• India
  • Sat , Feb , 22 , 2025
  • Last Update 11:09:AM
  • 29℃ Bhopal, India

नवीनता का अभाव-भारतीयता पर अनास्था का प्रभाव

सार

न्याय दिलाने के शाब्दिक अहंकार के साथ राहुल गांधी की न्याय यात्रा मध्य प्रदेश से गुजर गई. अनुभव की परिपक्वता से चिंतन-मनन और बातों में नवीनता की अपेक्षा करने वालों को राहुल गांधी ने निराश ही किया है. यात्रा इंपैक्टलेस ही कही जा सकती है.मध्य प्रदेश में मुरैना से शुरू हुई राहुल गांधी की न्याय यात्रा के एक्शन और शाब्दिक बाणों का अगर विश्लेषण किया जाएगा, तो यह स्पष्ट हो जाएगा, कि राहुल गांधी की न्याय की कोशिश कांग्रेस के साथ ही अन्याय कर गई है..!!

janmat

विस्तार

पूरी यात्रा में राहुल के भाषण का सबसे चर्चित डायलॉग यह रहा कि "मोदी चाहते हैं कि युवा दिन भर मोबाइल पर रहें, जय श्रीराम के नारे लगाएं और भूखे मर जाएं". जय श्रीराम का नारा लगाने की आस्था को भूख से जोड़कर, राहुल गांधी ने भारतीय चिंतन-दर्शन पर अनास्था ही प्रदर्शित की है. कांग्रेस की राम के साथ ना मालूम क्या अनबन है, कि राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का आमंत्रण ठुकरा दिया जाता है.

जय श्रीराम बोलने वालों को भूखे मरने की नसीहत दी जाती है. अगर राम की और भारत की अंतर्धारा को राहुल गांधी और कांग्रेस नहीं समझती है, तो फिर कम से कम भाषणों में इसका उदाहरण तो नहीं देना चाहिए. यह कहना यही बताता है, कि देश के युवा दिग्भ्रमित हैं, मोबाइल में लगे रहते हैं और जय श्रीराम का नारा बोलते हुए भूख और बेकारी का शिकार बन जाते हैं. युवाओं की प्रतिभा और क्षमता पर ही यह सवाल नहीं है, बल्कि राम की आस्था पर भी उठाया गया यह सवाल धर्म और आस्था के प्रति कांग्रेस की अनास्था का ही परिचायक है.

बात तो फल होती है. जड़ उसकी भीतर होती है. सोच विचार और चिंतन के बाद बात बाहर निकलती है. किसी की बातें ही यह बताती हैं, कि उसके भीतर ज़हर प्रवाहित है या अमृत. कोई भी महाकाल के दर्शन को जाता है, तो यही माना जाता है, कि उसकी आस्था है. भीतर अगर आस्था नहीं है और दर्शन का दिखावा केवल राजनीतिक पाखंड है, तो फिर जय श्रीराम बोलने वालों पर ऐसी अनास्था की टिप्पणी की जा सकती है.

राहुल गांधी की सबसे बड़ी दिक्कत यह लगती है, कि अनुभूति और उम्र से ज्यादा कागज़ी बातें भाषणों में दोहराते रहते हैं. उनका भाषण मोदी और अडानी से शुरू और उसी पर ही ख़त्म होता है. कोई भी व्यक्ति अपनी अनुभूति और अनुभव को ही सामने रखता है. जब तक किसी को यह पता नहीं हो, कि कैसे सरकारें उद्योगपतियों को उपकृत करती हैं तब तक वह व्यक्ति उपकृत करने का आरोप किसी पर भी लगा नहीं सकता.

आदिवासियों की जनसंख्या के हिसाब से शासन, ब्यूरोक्रेसी, उद्योग, मीडिया और दूसरे क्षेत्र में भागीदारी की बात करते हुए राहुल गांधी कांग्रेस की ही कमजोरी का स्मरण दिलाते हैं. जब वह कहते हैं, कि भारत सरकार में 90 सचिवों में केवल एक सचिव आदिवासी है, तो उन्हें यह भी बताने की आवश्यकता है, कि 50 सालों तक देश का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस ने, ऐसी परिस्थितियों और शिक्षा व्यवस्था का निर्माण क्यों नहीं किया, कि सभी वर्गों के लोग, बराबरी के साथ हर स्तर परअपनी हिस्सेदारी निभा सकें.

