सरकार का कहना है कि पाकिस्तान के लोगों को कश्मीर के साथ एकजुटता का प्रदर्शन करना है जो शहबाज शरीफ के अनुसार पाकिस्तान में शामिल होने के लिए तड़प रहे हैं, भारत सरकार उन्हें जबरदस्ती भारत में रखे हुए है..!!
पड़ौसी देश पाकिस्तान से आ रही खबरें ठीक नहीं है।चार दिन पहले पाकिस्तान सरकार ने सार्वजनिक छुट्टी की थी। सरकार का कहना है कि पाकिस्तान के लोगों को कश्मीर के साथ एकजुटता का प्रदर्शन करना है जो शहबाज शरीफ के अनुसार पाकिस्तान में शामिल होने के लिए तड़प रहे हैं, भारत सरकार उन्हें जबरदस्ती भारत में रखे हुए है।
इन्ही दिनों पाकिस्तान में रहने वाले बलोच और पश्तून पाकिस्तान से अलग होने की कोशिश में मशगूल है । बलोचिस्तान के लोगों ने इस काम के लिए बीएलए यानी बलोचिस्तान लिबरेशन आर्मी बना रखी है। इसी प्रकार पश्तूनों ने पाकिस्तान से निकलने के लिए टीटीपी यानी तहरीके तालिबान पाकिस्तान का गठन किया हुआ है। ये दोनों संगठन अपने स्वभाव और प्रकृति के अनुरूप ही अपना मुकाम हासिल करने के लिए हथियारों का इस्तेमाल करते हैं।
बलोचों को यह अंदेशा हो गया है कि पाकिस्तान सरकार बलोचिस्तान को परोक्ष रूप से चीन के हवाले करने जा रही है। दरअसल इस्लामाबाद ने बलूचिस्तान में गवादर बंदरगाह एक प्रकार से चीन के हवाले किया हुआ है। इसलिए उस इलाके में बलोच कम और चीनी ज्यादा दिखाई देने लगे हैं। ये चीनी सैनिक और चीनी इंजीनियर इत्यादि बलोचों से तिरस्कार से बात करते हैं। बलोच लिबरेशन आर्मी समय-स्थान देखकर पाकिस्तानी सेना पर हमला करती रहती है।
पश्तूनों के सूबे खैबर पख्तूनखवा में बलूचिस्तान के चार सरकारी कर्मचारियों की डेरा ईसमाईल खान में हत्या कर दी गई। यह माना जा रहा है कि यह टीटीपी का कारनामा है। पश्तून और बलोचों का गुस्सा पंजाबियों के खिलाफ है। पाकिस्तान में बलोच, सिंधी और पश्तून यह मान कर चलते हैं कि पाकिस्तान का अर्थ असल मायने में पंजाबी जाटों, राजपूतों और सैयदों का देश है। इनके देश में बाकी बिरादरियां मसलन सिंधी, बलोच और पश्तून दोयम दर्जे के नागरिक ही हैं। सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनखवा के प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग पंजाब के लोग करते हैं और बाकी बिरादरियों का पंजाबियों द्वारा शोषण किया जाता है।
सिंधियों का ‘जिए सिंध’ अहिंसक है, लेकिन बलोचों और पश्तूनों का आंदोलन उनकी परंपरा के अनुसार ‘बंदूक का आंदोलन’ है। पहले पहल बीएलए और टीटीपी अलग-अलग आंदोलन चलाते थे। पाकिस्तान सरकार को शक है कि पिछले कुछ समय से ये दोनों आपसी तालमेल बढ़ा रहे हैं और आपसी सहयोग से ही निशाना चुनते हैं और उसे अंजाम देते हैं। पाकिस्तान की चिंता का एक दूसरा कारण भी है।
अकेले बलोचिस्तान में ही पिछले एक महीने में बलोच नौजवानों ने 24 बार अलग अलग स्थानों पर पाकिस्तानी सेना की टुकडिय़ों पर हमले किए जिनमें ग्यारह पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। जहां तक हथियारों का प्रश्न है, कहा जाता है कि काबुल छोड़ते समय अमेरिकी सेना हथियारों के जो जखीरे छोड़ गई थी, उसका कुछ हिस्सा टीटीपी के हाथ भी लग गया है।
अब प्रश्न उठता है कि जिस पाकिस्तान में पंजाबी जाटों, सैयदों को छोड़ कर शेष बचे सिंधी, बलोच और पश्तून भी रहना नहीं चाहते, वहां भला कश्मीरी क्या करने जाएगा? इतना ही नहीं, वहां से निकलने के लिए बलोच और पश्तून तो बंदूक लेकर पाकिस्तानी सेना से लगातार लड़ रहे हैं। वहां कश्मीरी की क्या हैसियत होगी?
बलतीस्तान का एक हिस्सा कारगिल को 1947 में ही भारतीय सेना ने छुड़ा लिया था, लेकिन उसका शेष विशाल हिस्सा पाकिस्तान सरकार के कब्जे में ही है। पाकिस्तानी सेना ने 1999 में कारगिल पर एक बार फिर कब्जा करने की कोशिश की, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। गिलगित में से चीन सरकार सडक़ बना रही है, इसलिए वहां चीनी सैनिकों एवं अन्य चीनी कर्मियों का जमावड़ा बना रहता है। गिलगित के दरद और बलतीस्तान के बलती पाकिस्तान सरकार द्वारा किए जा रहे सौतेले व्यवहार से त्रस्त होकर पिछले कुछ वर्षों से संगठित होने लगे हैं, ऐसी सूचना है।