हरियाणा के चुनाव में जलेबी बाई गाने जैसा जलेबी बाबा प्रसिद्ध हो गया. हरियाणा के लोगों का अंदाज जैसे जुदा होता है, वैसे ही चुनाव परिणाम भी सबको चौंका रहे हैं. एग्जिट पोल, ओपिनियन पोल धराशाई हो गए. कांग्रेस तो हरियाणा में अपनी सरकार की कैबिनेट भी बना चुकी थी. एंटी इनकंबेंसी के सहारे बीजेपी को परास्त करने की जुबानी पहलवानी करती हुई कांग्रेस न केवल एक राज्य हारा है, बल्कि भविष्य की आशा भी हारती दिखाई पड़ रही है..!!
हरियाणा किसान, जवान और पहलवान की धरती है. इन्हीं मुद्दों पर कांग्रेस ने अपना मायाजाल बुना था. हरियाणा में प्रोइनकंबेंसी का इतिहास रच दिया गया . भाजपा तीसरी बार हैट्रिक लगाने में सफल हो गई. बीजेपी की यह जीत हरियाणा में उसकी अब तक की सबसे बड़ी जीत है. चुनाव परिणाम ने यह साबित कर दिया है,कि अंततः जनता विकास की कहानी को ही चुनती है. जात-पात और मुफ्त खोरी की चुनावी हंडिया हमेशा नहीं चढ़ पाती हैं.
लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद जलेबी बाबा और पूरी कांग्रेस ऐसे आत्मविश्वास से लबरेज हो गई थी, कि ना उन्हें अपने शब्दों पर कोई नियंत्रण बचा था और ना ही राजनीति में मर्यादा का कोई ध्यान रखा जा था. लोकसभा में हार कर भी ऐसा दिखाया जा रहा था, जैसे पीएम नरेंद्र मोदी को करारी शिकस्त दे दी है.
इंडी की पिंडी भी बिखरती दिखाई पड़ रही है. जम्मू कश्मीर में जरूर बीजेपी, नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन से पीछे है लेकिन वहां भी बीजेपी ने पहले के तुलना में अपनी स्थिति सुधारी है. अगर बीजेपी और कांग्रेस की तुलना की जाए तो जम्मू और कश्मीर में भी कांग्रेस मुकाबले में कहीं खड़ी नहीं होती है.
लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद भाजपा में जो एक निराशा का भाव पैदा हुआ था वह इन दो राज्यों के परिणाम से समाप्त हो सकता है. भविष्य में होने वाले चुनाव में बीजेपी से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद की जा सकती है.
दोनों राज्यों के चुनाव परिणामों का कांग्रेस और भाजपा के ऊपर असर पड़ने की पूरी संभावना है. सबसे पहले अगर कांग्रेस पर पड़ने वाले प्रभाव की चर्चा की जाए तो विपक्षी गठबंधन बिखरने की ओर बढ़ सकता है. चुनाव परिणाम के साथ शिवसेना उद्धव की ओर से कांग्रेस पर कटाक्ष शुरू कर दिया गया है. उनकी प्रतिक्रिया में कहा गया हैं, कि बीजेपी के सीधे मुकाबले में कांग्रेस कमजोर पड़ जाती है. महाराष्ट्र के चुनाव में शिवसेना उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में कांग्रेस गठबंधन के साथ आगे बढना चाहती है लेकिन कांग्रेस अब तक उस पर सौदेबाजी कर रही थी.
इन परिणामों से कांग्रेस का वार्गेनिंग पावर कम होगा. इसी प्रकार झारखंड में भी गठबंधन में कांग्रेस के प्रभाव में कमी आएगी. आम आदमी पार्टी के साथ हरियाणा में गठबंधन हो नहीं पाया था. दिल्ली चुनाव में भी अब कांग्रेस के साथ गठबंधन होने की संभावना न्यूनतम होती जाएगी. अरविंद केजरीवाल ने भी कांग्रेस को यह संदेश दिया है, कि अति आत्मविश्वास राजनीति में घातक साबित होता है.
इन चुनाव परिणामों का जहां तक भाजपा पर प्रभाव का सवाल है, तो कैडर का उत्साह बढ़ेगा. लोकसभा चुनाव में जो झटका लगा था, उससे उबरने में यह चुनाव परिणाम संजीवनी का काम करेंगे. उत्तर प्रदेश में होने वाले दस उपचुनाव में भी, इसके उत्साह का प्रभाव दिखाई पड़ सकता है. झारखंड, महाराष्ट्र और दिल्ली में होने वाले चुनाव में भी बीजेपी को इस जीत का फायदा मिल सकता है.
हरियाणा राजनीतिक दृष्टि से बहुत जागरुक प्रदेश है. किसान, जवान और पहलवान वहां की धुरी है. किसान आंदोलन में भी हरियाणा के महत्वपूर्ण भूमिका रही है. किसानों. नौजवानों और पहलवानों को भ्रमित करने में कांग्रेस की ओर से कोई कसर नहीं रखी गई. अग्निवीर योजना को कांग्रेस ने नकारात्मक रूप में ऐसा प्रस्तुत किया कि, जैसे इस योजना के जरिए युवाओं के भविष्य को बर्बाद किया जा रहा है. महिला पहलवान के आंदोलन को हवा दी गई. किसानों को लेकर तो ऐसा भ्रमपूर्ण वातावरण बनाया गया, जैसे कि किसानों को बर्बादी के कगार कर दिया गया है.
