पांच मार्च, केंद्रीय कृषि मंत्री एवं पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का जन्मदिन है. उनके यशस्वी और सुदीर्घ जीवन की कामनाओं के साथ सत्ताधीशों के जन्मदिन आयोजनों पर आंख खोलने वाली परिस्थितियों ने उद्द्वेलित किया है. मुख्यमंत्री रहते हुए जब भी शिवराज सिंह चौहान का जन्मदिन आया था तब पूरा प्रदेश विशेषकर राजधानी भोपाल तो होर्डिंग से पटा हुआ था. समाचार पत्रों में बधाई के विज्ञापनों की भरमार हुआ करती थी. विज्ञापन देने वाले इतने हुआ करते थे कि, जन्मदिन के आगे पीछे भी बधाई विज्ञापन प्रकाशित होते थे..!!
शिवराज सिंह चौहान सोलह वर्षों तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. व्यक्तिगत स्तर पर वह सहज, सरल और संबंधों को सहेजने वाले व्यक्ति हैं. उनके व्यक्तिगत संबंध हर स्तर पर रहे हैं. मुख्यमंत्री नहीं रहने के बाद जन्मदिन जैसे निजी आयोजन और बधाई संदेशों की भव्यता में कमी से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वह व्यवहारिक राजनेता हैं.
चुनाव जीतने के बाद जब उन्हें विधायक दल का नेता नहीं चुना गया. तब भोपाल से प्रवास कर जाते हुए होर्डिंग से गायब अपने फोटो देखकर उन्होंने स्वयं इस कहावत का उल्लेख किया था कि, होर्डिंग से फोटो ऐसे गायब हैं जैसे गधे के सिर से सींग. शिवराज का व्यक्तित्व जनहितैषी है. इसलिए उनकी स्मृतियों को इतनी जल्दी भुलाया नहीं जा सकता.
सत्ता और समाज का आजकल जो प्रेक्टिकल अप्रोच है. यह इसका उदाहरण है कि, राजनीति के शिखर पर होने के बाद भी मुख्यमंत्री के पद पर नहीं होने से, राज्य में लोगों को शासन प्रशासन में सहयोग की उम्मीदें कम हुई है. उम्मीदों में आई कमी ही, जन्मदिन की भव्यता में आई कमी की ओर इशारा करती है. यह हर व्यक्ति के लिए खास करके सत्ताधीशों के लिए बहुत बड़ा सबक है कि, सत्ता पर रहने के दौरान जो भी मान-सम्मान, आदर-सत्कार मिल रहा है, वह व्यक्ति से ज्यादा पदों के लिए है. पद को मिल रहे सम्मान को व्यक्ति का खुद का सम्मान मान लेना, सियासी अहंकार का कारण होता है. जब भी अहंकार हावी होता है तो फिर व्यक्ति गौण हो जाता है और पद सिर चढ़ कर बोलने लगता है.
सियासत का सत्य वर्तमान होता है पूर्व होने के बाद व्यक्तिगत रिश्ते ही बचते हैं. पद से जो रिश्ते बने हुए थे, वह पद से हटते ही समाप्त हो जाते हैं. सियासत की सच्चाई यही बनी हुई है इसीलिए कोई भी सत्ताधीश पद पर रहते हुए ही हिसाब-किताब बराबर करने में जुट जाता है. वह भविष्य के लिए कुछ छोड़ना नहीं चाहता. इसी वृत्ति के कारण सरकारी सिस्टम से लाभ लेने का भाव बढ़ा है .
सियासत में उच्च पदों पर बैठे व्यक्तियों को तो पदों से हटने के बाद भी सियासत में मौका है, लेकिन ब्यूरोक्रेसी के जो लोक-सेवक सेवानिवृत हो जाते हैं. उन्हें तो रिटायर्ड लाइफ कष्टकारी साबित होती है. सर्विस लाइफ में निजी लाइफ को कुर्बान कर दिया जाता है. केवल सर्विस लाइफ ही सर्विस के दौरान रहती है. जो लोग उस समय जी-हजूरी किया करते थे, वह सब रिटायरमेंट के साथ ही ऐसे भूल जाते हैं जैसे कि, कभी मिले ही ना हो.
इससे जीवन में एक बड़ा सबक यह भी मिलता है कि, जीवन वर्तमान में होता है. अतीत या भविष्य कुछ भी नहीं होता है. जबकि इंसान अतीत के बोझ से दबा होता है और भविष्य की कल्पनाओं के जाल में उलझा रहता है. सियासत के अहंकारी स्वरूप के लिए ऐसी घटनाएं बड़ी सबक हैं, लेकिन फिर भी इनका स्वरूप दिनों-दिन अहंकार के नए-नए रूप गढ़ता जा रहा है. पदों से हटने के बाद ही जीवन की सच्चाई दिखाई पड़ती है.
शिवराज सिंह चौहान ने पिछले दिनों यह बयान देकर लोगों को चौंकाया था कि, कई बार चुनाव जीतने के लिए ऐसे फैसले लेने पड़ते हैं, जो सरकार के हित में नहीं होते. सरकार का हित तो पद से जाने के बाद ही दिखाई पड़ता है. पद पर रहते हुए तो केवल सरकार और ‘मैं ही सरकार’ का भाव बना रहता है, जो बाद में दिखाई पड़ता है. वह अगर पद पर रहते हुए दिखाई पड़ने लगे तो लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में आ रही गिरावट रोकी जा सकती है.
मध्य प्रदेश में अभी भीख मांगने की आदत पर एक सियासी विवाद गर्म है. ऐसी सरकारी बातें भी अहंकार का एक स्वरूप हैं. पदों से हटने के बाद जब सच से सामना होता है, तो फिर भूल समझ में आती है.
‘लोकधीश’ बनने वाले लोक सेवकों को पूर्ववर्ती सत्ताधीशो के वर्तमान हालातों को अपने लिए सबसे बड़ा शास्त्र स्वीकार करना चाहिए. उनके अनुभवों का लाभ उठाना चाहिए. बुद्धिमान उसे माना जाता है जो दूसरे के अनुभव से सीख सके.
शासन व्यवस्था एक व्यवस्था है. यह जीवन व्यवस्था से अलग नहीं हो सकती. जीवन का लक्ष्य तो दूसरे को शासित करने से पूरा नहीं होगा उसके लिए तो स्वयं को शासित और अनुशासित करना पड़ेगा.
पूर्व होने का जो अनुभव है, वह वर्तमान के लिए सबसे बड़ा सूत्र है. दुर्भाग्य यह है कि, पूर्व होने के पहले वह बात समझ नहीं आती है. अगर यह समझ आ जाए तो फिर अभी का और पूर्व होने पर भी वर्तमान सुधर सकता है.
राजनीति में जो होता है, वह समाज के हर क्षेत्र में होने लगता है. सियासत के सत्ताधीश अगर पद पर रहते हुए आचरण सामान्य रखने की कोशिश करेंगे, तो कभी भी उनके लिए असामान्य परिस्थितियां नहीं बनेगी.
शिवराज को जन्मदिन की हार्दिक बधाई के साथ ही उनके यशस्वी और मंगलमय जीवन की शुभकामनाएं.