुकी है? लोकतंत्र की संसदीय प्रणाली बहुमत से शासन की ही प्रणाली है. बहुसंख्यक अगर अपने मताधिकार का उपयोग कर बहुमत से कोई सरकार चुनते हैं तो कांग्रेस की बहुसंख्यकवाद की परिभाषा के आधार पर क्या ऐसी सरकार तानाशाही की सरकार होगी? कांग्रेस का पूरा मेनिफेस्टो सभी वर्गों को न्याय देने की परिकल्पना पर आधारित है. जातिगत जनगणना को हिस्सेदारी न्याय का आधार बताते हुए ‘जिसकी जितनी आबादी उसको उतनी हिस्सेदारी’ का विचार दिया गया है. इस विचार में भी बहुसंख्यकवाद या बहुमत को सबसे ज्यादा हक की घोषणा है, फिर बहुसंख्यकवाद को तानाशाही कैसे निरूपित किया जा सकता है?
कांग्रेस मेनिफेस्टो में यह भी कह रही है कि ‘यह लोकसभा चुनाव एक दलीय तानाशाही पर लोकतंत्र का चुनाव है’. लोकतंत्र में दलीय प्रणाली जनादेश के लिए जनता के सामने जाती है. जब दलीय प्रणाली को ही कांग्रेस तानाशाही मानती है तो फिर तो भारत के लोकतंत्र को आजादी के बाद से ही कांग्रेस ने तानाशाही का स्वरूप दिया है. इस मेनिफेस्टो में लच्छेदार शब्दों में कांग्रेस ने देश के लोगों से कहा है कि ‘आपके सामने जो विकल्प 2019 में थे वह आज भी मान्य हैं, विकल्प कांग्रेस या बीजेपी नहीं बल्कि उससे अधिक है,आपको चुनना है लोकतांत्रिक सरकार या सत्तावादी शासन के बीच, आपको चुनना है स्वतंत्रता या भय के बीच, आपको चुनना है सभी के लिए समृद्धि या कुछ लोगों के लिए धन के बीच, आपको चुनना है न्याय और अन्याय के बीच’.
अगर कांग्रेस मान रही है कि विकल्प 2019 की तरह ही है तो फिर 2024 का परिणाम 2019 से आगे ही जाएगा. इससे यह भी साबित होता है कि कांग्रेस इन पांच सालों में कोई नया विकल्प, नया विचार भी जनता के सामने नहीं रख पाई है. ऐसे में नए नतीजे की उम्मीद बेमानी ही कही जायेगी.
जनादेश से चुनी गई किसी सरकार को लोकतांत्रिक और किसी को सत्तावादी केवल कांग्रेस ही अलग-अलग बता सकती है, जैसे आलू पेड़ पर उगते हैं, वैसे ही कांग्रेस की सरकार लोकतांत्रिक सरकार होगी और जनादेश किसी दूसरे दल को मिला तो वह सरकार सत्तावादी होगी. कांग्रेस का मेनिफेस्टो ही तानाशाही विचार, तानाशाही सोच और तानाशाही चिंतन का दस्तावेज दिखाई पड़ रहा है. कांग्रेस को चुना जाए तो सब कुछ डेमोक्रेटिक और बहुसंख्यकवाद अगर कांग्रेस को नहीं चुने तो फिर कांग्रेस के मुताबिक दूसरी सरकार तानाशाही है.
कांग्रेस का मेनिफेस्टो यही साबित कर रहा है कि कांग्रेस की लोकतांत्रिक आत्मा दिवंगत हो चुकी है. कांग्रेस वैचारिक धरातल में रसातल पर पहुँच चुकी है. कम्युनिस्ट विचारधारा कांग्रेस को सर्वधर्म समभाव से दूर ले जा रही है. जब कांग्रेस अपने मेनिफेस्टो में ही बहुसंख्यकवाद को तानाशाही कह रही है तो फिर बहुसंख्यकों के जनादेश से बनी सरकार को और चुने गए नेता को तानाशाह बताना उनकी बुनियादी सोच है.