कांग्रेस ने अपनी चुनावी गारंटी को चुनावी हथियार बनाने में कोई कमी नहीं रखी. ऐसे वायदे चुनाव में किए गए, कि लोगों को खटाखट-खटाखट हजारों रुपए मिल जाएंगे. इसके बाद भी कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा. भारतीय लोकतंत्र के लिए यह शुभ संकेत कहा जाएगा. मतदाताओं में आ रही परिपक्वता यह बता रही है कि राजनीतिक दलों को सतर्क होने की आवश्यकता है. जो भी मुद्दे उठाये जाते हैं, अगर उनमें कोई गंभीरता नहीं है, तो फिर उनकी कोई विश्वसनीयता नहीं होगी.
भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के उदय के बाद पूरी राजनीतिक धुरी बदल गई है. राहुल गांधी तो अब केवल मोदी के विरोध की राजनीति पर ही अपना आधार खड़ा कर रहे हैं. उनके राजनीतिक वक्तव्य बिना तथ्यों के केवल सुर्खियों के लिए गढ़े जाते हैं. हरियाणा में भी जलेबी की दुकान पर जाकर उन्होंने जलेबी बाबा के रूप में उभरने की कोशिश की.
कांग्रेस का अति आत्मविश्वास इतना ज्यादा था. इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है,कि परिणामों के रुझान की शुरुआत होते ही कांग्रेस मुख्यालय में जलेबी की फैक्ट्रियां स्थापित कर दी गई. इसी चाशनी में कांग्रेस के जलेबी बाबा और उनके मुद्दे फिसल गए. यह फिसलन ऐसे समय में आई है, जब निकट भविष्य में होने वाले दूसरे राज्यों को चुनाव में भी इसका असर पडने की संभावना है.
कांग्रेस लोकल बातों को छोड़कर सुर्खियों के मुद्दे उछालने में वोकल हो जाती है. हरियाणा चुनाव में भी अंबानी के यहां शादी का मुद्दा राहुल गांधी उठा कर यह साबित कर रहे थे कि उस शादी में पीएम तो गए थे, लेकिन राहुल गांधी नहीं गए. अडानी का मामला भी हमेशा अपनी सभाओं में उठाते रहे.
कांग्रेस का पब्लिक की नब्ज पर हाथ अब हट गया है. पब्लिक की भावना को कांग्रेसी अब समझ नहीं पाते. नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर नेगेटिव नैरेटिव्ह बनाकर सोशल मीडिया के ज़रिये कांग्रेस सुर्ख़ियों की रणनीति पर काम करती है लेकिन ऐसे मुद्दे अन्ततः बिना मौत मर जाते हैं.
बीजेपी जहां संगठन को हमेशा महत्व देती है वहीं कांग्रेस में संगठन नाम की कोई चीज नहीं होती. इस चुनाव में भी यही साबित हुआ. हरियाणा में हुड्डा पर गांधी परिवार टिका रहा तो जम्मू कश्मीर में फारूख अब्दुल्ला परिवार के साथ अपने भविष्य को जोड़ कर रखा. कश्मीर में धारा 370 हटाने का वादा करने वाले नेशनल कांफ्रेंस के साथ खड़े होकर राहुल गांधी ने जो राजनीतिक भूल की है, उसके दुष्परिणाम बहुत लंबे समय तक कांग्रेस को भुगतने पड़ेंगे.
जहां तक जम्मू कश्मीर में बीजेपी के परफॉर्मेंस का सवाल है तो बीजेपी ने जम्मू क्षेत्र में अपना विस्तार किया है. कश्मीर घाटी में बीजेपी का कोई आधार ही नहीं है. इस चुनाव में जो कुछ हासिल हुआ है, इसे भाजपा की आधारशिला ही कहा जा सकता है. 370 का सवाल, बीजेपी के लिए यह पॉलीटिकल लाइफ जैसा है.
370 हटाने का उनका निर्णय कश्मीर में चुनावी राजनीति से ज्यादा बीजेपी की बुनियादी विश्वसनीयता देश में स्थापित करने के लिए था. जिसमें वह निश्चित रूप से सफल हुए हैं. बीजेपी द्वारा सिटिंग मुख्यमंत्री, मंत्री और विधायकों को बदलने की रणनीति भीसफल होती दिखाई पड़ रही है.
हरियाणा और जम्मू कश्मीर के परिणाम बता रहे हैं, कि लोकसभा परिणामों से उत्साहित विपक्षियों के लिए रिवर्सल शुरू हो गया है. आने वाले चुनाव में इस तरह के चौकाने वाले नतीजे दिखाई पड़ सकते हैं. 2014 में नरेंद्र मोदी जन विश्वास का जो इतिहास रचा था वह तमाम सियासी झटकों के बाद भी मजबूती से कायम है.
सियासत में तथ्यहीन मुद्दों के आइटम सॉन्ग हमेशा अपना असर नहीं दिखा पाते. बीजेपी जरूरत के मुताबिक अपनी रणनीति बदलने में भरोसा करती है और कांग्रेस, परिवार के भरोसे की रणनीति पर आगे चलती है. परिपक्व होता लोकतंत्र जलेबी बाई और जलेबी बाबा की राजनीति को झटके पर झटका देकर जमीन पर आखिरकार ला ही देता है.