वर्तमान में नशा युवाओं के लिए फैशन बन गया है, जो दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है..!!
समाज के बदलते परिवेश में कुछ अलग करने की कामना, मानसिक तनाव और बहुत से शौक ऐसे कारण हैं जो नशे के प्रचलन को समाज में बढ़ा रहे हैं। इसका ज्यादातर शिकार हमारी युवा पीढ़ी हो रही है। वर्तमान में नशा युवाओं के लिए फैशन बन गया है, जो दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।
नशे का हानिकारक प्रभाव न केवल नशा करने वाले व्यक्ति पर पड़ता है, अपितु यह पूरे परिवार और समाज को भी खोखला करने का काम करता है। एक समय पहाड़ी राज्यों को बदनाम करने वाले भांग, अफीम और चरस जैसे खतरनाक नशे की जगह अब हर जगह ‘चिट्टे’ ने ले ली है। चिट्टा वास्तव में एक बहुत ही खतरनाक ड्रग्स है। पहाड़ी तो क्या सभी राज्यों का शायद ही कोई ऐसा जिला होगा जहां से पुलिस द्वारा चिट्टे की बरामदगी की खबर न मिली हो, खासकर सीमांत जिलों जिलों में चिट्टे का सर्वाधिक प्रकोप है, जो कि कई युवाओं के जीवन को निगल चुका है।
नशेड़ी को शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा आर्थिक रूप से भारी नुकसान उठाना पड़ता है। फिर भी न चाहते हुए भी वे इस लत से छुटकारा नहीं पा सकते। वर्तमान में हालात ऐसे बन चुके हैं कि स्कूल, कॉलेज एवं यूनिवर्सिटीज में पढऩे वाले विद्यार्थी नशाखोरी की चपेट में आने लगे हैं। नशा माफिया छात्रों को किसी तरह से बहला-फुसला कर नशे की लत लगा देता है और जब ये छात्र इस महंगे नशे को खरीदने में असमर्थ हो जाते हैं तो नशा माफिया इन बच्चों को नशा तस्करी के दलदल में धकेल देता है। अभी कुछ समय पहले ही कई छात्र इस नशाखोरी के चक्कर में पकड़े गए थे।
आजकल आधुनिकता की दौड़ में संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवार को तरजीह दी जा रही है। ऐसे में बच्चों में अकेलापन, सामाजिकता का अभाव इत्यादि के कारण बच्चों में नशे की तरफ रुचि बढ़ जाती है। अगर एकल परिवार का लडक़ा या लडक़ी नशे के जाल में फंसते हैं तो उस परिवार का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाता है। अक्सर देखने में आता है कि नशे में पड़ा छात्र झूठ बोलने लगता है एवं अपने परिवार, दोस्तों, रिश्तेदारों और समाज को धोखा देने लगता है। नशे के लिए पैसे का जुगाड़ करने के लिए चोरी, डकैती, अपने ही घर का सामान बेचना जैसी खबरें हम आए दिन अखबारों में पढ़ते रहते हैं। एक बार सिंथेटिक ड्रग्स की लत लग जाए तो इस नशे को छोड़ पाना इतना आसान नहीं होता।इसकी लत इतनी खतरनाक होती है कि अगर व्यक्ति को नशा न मिले तो यह नशेड़ी की मौत का कारण बन जाता है।
आज जरूरत है समाज में इस दानव रूपी नशे के कारोबार को खत्म किया जाए। सरकारों के प्रयास अपनी जगह हैं इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका परिवार की होती है। माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश करते समय अगर बच्चे की छोटी-मोटी गतिविधियों पर नजर नहीं रखेंगे तो बच्चे गलत संगत में पड़ कर नशे का शिकार बन सकते हैं। समय की जरूरत है कि सरकार नशे के कारोबारियों के खिलाफ कड़े कानून बनाए। शिक्षण संस्थानों में 100 मीटर के दायरे में तम्बाकू-गुटखा बेचने वालों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाए। इसके अलावा एनजीओ, धार्मिक संगठनों, सिविल सोसाइटीज, पंचायतों, शहरी निकायों, स्टूडेंट्स यूनियनों, यूथ क्लबों, नेहरु युवा क्लबों, शिक्षकों को तन-मन-धन से नशे के खिलाफ सहयोग करना चाहिए।
जब स्टूडेंट्स कॉलेज-यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेते हैं तो उनको नशे के खिलाफ वर्कशॉप और ओरिएंटेशन की विस्तृत जानकारी दी जानी चाहिए। पंजाब का उदाहरण हमारे सामने है। पंजाब अब उड़ता पंजाब कहलाता है। वहां पर नशे की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण वह अब खेलों में भी पीछे हो गया है।
जब बच्चे अपनी किशोरावस्था में हों तो उन पर माता-पिता को कड़ी नजर रखनी चाहिए। इसी अवस्था में बच्चों के फिसल जाने की आशंका बहुत होती है। जब बच्चे युवा हो जाते हैं, तब तक वे समझदार बन चुके होते हैं, उस अवस्था में नशे की ओर वे नहीं बढ़ते। युवाओं का मानस खेलों की ओर मोड़ना चाहिए। खेलों से वे अपने समय का सदुपयोग ठीक ढंग से कर पाएंगे, नशे से भी दूर रहेंगे और अपना शारीरिक-मानसिक विकास भी कर पाएंगे। नशा ऐसी बुरी आदत होती है जो अपने साथ कई अपराध लेकर आती है।