सनातन गर्व महाकुंभ पर्व में 144 वर्षों बाद ऐसा संयोग आया है, जो श्रद्धालुओं को आस्था का अमृत लाभ देगा. महाकुंभ की तैयारियां पूरी हो गई हैं. साधु-संत अखाड़े, मंडलेश्वर, महामंडलेश्वर, शंकराचार्य, ज्ञानी-ध्यानी, तपस्वी सभी संगम के तट पर पहुंच गए हैं..!!
ध्वज पताकाएं लहरा रही हैं. कल्पवासी भी अपनी धर्म ध्वजा के साथ पहुंच गए हैं. माघी पूर्णिमा के साथ पहला पर्व स्नान होगा. महाकुंभ पर विश्वव्यापी चिंतन-मनन हो रहा है. सनातन धर्म के नजरिए से महाकुंभ विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है. इस विशाल आयोजन में यूपी सरकार यजमान की भूमिका में है. सरकार की भूमिका आए और सियासत ना हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता.
महाकुंभ की दिव्यता, भव्यता और व्यवस्था पर मीडिया में प्रचार का स्तर भी भव्य ही कहा जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो महाकुंभ के कलश की स्थापना कर चुके हैं. तैयारियों का जायज़ा ले चुके हैं. सारी तैयारियों को सनातनधर्मियों को समर्पित कर चुके हैं.
भारत की विविधता के गुलदस्ते के फूल की कली को जो देखना चाहते हैं, महसूस करना चाहते हैं, उन्हें तीर्थराज प्रयाग में महाकुंभ के दिव्य अवसर पर अवश्य पधारना चाहिए. महाकुंभ को सनातन की कली कहा जा सकता है. यही फूल बनकर पूरे भारत में बिखरती है. बीच-बीच में सनातन के फूल को तोड़ने की, मसलने की, बिखेरने की कोशिश की जाती है. भारत में प्रयागराज, नासिक उज्जैन और हरिद्वार में हर 12 साल में महाकुंभ होता है.
महाकुंभ सनातन धर्म की समरसता का सबसे बड़ा प्रतीक है. इसे महसूस करने के लिए पढ़ने-लिखने से ज्यादा आंखों से निहारने की जरूरत है. आंखों से दिल में उतारने की ज़रूरत है. जो सोच देश को जातियों में बांटना चाहती है, उसको तो जरूर महाकुंभ में ले जाना चाहिए, जिससे कि उसकी आंखें खुल सकें कि वहां कोई जाति दिखाई नहीं पड़ती. महाकुंभ जातिविहीन है, महाकुंभ समरसता का प्रतीक है.
गंगा, यमुना और संगम के तट जैसे समरस हैं, वैसे ही सनातन भी समरस है. वहां कोई भी काम जाति के लिए निर्धारित नहीं है. हर जाति का व्यक्ति हर काम करने के लिए तत्पर है. महाकुंभ में जीवन के सारे रंग हैं. इन रंगों की एकजुटता इंद्रधनुष जैसा है. महाकुंभ की समरसता गंगा के जल जैसा पवित्र है.
कोई यह गणना नहीं कर सकता, कि महाकुंभ में कौन उच्च जाति का है, कौन निम्न जाति का है. घाटों पर एक साथ स्नान करते, एक साथ रहते श्रद्धालुओं की जातियों की गणना करना असंभव है. ना वहां कोई राजा है, ना रंक है. ना अमीर है ना गरीब है. सब एक ही पवित्र उद्दे्श्य के लिए एकत्रित हुए हैं, कि सनातन धर्म के खास घड़ी और खास नक्षत्र के इस महापर्व का लाभ उठाना है. धर्म-कर्म के साथ मन को पवित्र करना है. परम कल्याण और मोक्ष का भी लक्ष्य जरूर होता है.
विश्व का सबसे बड़ा समागम हो और उसका सियासत के लिए उपयोग ना हो ऐसा कैसे संभव है. सियासत का लक्ष्य विभेद को बढ़ाकर बहुमत हासिल करना है. बहुमत के इसी लक्ष्य ने सनातन के सर्वमत को भी खंडित करने का महापाप किया है. महाकुंभ हिंदुत्व का समागम है. हिंदुत्व आज राजनीति को प्रभावित कर रहा है. हर राजनीतिक दल मत के लिए हिंदुत्व की अपनी छवि उभारने की कोशिश करता है.
यह कोशिश कई बार सकारात्मक होती है, लेकिन जब सकारात्मक कोशिश सफल नहीं होती, तो फिर बांटने की नकारात्मक कोशिश भी होती है. जातिगत जनगणना हिंदुत्व को बांटने का ही नकारात्मक प्रयास है. सियासी सोच को कभी समझाया नहीं जा सकता. वह तो बहुमत के लक्ष्य के लिए कुछ भी करने को आतुर होती है. ऐसी सोच तभी सुधर सकती है, जब जीवन के परम सत्य का बोध हो जाए.