सरकारों में और उद्योगों में हिस्सेदारी के लिए तो, नियुक्ति की एक प्रक्रिया और एंटरप्रेन्योरशिप की ज़रूरत है. लेकिन जिन वर्गों की राहुल गांधी बात कर रहे हैं, उन गरीबों में से कोई भी व्यक्ति राहुल गांधी की पोजीशन पर कांग्रेस में आज तक क्यों नहीं पहुंच सका. लंबी-लंबी बातें मनुष्य की आंतरिकहीनता और शून्यता के साथ ही सत्ता सुख के लिए भीतर के ज़हर को उगलकर, किसी के विरुद्ध लोगों को जहरीला बनाने के प्रयास के अलावा कुछ भी नहीं कहा जा सकता. बातें ही धार्मिकता और नास्तिकता का संकेत करती हैं

कांग्रेस उत्तर और दक्षिण के बीच मुद्दों को लेकर दिग्भ्रमित  स्थिति में है. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अपने सहयोगियों के कारण, उत्तर भारत में बड़ा नुकसान उठा चुकी है. इसके बावजूद सनातन धर्म के खिलाफ, सहयोगियों द्वारा उठाई गई आवाज का पुरज़ोर विरोध नहीं किया गया. कांग्रेस की सहयोगी डीएमके तो अब यहां तक कह रही है, कि वह तो राष्ट्र को भी एक नहीं मानते, उनका राम और रामायण पर भी कोई भरोसा नहीं है.

उत्तर भारत में राम-रामायण और राष्ट्रवाद जन भावना का सबसे बड़ा मुद्दा है. लेकिन दक्षिण भारत में तुच्छ राजनीतिक लाभ के लिए कांग्रेस पूरे उत्तर भारत की जनभावनाओं को आहत करने से भी परहेज नहीं कर रही है.

राहुल गांधी ने अपनी न्याय यात्रा में जो भी मुद्दे मध्य प्रदेश में उठाए हैं उसमें एक भी मुद्दा ऐसा नहीं है, जिसे विधानसभा चुनाव के दौरान नहीं उठाया गया हो. जाति की जनगणना भी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का बड़ा चुनावी वादा था. इसके बाद भी कांग्रेस ने जनादेश का सबक नहीं लिया. 

जातिवाद इस देश की राजनीतिक आपदा है. इसके बाद भी राजनीतिक दल किसी न किसी स्वरूप में जातिवाद को अपने जनाधार को पुष्ट करने के लिए उपयोग करते हैं. जातिगत जनगणना का वायदा भी ऐसा ही प्रयास कहा जाएगा. बेरोजगारी, किसानों को लाभकारी मूल्य, एमएसपी ऐसे विषय हैं, जो राजनीतिक भाषणों से ज्यादा विशेषज्ञ बहस के लिए जरूरी हैं. राहुल गांधी जो बातें मध्य प्रदेश में कर रहे हैं, क्या कांग्रेस शासित राज्यों कर्नाटक और तेलंगाना में परिस्थितियां उससे अलग हैं.

छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकारों के समय हालातो में क्या कोई अंतर था. राजनेता भाषण देकर, स्वयं खुश हो सकते हैं, लेकिन उनकी बातों की विश्वसनीयता सर्वाधिक न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है.

कांग्रेस नेताओं का भाषण मोदी को भला-बुरा कहने से शुरू और वहीं पर ख़त्म भी होता है. कम्युनिकेशन का सामान्य सिद्धांत है, कि विरोध में भी किसी का बार-बार नाम लेना उसको पब्लिसिटी ही देना है. मोदी को पब्लिसिटी देने में राहुल गांधी की न्याय यात्रा को कारगर कहा जा सकता है. जहां तक मोदी का सवाल है, जनता की दृष्टि में तो 'MODI' का मतलब "MOTION OF DEVELOPMENT IN INDIA" बना हुआ है. जन विश्वास विश्वसनीय आधार पर ही बनता है. उसको अविश्वसनीय बातों से काटा नहीं जा सकता. 

आजकल यह भी कहना सही नहीं है, कि किसी को भी गलत जानकारी देकर भ्रमित किया जा सकता है. कम्युनिकेशन इतना फास्ट और वीडियो आधारित हो गया है, कि पब्लिक सब कुछ अपनी आंखों से देख और सुन लेती है. उसके बाद कोई भी भाषण उसकी धारणा बदलने में सक्षम नहीं होते.

विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश में बहुत सभाएं की थीं. इसके पहले उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा में भी यही सारे मुद्दे उठाए थे और भारी जीत का भरोसा व्यक्त किया था. चुनाव परिणामों ने कांग्रेस की सारी आशाओं को धूल-धूसरित कर दिया. राहुल गांधी की दूसरी यात्रा भी मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव जैसा ही मौसम बनाते हुए दिख रही है. कांग्रेस में विखराव एमपी विधानसभा चुनाव के बाद बढ़ा लगता है. विधानसभा चुनाव के सूत्रधार और जनरल ही पार्टी के लिए चुनौती बनते जा रहे हैं. 

राहुल गांधी दिल की बातें दिमाग से करते हैं. मोहब्बत की दुकान उनका दिमागी क्रिएशन है. मोहब्बत की कभी दुकान नहीं हो सकती. मोहब्बत हृदय से होती है मोहब्बत सामाजिक न्याय का विषय नहीं हो सकती. हर दिल जब मोहब्बत करेगा तभी मोहब्बत की फसल लहलहाएगी. यह भाषण का नहीं दिल से दिल के मिलने का विषय है. जनादेश के दिल की पुकार ही चुनावों में बेड़ा पार करेगी.