भारत में तुष्टिकरण और अल्पसंख्यकवाद की राजनीति जब तक चरम पर रही तब तक कांग्रेस सत्ता का सुख भोगती रही. भारत के बहुसंख्यकों ने जब अपनी राजनीतिक चेतना को जनादेश में परिवर्तित किया तो भारत की राजनीतिक धुरी में बदलाव आया. कांग्रेस पहले तो सोच भी नहीं सकती थी कि बीजेपी की लीडरशिप में देश में कोई दूसरी सरकार बन सकती है. जब लगातार दो बार बहुसंख्यकों ने अपने जनादेश की मोहर लगाई तो फिर तीसरी बार के चुनाव तक तो कांग्रेस राजनीति के पागलपन के स्तर तक पहुंच गई.
भारत में सनातन धर्म के अनुयायी बहुसंख्यक हैं. बहुसंख्यकों और उनके धर्म सनातन पर लगातार कांग्रेस और उसके सहयोगी हमला करते रहे हैं. उत्तर भारत में सनातन धर्म का समर्थन लेने के लिए मंदिर-मंदिर जाने का पाखंड रचा जाता है और दक्षिण भारत में सनातन के खिलाफ आवाज उठाने वालों के साथ खड़े हुआ जाता है. मेनिफेस्टो में बहुसंख्यकवाद को तानाशाही बताने के बाद तो अब सारी बात लगभग स्पष्ट हो गई है कि कांग्रेस और उसके सहयोगी भारत में सनातन धर्म और उसके अनुयायियों की राजनीतिक जागरूकता और बहुमत के जनादेश को तोड़ने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. गठबंधन की राजनीति भी बहुसंख्यकवाद को मिटाने की ही साजिश है. बहुसंख्यकों को जातियों में बांटने का षड्यंत्र भी कांग्रेस की इसी रणनीति का हिस्सा है.
कांग्रेस भारत की राजनीति में बहुसंख्यकवाद को तानाशाही मानती है लेकिन जम्मू-कश्मीर में बहुसंख्यक समुदाय को विशेष संरक्षण देने के धारा 370 के कानून को अपना धर्म मानती रही है. जब बहुसंख्यकों की मोदी सरकार ने इस कानून को रद्द किया तो फिर कांग्रेस का तुष्टिकरण बिलबिला उठा. बहुसंख्यकवाद को तानाशाही बताने वाली कांग्रेस ने बहुसंख्यक सनातन धर्मियों की आस्था के प्रतीक श्रीराम के अयोध्या में मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा का विरोध भी इसी सोच के आधार पर किया है जो अब मेनिफेस्टो में ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ में देश के सामने आ गया है.
कांग्रेस के लिए जब बहुसंख्यकवाद तानाशाही है तो फिर लोकतांत्रिक जनादेश से बहुमत हासिल करने वाली उनसे अलग व्यवस्था को तानाशाही निरूपित करेंगे. हर दिन कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता पार्टी छोड़ते जा रहे हैं. ऐसे सारे नेताओं के ऐसे ही वक्तव्य आते हैं कि पार्टी के अंदर सनातन के विरुद्ध माहौल है. बहुसंख्यकों की धार्मिक आस्था के प्रतीक श्रीराम के प्रति कांग्रेस के दृष्टिकोण को भी पार्टी छोड़ने वाले नेताओं ने नामंजूर किया है. कांग्रेस जब बहुसंख्यकवाद को ही तानाशाही मान रही है तो फिर देश के किन लोगों को न्याय देने के लिए मेनिफेस्टो ला रही है?
कांग्रेस वैचारिक शून्यता का शिकार हो गई है. कांग्रेस पर कम्युनिस्ट के वैचारिक प्रभाव का कब्जा हो गया लगता है. भारत के बहुसंख्यकों की आस्था के प्रति अनादर और असम्मान कांग्रेस की अंतिम यात्रा की स्क्रिप्ट सा लग रहा है. कांग्रेस द्वारा अपने मेनिफेस्टो में देश के बहुसंख्यक हिंदुओं के विचार और जनादेश को बहुसंख्यकवाद यानी तानाशाही निरूपित करना ताबूत में आखिरी कील जैसा है.