भारत की अर्थव्यवस्था कृषि उत्पादन पर निर्भर करती है। इसलिए कृषि की भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुआयामी भूमिका है..!!
भारत में किसान देश की पूंजी हैं। देश के घरेलू उत्पाद की वृद्धि में कृषि महत्वपूर्ण रोल अदा करती है। यदि किसान धनी हैं तो समूचा देश धनी है। भारत की अर्थव्यवस्था कृषि उत्पादन पर निर्भर करती है। इसलिए कृषि की भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुआयामी भूमिका है। प्राथमिक क्षेत्र, जिसमें कृषि आती है, द्वितीय एवं तृतीय क्षेत्र के लिए नींव है। कृषि ही सकल घरेलू उत्पाद को बढ़ाती है। भारत कृषि प्रधान देश है। यहां किसानों को अन्नदाता और धरती पुत्र कहा जाता है।
किसान मौसम की परवाह किए बिना तपती धूप, बारिश और कडक़ड़ाती ठंड में भी दिन-रात खेतों में काम करके इस देश की अर्थव्यवस्था के विकास और प्रगति में अपना अद्वितीय योगदान देते हैं। उनको अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी भी कहते हैं। हमारे देश में 60-70 प्रतिशत लोग कृषि पर निर्भर हैं। सकल घरेलू उत्पादन में कृषि का 20.2 प्रतिशत योगदान है। देश के कार्यबल में 47 प्रतिशत कृषि और किसानों का योगदान है।
किसानों के हिमायती और उनको सशक्त बनाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती के उपलक्ष्य में किसान दिवस मनाया जाता है। हर वर्ष नए थीम को घोषित कर उस पर काम किया जाता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि के योगदान को देखते हुए ही अन्नदाताओं को सम्मान देने के लिए 2001 से प्रतिवर्ष देश भर में 23 दिसंबर को राष्ट्रीय किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है। सरकार कृषि और किसानों के लिए बहुत सी स्कीमों को ला रही है, परंतु फिर भी किसानों की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है। किसानों को उनके उत्पादन का बहुत कम हिस्सा प्राप्त होता है।
भारतीय रिजर्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार किसान भारत में फलों और सब्जियों में एक-तिहाई विक्रय मूल्य प्राप्त करते हैं। थोक और परचून विक्रेता दो-तिहाई हिस्सा ले जाते हैं। किसानों का हिस्सा टमाटर, प्याज और आलू पर 33, 36 और 37 प्रतिशत क्रमश: रह जाता है। बहुत बार तो किसान लागत के बराबर मूल्य न मिलने पर अपनी फसलों को सडक़ों पर फैंक देते हैं। यह सब कुशल आपूर्ति शृंखला एवं विपणन प्रणाली के न होने, फसलों की नाशवान प्रवृत्ति, भंडारण सुविधाओं की कमी तथा बहुत संख्या में बिचौलियों के होने के कारण है। इसलिए भारत में किसान बार-बार धरना-प्रदर्शन तथा आत्महत्याएं कर रहे हैं। भारत में 2014 से 2022 तक 100473 किसानों ने आत्महत्या की है। 4 दिसंबर 2023 को राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार साल 2022 में 11290 किसानों ने आत्महत्या की थी जो 2021 से 3.7 प्रतिशत ज्यादा हैं। 2021 वर्ष में 10281 आत्महत्या के केस थे। 2022 के आंकड़ों के अनुसार हर घंटे में एक किसान आत्महत्या करता है। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या करते हैं।
आत्महत्या के मुख्य कारण हैं- सूखा, असामयिक बारिशों से खड़ी फसलों का बर्बाद होना, चारों ओर बढ़ती कीमतें एवं सरकारी नीतियां, उच्च ऋण बोझ, सार्वजनिक मानसिक स्वास्थ्य, व्यक्तिगत और मानसिक मुद्दे आदि। इसलिए यह भी आवश्यक है कि इस दिन किसानों के स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए किसानों के आत्महत्या करने के कारणों का पता लगा कर, उन पर कार्य करना चाहिए। भारत को समृद्ध बनाना है तो किसानों और कृषि मजदूरों को समृद्ध करना होगा। इसके लिए जो स्कीमें वर्तमान में किसानों/कृषि क्षेत्र के लिए चल रही हैं, उनमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ये किसानों तक पहुंचनी भी चाहिए। अगर इनमें रिसाव है तो उसे रोकना चाहिए।
इसके अतिरिक्त बहुत से फैसले लेने तथा उनका दायरा बढ़ाने की आवश्यकता है जिनमें सभी फसलों, सब्जियों, फलों पर गारंटीकृत न्यूनतम सर्मथन मूल्य, ऋण माफी, भूमि सुधार, कम दरों पर उत्तम किस्म के बीज, खाद, कीटनाशक देना, सभी फसलों, सब्जियों व फलों को बीमा योजना के अंतर्गत लाया जाए, ताकि प्राकृतिक आपदा, अन्य कारणों से हुए नुकसान की किसानों को भरपाई हो सके। दूध आदि का भी सर्मथन मूल्य घोषित हो। ग्रामीण इलाकों में सहकारी समितियों के गठन पर जोर दिया जाए तथा इनकी कार्यप्रणाली पारदर्शी की जाए।
दूध प्रसंस्करण तथा दूध उत्पाद प्लांट सहकारी समितियों द्वारा स्थापित किए जाएं, जलवायु परिवर्तन तथा भूजलस्तर जो गिर रहा है, इस समस्या का समाधान समय पर किसानों तथा सरकार को ढूंढना चाहिए। खेतों की मिट्टी की गुणवत्ता की जांच कर उत्पादकता बढ़ाने के उपायों को सुझाया जाए। कृषि में विविधता-गुणवत्ता बढ़ाने में कृषि विभाग व विज्ञान केन्द्रों का बहुत योगदान रहा है।उनको और मजबूत किया जाए। किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने तथा फसलों में गुणवत्ता लाने के लिए प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जाए।
2047 का विजन प्राप्त करना है, तो न्यूट्रीशियस/पौष्टिक खाद्य पदार्थों को प्राप्त करने के लिए फल/सब्जियों/अनाज का प्रसंस्करण कर निर्यात को बढ़ावा देना होगा। अगर 2050 तक 10 बिलियन लोगों को खाना देना है तो केन्द्रीय व प्रादेशिक सरकारों को मिलकर उत्पादन, प्रसंस्करण, परिवहन और खरीद-फरोख्त के मॉडल को बेहतरीन करना होगा।