महाकुंभ की दिव्यता और भव्यता की व्यवस्था के लिए जिम्मेदारी बीजेपी की सरकार पर है, तो बीजेपी से जुड़े मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री इस जिम्मेदारी को निभाते हुए ही महाकुंभ के फूलों की अनुभूति कर ले रहे हैं. असल में जातिवाद का जहर फैलाने की सियासी मानसिकता को महाकुंभ के समरसता की अनुभूति दिलाने की आवश्यकता है. सनातन धर्म समानता पर टिका है, इसीलिए सियासत के उन नेताओं को महाकुंभ में जरूर ले जाने की व्यवस्था करना चाहिए, जो सनातन और हिंदुत्व को बांटने में लगे हुए हैं.
विपक्ष के नेता राहुल गांधी जातिगत जनगणना के अगुआ बने हुए हैं. उन्हें महाकुंभ में जरूर जाकर उसकी दिव्यता महसूस करना चाहिए. सनातन में जातिवाद देखने की उनकी नज़र शायद इससे सुधार सके. देश के जितने भी निर्णायक नेता हैं, जो जातिवाद को बढ़ाने का काम करते हैं, उनके लिए महाकुंभ का यह अवसर सनातन और हिंदुत्व को समझने का अवसर साबित हो सकता है.
अगर भाजपा की सरकार अधिकृत रूप से ऐसी व्यवस्था करती है, कि ऐसे जो भी नेता बिना दिखावे और प्रचार के महाकुंभ और सनातन धर्म की दिव्यता को अनुभव करना चाहते हैं, इस धर्म के प्रति अपने विचारों को परिष्कृत करना चाहते हैं, तो उन्हें अवसर और सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी.
वैसे तो प्रकृति कभी बदली नहीं जाती. स्वभाव और संस्कार तो अपना प्रभाव प्रदर्शित ही करते हैं. सांप शायद इसीलिए पाले नहीं जाते, क्योंकि उनकी प्रकृति डसने की है. यह प्रकृति पालने वाले को भी डस सकती है. सियासत की प्रकृति भी ऐसी ही होती है. सियासत समानता की बात करती है, लेकिन विभाजन के प्रयास करती है. विभाजन के बिना सियासत का लक्ष्य हासिल ही नहीं होगा. पूरी सियासत बहुमत पर चलती है. बहुमत को प्रभावित करने के लिए विभाजनकारी मुद्दे कारगर साबित होते हैं. विभाजनकारी सोच पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों ढंग से काम करती है.
सियासत की इसी सोच का शिकार सनातन धर्म और हिंदुत्व होता रहा है. सियासत अपना काम करती रहेगी, लेकिन महाकुंभ जैसे दिव्य आयोजन कम से कम सनातन धर्म की दिव्यता को तो स्थापित ही कर रहे हैं. महाकुंभ में जातियाों और सभी समाजों की समरसता भारत की प्रकृति प्रदर्शित कर रही है.
तीर्थराज प्रयाग में सनातन गर्व महाकुंभ पर्व सियासत को यही संदेश दे रहा है, यही आवाज दे रहा है, कि सियासी कर्म से सनातन समाज को बांटने का काम नहीं किया जाए. गंगा, यमुना, सरस्वती का संगम और बहाव मन में बदलाव लाते हैं. महाकुंभ एक खास घड़ी, एक खास दिन, खास नक्षत्र में करोड़ों लोगों की उपस्थिति से ऐसी ऊर्जा निर्मित करता है, जिसमें चेहरे खो जाते हैं. केवल ऊर्जा ही प्रवाहित होती है.
सनातन धर्म का महाकुंभ राजधर्म के आकांक्षियों के चिंतन का भी अवसर है. सनातन की एकत्रित ऊर्जा अगर राजधर्म के पोषक और आकांक्षियों में प्रवाहित करने का कोई राज तीर्थराज प्रयाग से मिल सके तो महाकुंभ आस्था के साथ समरसता और राष्ट्रीय एकता का भी महाकुंभ सिद्ध होगा.
अनुपम, अलौकिक महाकुंभ सागर मंथन से निकले अमृत कलश की ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासत है. इसमें विष भी निकला था, आधुनिक समय में जातिवाद का विष ही सनातन संस्कृति का संकट है. महाकुंभ में सागर मंथन जैसा सनातन दर्शन और मंथन निश्चित रूप से सनातन संस्कृति का अमृत चहुंओर फैलाएगा.