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महाकुंभ : अपराधों का प्रायश्चित

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Thu , 22 Feb

सार

वेदों, श्रीमद्भागवतपुराण, विष्णुपुराण, स्कन्दादिपुराणों तथा अन्य प्राचीन ग्रन्थों में इस महापर्व का उल्लेख मिलता है..!!

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विस्तार

प्रयाग का महाकुंभ अपने अंतिम चरण में है। ज्ञान एवं चेतना के परस्पर मंथन ऐसा दिव्य पर्व जो हिंदू धर्मावलम्बियों की जागृत चेतना को बिना किसी आमंत्रण के खींच कर ले प्रयाग ले गया है। वेदों, श्रीमद्भागवतपुराण, विष्णुपुराण, स्कन्दादिपुराणों तथा अन्य प्राचीन ग्रन्थों में इस महापर्व का उल्लेख मिलता है। 

इतिहासकारों के अनुसार कुंभ मेला सिंधुघाटी सभ्यता से भी पुराना है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार कुंभ मेले का आयोजन गुप्तकाल (तीसरी से पांचवीं सदी) में सुव्यवस्थित रूप में शुरू हुआ। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी 629-645 ईस्वी में सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल में प्रयागराज के कुंभ मेले का वर्णन किया है। उन्होंने इसे एक विशाल और भव्य आयोजन बताया, जिसमें असंख्य साधु, विद्वान और श्रद्धालु सम्मिलित होते थे, अब भी होते हैं । 

आधुनिक प्रशासनिक ढांचे के तहत कुंभ का स्वरूप गुप्त काल से शुरू हुआ और शंकराचार्य ने इसे धर्म और समाज को जोडऩे का माध्यम बनाया। किन्तु धर्माचार्य मानते हैं कि कुंभ मेला अनादि है। यह किसी एक घटना से प्रारंभ नहीं हुआ, बल्कि मानव सभ्यता के साथ इसकी परंपरा विकसित हुई। 

प्रयागराज में माघ अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते हैं और गुरु वृषराशि में होता है। प्रयागराज में गंगा, यमुना तथा सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर प्रत्येक 12 वर्ष पश्चात कुंभ मेले का आयोजन होता है, जिसे ‘महाकुंभमेला’ कहते हैं। सनातन धर्म के अनुयायियों का महत्वपूर्ण आयोजन तथा दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है और दुनिया भर से लोग यहां आते हैं। 

इस पर्व का मुख्य अनुष्ठेय कर्म ‘शाही स्नान’ है, जो विभिन्न अखाड़ों द्वारा किया जाता है। इसमें संत और साधु मिलकर स्नान करते हैं और उनके बाद ही आम श्रद्धालुओं को स्नान की अनुमति मिलती है। कुंभ में स्नान को, अमृत-स्नान के समान माना गया है। इसके अलावा प्रवचन, कीर्तन और धार्मिक प्रवास भी पर्व में अंगभूत कर्म होते हैं। 

इसकी महत्ता और उपादेयता स्कन्दपुराण एवं विष्णुपुराण में स्पष्ट है- ‘सहस्रं कार्तिके स्नानं माघे स्नानशतानि च। वैशाखे नर्मदा कोटि: कुंभस्नानेन तत्फलम्।। तथा अश्वमेधमहस्राणि वाजपेयशतानि च। लक्षं प्रदक्षिणा भूमे: कुंभस्नानेन तत्फलम्।।’ कार्तिक महीने में हजार बार, माघ में सौ बार, वैशाख में करोड़ बार गंगा-नर्मदादि में स्नान करने से जो फलप्राप्ति होती है, वही फल एक बार कुंभस्नान करने से प्राप्त हो जाता है। 

हजार अश्वमेध यज्ञ, सौ वायपेय यज्ञ, लक्ष पृथ्वी-परिक्रमा करने से जो फल प्राप्ति होती है, वही फल एक बार कुंभ-स्नान से प्राप्त हो जाता है। अन्यान्य पुराणों सहित महाभारत में भी कुंभपर्व की महत्ता दर्शायी गई है। स्नानोपरांत दान का महत्व भी प्रतिपादित है। कुंभ में दान (अन्न, वस्त्र, धन) को अति पुण्यकारी माना जाता है। साधुओं और सत्पात्रों को दान देने से, व्यक्ति के कर्म शुद्ध होते हैं। मान्यता है कि संतों के दर्शन और उनका आशीर्वाद जीवन को सुखमय और कल्याणकारी बनाता है। कुंभ के समय योग, ध्यान और आध्यात्मिक साधनाएं करने से आत्मा को शांति और शक्ति मिलती है। इसे आत्मा और परमात्मा के मिलन का समय माना जाता है। 

कुंभ मेला हमारी गौरवशाली संस्कृति का अभिन्न अंग है, जो भारतीय समाज के धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन के प्रत्येक पहलू को संजोए हुए है। यह मात्र आस्था का प्रतीक नहीं है, अपितु भारतीय धर्म, दर्शन, परंपरा और खगोलीय विज्ञान का अद्भुत संगम भी है। कुंभ मेला भारतीय संस्कृति की वह धरोहर है, जो प्रत्येक पीढ़ी को अपनी जड़ों से जुडऩे का अवसर प्रदान करता है तथा गंगास्नान, साधना, दानधर्म, पितृतर्पण, श्राद्धविधि, सन्तदर्शन, धर्मचर्चा जैसे सुकृत्यों को सम्पादित करने की आधारभूमि प्रदान करता है। 

समूचा विश्व चकित है कैसी श्रद्धा है? कैसी गंगा मां है? कैसी आस्था है? और कैसा कुंभ है? कैसा धर्म है? कैसा विज्ञान है? कैसा ग्रह-नक्षत्रों का योग है? जन सैलाब एक ही उद्देश्य को लेकर उमडा है।कुंभपर्व मात्र जल से शरीर का मिलन नहीं है, कुंभ स्नान का यथार्थ अर्थ है, तन-मन को अमृतमय जल से भिगोकर पूर्वकृत के पापों, अपराधों के प्रायश्चित करने का सरलतम मार्ग।