मंत्रालय ने 26 सितंबर को जारी अर्थव्यवस्था की समीक्षा में यह भरोसा जताया, उसके बाद के दो हफ्तों में बदलते वैश्विक घटनाक्रम के बीच ये लक्ष्य सहज नहीं दिखाई दे रहे हैं..!!
पता नहीं किस आधार पर देश के वित्त मंत्रालय ने यह विश्वास जताया था कि भारतीय अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 2025 में 6.5 से 7.0 प्रतिशत वृद्धि दर हासिल कर लेगी, आय अनुमान 2023-24 की आर्थिक समीक्षा में जताया गया था। मंत्रालय ने 26 सितंबर को जारी अर्थव्यवस्था की समीक्षा में यह भरोसा जताया, उसके बाद के दो हफ्तों में बदलते वैश्विक घटनाक्रम के बीच ये लक्ष्य सहज नहीं दिखाई दे रहे हैं।
इन दो हफ्तों में तेल का दाम लगभग 80 बैरल प्रति डॉलर तक पहुंच गया। सितंबर के मुकाबले इनमें 16 प्रतिशत तेजी आई है। हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था को तेल के दाम बढ़ने से फिलहाल कोई दिक्कत नहीं होगी और वह इससे आसानी से निपट लेगी। मगर कच्चा तेल 100 डॉलर प्रति बैरल के पार चला गया तो भारत की चिंता बढ़ सकती है।
फरवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था और उसके बाद 30 महीने से भी बड़े अरसे में दुनिया ने तेल के दाम से जुड़ी चिंता को दरकिनार ही रखा। जून 2022 में तेल के दाम 120 डॉलर प्रति बैरल के पास पहुंच गए थे मगर जुलाई 2022 के बाद ये 100 डॉलर के नीचे चले गए और ज्यादातर समय 80 डॉलर से नीचे रहे हैं।‘
ऐसा दो वजहों से हुआ। पहले तो उत्तर अटलांटिक संधि संगठन और यूरोपीय संघ ने तय कर दिया कि रूस से 60 डॉलर प्रति बैरल से कम पर तेल नहीं खरीदा जाएगा। साथ ही उन्होंने रूस से तेल आयात पर निर्भरता भी कम कर ली। 60 डॉलर की यह सीमा बहुत कारगर रही। दूसरी वजह नपे-तुले बढ़ावे का सिद्धांत रही। इस सिद्धांत के अनुसार नाटो यूक्रेन को धीरे-धीरे रूस से लड़ने लायक बनाएगा।
इजरायल और ‘प्रतिरोध की धुरी’ के बीच टकराव में भी यही सिद्धांत अपनाया गया है। इजरायल पिछले एक वर्ष से लेबनान के साथ लगने वाली अपनी उत्तरी सीमा पर हिजबुल्ला से लड़ रहा है। यह टकराव सीमा के दोनों और छोटी सी पट्टी में हो रहा है और दोनों तरफ जान-माल का अधिक नुकसान नहीं हुआ है। ईरान और इजरायल ने एक दूसरे को जवाब देने के लिए मिसाइल दागी हैं, जिनमें हुए नुकसान से दोनों देशों को दिक्कत नहीं है।
टकराव को नपा-तुला बढ़ावा देने में चूक का जोखिम सदैव रहता है। एक पक्ष या दोनों पक्ष किसी न किसी बिंदु पर बरदाश्त की हद पार कर जाते हैं।
पिछले कुछ हफ्तों में हमास के खिलाफ मिली सफलता से उत्साहित प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू मानने लगे हैं कि ‘पश्चिम एशिया को बदलने का’ समय आ गया है। ऐसे में न केवल टकराव बढ़ने का ही नहीं सैन्य अभियान लंबे समय तक जारी रहने का की आशंका है बल्कि लंबे समय तक सैन्य अभियान जारी रहने का भी अंदेशा है।
नवंबर में अमेरिकी चुनाव में यदि डॉनल्ड ट्रंप की जीत हुई तो जोखिम और बढ़ सकते हैं। इजरायल पर ईरान के मिसाइल हमले के बाद ट्रंप चाहते हैं कि इजरायल उसके परमाणु संयंत्रों पर हमला करे। हो सकता है कि चुनाव से पहले अपनी जीत की संभावनाएं बढ़ाने के लिए ही ट्रंप ऐसा कह रहे हों मगर ईरान पर उनके तीखे तेवर पश्चिम एशिया और विश्व अर्थव्यवस्था के लिए साफ खतरा हैं।
ट्रंप ने लगभग सभी देशों से आयात पर 20 प्रतिशत और चीन से आने वाले सामान पर 60 प्रतिशत शुल्क लगाने का वादा किया है। वह ऊंचे शुल्क को स्थानीय विनिर्माण उद्योग की सुरक्षा का उपाय मानते हैं और कर कटौती से राजस्व को होने वाले नुकसान की भरपाई का स्रोत भी समझते हैं। अर्थशास्त्रियों ने इस पर आपत्ति जताई है मगर अमेरिका में कई दिग्गज कारोबारी मानते हैं कि ट्रंप का सोचना बिल्कुल सही है।
समीक्षा के अनुसार यह घबराने की बात नहीं है, इससे विदेशी निवेशकों में भरोसा जगता है कि वे भारत में हुआ मुनाफा बिना दिक्कत अपने देश ले जा सकते हैं। लेकिन शुद्ध एफडीआई में कमी मुनाफा निकलने की वजह से ही नहीं हो रही।
हो सकता है कि एफडीआई निवेश घटने की वजह भी वही हो, जिसके कारण हाल के वर्षों में देसी निजी निवेश थमा हुआ है। अगर वित्त वर्ष 2025 में सकल एफडीआई तेजी से नहीं बढ़ा तो फिक्र की बात होगी। विश्लेषकों के मुताबिक ऐसा होना ही था क्योंकि भारतीय शेयर महंगे हो गए हैं। चीन में शेयर सस्ते हैं, इसलिए वहां जमकर निवेश हो रहा है। चीन में आर्थिक प्रोत्साहनों की घोषणा के बाद पिछले कुछ सप्ताह में निवेश बहुत बढ़ गया है।