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ज़रूरी है, नकली उत्पादों की बिक्री पर नकेल- राकेश दुबे 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 31 Oct

सार

एक अजीब, अप्रमाणित बात की गणना सोशल मीडिया पर देखने को मिली है। यदि यह सत्य के ज़रा भी नज़दीक है तो अत्यंत गम्भीर बात है..!

janmat

विस्तार

एक अजीब, अप्रमाणित बात की गणना सोशल मीडिया पर देखने को मिली है। यदि यह सत्य के ज़रा भी नज़दीक है तो अत्यंत गम्भीर बात है। विषय इंटरनेट पर नकली उत्पादों की बिक्री और इस नाम पर देश में चल रही धोखाधड़ी से जुड़ता है। इस अप्रमाणित गणना के अनुसार देश में हर माह 5 से 10 हज़ार लोग इस तरह के व्यापार में धोखाधड़ी के शिकार हो रहे हैं।

कोविड दुष्काल के दौर में डिजिटल तकनीकों की उपयोगिता हर क्षेत्र में बढ़ी है. हालांकि, इनका इस्तेमाल नकली उत्पादों और सेवाओं को तैयार करने और बेचने के लिए भी हो रहा है। अमूमन, उपभोक्ता उत्पादों की गुणवत्ता के बारे में ज्यादा जानने की कोशिश नहीं करते, जिसका फायदा जालसाज उठा लेते  हैं।

इंटरनेट पर नकली उत्पादों की धड़ल्ले से हो रही बिक्री पर दिल्ली उच्च न्यायालय की एक टिप्पणी आई है, जिस पर हर उपभोक्ता और इस व्यापार से जुड़े हर उस व्यापारी को ध्यान देना चाहिए जो ईमानदारी से व्यापार करना चाहता है। न्यायालय ने ट्रेडमार्क धारकों और ऑनलाइन उत्पाद खरीदने वाले उपभोक्ताओं के हितों का रक्षा को सबसे महत्वपूर्ण बताया है।

एक निर्णय में ट्रेडमार्क उल्लंघन के मुकदमे की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर नकली उत्पादों की बिक्री चिंताजनक ढंग से बढ़ रही है। उक्त मामले में तीन ई-कॉमर्स वेबसाइटों को भी प्रतिवादी बनाया गया है।

इंटरनेट और मोबाइल फोन के बढ़ते दायरे के चलते हाल के वर्षों‍ में ई-कॉमर्स की वृद्धि अभूतपूर्व रही है। अनुमान है कि यह बाजार 2026 तक २०० से २५० बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है। अभी तो इलेक्ट्रॉनिक्स, परिधान, दवा, होटल बुकिंग, सिनेमा, किताबें, सौंदर्य प्रसाधन, फैशन और किराने आदि के लिए लोग ई-कॉमर्स का रुख कर रहे हैं।यह क्षेत्र और व्यापक होने का भी अनुमान है।

इसमें कोई शक नहीं कि उदार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की नीति ने भी इस क्षेत्र को उत्प्रेरित किया है। ऑनलाइन बाजार के विकास के साथ-साथ नकली उत्पाद और धोखाधड़ी की बढ़ती प्रवृत्ति वैध बाजार और अर्थव्यवस्था के लिए तो खतरनाक है ही। इससे जहां सरकार के राजस्व, नौकरियों, उपभोक्ताओं की सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं भी बढ़ेंगी, वहीं, संगठित अपराधों के लिए अनुकूल हालात तैयार होंगे।

आज तो जहां तकनीकी टूल्स से मूल उत्पादों को जांचा जा सकता है, वहीं एआई से उत्पादों का क्लोन तैयार कर दिया जाता है। ऐसी दशा में सही और गलत उत्पाद का चयन मुश्किल ही है। ई-कॉमर्स प्लेटफार्म और ब्रांड मालिक जहां समस्याओं के निदान में उलझे रहते हैं, वहीं जालसाज इसका भरपूर फायदा उठा लेते हैं।

 फिर उपाय क्या है? इससे निपटने के लिए आवश्यक है कि सरकारी स्तर पर भी निरंतर उत्पादों को बेहतर बनाने और नवाचार को बढ़ावा देने की दिशा में प्रयास हों। साथ ही, ई-कॉमर्स का नियमन जो आ देश की अनिवार्य ज़रूरत बनता जा रहा है को स्पष्ट और मज़बूत करना जरूरी है। सरकार को चाहिए की वह विक्रेताओं से संबंधित जानकारी और उत्पादों की गुणवत्ता को लेकर विक्रेताओं का दायित्व तुरंत तय करे।

सामानों और सेवाओं की नकल और चोरी को रोकने में न्यायिक स्तर पर जो कुछ अड़चनें हैं, उन्हें दूर करने के प्रयास तेज हों। वैसे तो कानूनों की राष्ट्रीय सीमाएं तय होती हैं, जबकि ऑनलाइन फर्जीवाड़ा एक वैश्विक समस्या है। इसके लिए हितधारकों के बीच सहयोग बढ़ाना होगा और सरकारी नियमन को सख्त करना होगा।

यूँ तो बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर), 2016 में चोरी और जालसाजी से निपटने के लिए अनेक प्रावधान हैं, परंतु सजगता और इस माहौल में  जालसाजी के समाधान के लिए प्रवर्तन एजेंसियों का समुचित प्रशिक्षण  आवश्यक होता दिख रहा है, इसे अनिवार्य बनाना ही हितकर है। न्यायिक व्यवस्था को भी सुदृढ़ करना ज़रूरी है और साथ ही अधिक से अधिक वाणिज्यिक अदालतों का गठन करना होगा, ताकि आईपीआर से जुड़े मामलों का जल्द और प्रभावी समाधान किया जा सके।