मोदी व केंद्र सरकार के भविष्य के लिये निर्णायक माने जा रहे उत्तर प्रदेश में अपनी पूरी ताकत झोंकने के बाद ही भाजपा के मनमाफिक परिणाम आया है। जनता ने योगी की झोली फिर पांच साल के लिये भर दी है।
पांच राज्यों के चुनाव नतीजों ने भारतीय जनता पार्टी और देश के देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उम्मीदों को नई परवाज दी है, तो उत्तराखंड में तमाम मिथकों को किनारे कर भाजपा की वापसी हुई है, परन्तु एक बार फिर वर्तमान मुख्यमंत्री चुनाव हारा | इससे इस पर्वतीय राज्य में राजनीतिक अस्थिरता समाप्त हुई हैं। वहीं कांग्रेसी दिग्गज हरीश रावत के राजनीतिक भविष्य पर विराम चिन्ह लग गया है। गोवा व मणिपुर में भी भाजपा के मनमाफिक हुआ है। ये चुनाव परिणाम कहीं न कहीं मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के जुमले को हकीकत में बदलते नजर आये हैं। परन्तु पंजाब के नतीजों ने आम आदमी पार्टी को नई ताकत और अरविंद केजरीवाल के राष्ट्रीय कद को नई ऊंचाई दी है।मतदान सर्वेक्षणों की यह भविष्यवाणी सही निकली कि पंजाब में आप की सरकार बनेगी |जो परिणाम सामने आये हैं, वे इस देश में तमाम विसंगतियों के बावजूद जनता का लोकतंत्र में आस्था का प्रदर्शन हैं, राजनीतिक अर्थ पृथक निकाले जा सकते हैं |
मोदी व केंद्र सरकार के भविष्य के लिये निर्णायक माने जा रहे उत्तर प्रदेश में अपनी पूरी ताकत झोंकने के बाद ही भाजपा के मनमाफिक परिणाम आया है। जनता ने योगी की झोली फिर पांच साल के लिये भर दी है।
इस बार कामयाबी का संख्याबल पर चुनाव पंडितों का अनुमान ठीक नहीं रहा । एक और महत्वपूर्ण बात,वर्तमान व निवर्तमान मुख्यमंत्रियों को पंजाब के जनमानस ने जिस तरह सिरे से खारिज किया, उससे साफ है कि जनता बदलाव के मानस में थी। कांग्रेस में सत्ता संघर्ष का जो विद्रूप सामने आया उसने पंजाबी मतदाताओं को बदलाव के लिये बाध्य किया। सही मायने में पंजाब के जागरूक मतदाता वर्ग ने परंपरागत राजनीतिक दलों को सिरे से खारिज कर दिया। कांग्रेस की अंदरूनी कलह ने पंजाब के संवेदनशील मतदाता को खासा खिन्न किया। सही अर्थों में ,महत्वाकांक्षाओं के आत्मघाती कदम ने कांग्रेस को कहीं का नहीं छोड़ा।
फिर साबित हुआ कि देश के आम मिजाज से अलग प्रतिक्रिया देने वाले पंजाब का जनमानस देश के परंपरागत राजनीति दलों से खिन्न था, और उसकी परिणति पंजाब का नतीजा है । एक-आध बार के अपवाद को छोड़ दें तो पंजाब हर पांच साल में बदलाव के पक्ष में फैसला देता रहा है। पंजाब के जनमानस ने आप को सार्थक प्रतिसाद देकर अपने प्रतिक्रियावादी रवैये से अवगत तो २०१४ में ही करा दिया था। यह स्पष्ट है और था कि पंजाब का मतदाता कांग्रेस को फिर से सत्ता में लौटाने के लिये बिल्कुल तैयार नहीं । अकालियों की कारगुजारियां भी उसे रास नहीं आ रही थीं। साल भर चले किसान आंदोलन का झंडा पंजाब के किसान व सामाजिक संगठनों ने उठाये रखा। केंद्र सरकार के प्रति उनकी नाराजगी तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद कम होने की कोई गुंजाइश नहीं थी। खेती संस्कृति में रचे-बसे पंजाब ने किसान आंदोलन में बड़ी कीमत चुकायी थी। उसके जख्म अभी हरे थे। ऐसे में भाजपा व कैप्टन अमरेंद्र के गठबंधन को वोट देने का तो सवाल ही नहीं था।
वैसे भी पंजाब में भाजपा की नैया उसके सबसे पुराने सहयोगी अकाली दल के साथ ही उतराती रही है। ऐसे में आम आदमी पार्टी को आजमाने के लिये एक मौका देना मतदाताओं ने मुनासिब समझा। आम आदमी पार्टी के चुनावी एजेंडे ने भी किसी हद तक जनमानस को उद्वेलित किया। हकीकत यही है कि नशे के दलदल में धंसते पंजाब व युवा पीढ़ी के भटकाव की वजह ने पंजाब के जनमानस को राजनीतिक बदलाव के लिये प्रेरित किया। बेरोजगारी बड़ा मुद्दा रहा है, कोरोना काल के संकट ने इसे और विकराल किया। पंजाब के आर्थिक हालात से खिन्न होकर और खेती से होते मोहभंग ने बड़ी संख्या में युवाओं को पलायन के लिये बाध्य किया है। ऐसे में पंजाब के प्रतिक्रियावादी जनमानस ने परंपरागत राजनीतिक दलों से निराश होकर राजनीतिक परिदृश्य में कमोबेश नये राजनीतिक दल आम आदमी पार्टी पर भरोसा जताया। पंजाब के इस जनादेश ने आम आदमी पार्टी के लिए रास्ते तो खोले है साथ ही उसकी जिम्मेदारी भी बढ़ा दी है