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सियासत की गली में उतारे गए महाबली बजरंगबली

सार

हेट स्पीच पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला काफी चर्चा में है. राज्य सरकारों को बिना शिकायत के हेट स्पीच के मामलों में तत्काल सख्त कदम उठाने के निर्देश दिए गए हैं. स्वतंत्र स्पीच से ही हेट स्पीच भी निकलती है..!

janmat

विस्तार

हेट स्पीच क्या है? इसको लेकर कोई नियम स्पष्ट नहीं है. कौन सी भाषा, कौन सी बात, हेट स्पीच मानी जाएगी, इसका निर्धारण कैसे होगा? स्वतंत्र स्पीच कब हेट स्पीच में बदल जाएगी यह किस नियम से तय होगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि नियम से ज्यादा नियंता की मर्जी हेट स्पीच निर्धारित करेगी.

नफरत और मोहब्बत अस्तित्वगत स्वभाव है. इस स्वभाव का शोषण राजनीति का स्वभाव बन गया है. चुनाव में बहुमत को प्रभावित करने के लिए नफरत और मोहब्बत को उभारने की साज़िशें अगर बंद हो जाएं तो शायद हेट स्पीच की समस्या का समाधान हो सकता है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में साम-दाम, दंड-भेद सारे तरीके आजमाए जा रहे थे लेकिन अचानक चुनावी सियासत में महाबली बजरंगबली अवतरित हो गए हैं.

यह जानते हुए भी कि स्थानीय मुद्दों पर चुनाव को सीमित करने का लाभ कांग्रेस को मिलता है. फिर भी कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में बजरंग बली के नाम से मेल खाते हुए हिंदू संगठन को प्रतिबंधित करने का वायदा करके धर्म की चुनावी संजीवनी विरोधी के हाथ में थमा दी है. समाज में नफरत कोई भी फैलाए तो उसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए. वह चाहे हिंदू संगठन हो मुस्लिम संगठन हो या कोई और हो. इसके लिए किसी को भी नामजद करने की कोई जरूरत नहीं थी लेकिन कांग्रेस ने बड़ी राजनीतिक गलती कर दी है.

हेट स्पीच खासकर राजनीति और धर्म क्षेत्र में जिस शैली भाषा और तरीके से रखी जाती है वही राजनेता और धर्मगुरु  के चातुर्य और बुद्धिमत्ता को प्रदर्शित करती है. नफरत और मोहब्बत दोनों ध्रुवीकरण का पैमाना होते हैं. चुनावी राजनीति इसका बखूबी उपयोग करती है. कोई धर्मगुरु अगर यह कहता है कि हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए संकल्पबद्ध है तो क्या इसे ध्रुवीकरण की कोशिश नहीं माना जाएगा? बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने का वायदा भी कांग्रेस द्वारा एक समुदाय को तुष्ट करने की कोशिश के रूप में ही देखा जा रहा है.

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर बीजेपी द्वारा प्रतिबंध लगाया गया है. इसको लेकर राजनीतिक हलकों में प्रतिक्रियाएं होती रही हैं. कर्नाटक चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं का ध्रुवीकरण निश्चित ही कांग्रेस के लिए लाभदायक रहेगा. इसके लिए यह संदेश देना शायद जरूरी समझा गया कि मुस्लिम विरोधी ताकतों को कुचला जाएगा. बजरंग दल पर प्रतिबंध का वायदा इसी सोच पर आधारित हो सकता है.

बीजेपी के लिए धार्मिक मुद्दे हमेशा से फायदेमंद रहे हैं. बीजेपी के राजनीतिक उत्थान में अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है. भारत का बहुसंख्यक समाज आजादी के बाद से ही अपनी संस्कृति और आस्थाओं के प्रति राजनीतिक पहचान की कटिबद्धता की तलाश में था.

राम मंदिर आंदोलन के रूप में जैसे ही सांस्कृतिक गौरव का विषय उभरा, बहुसंख्यक समाज ने उस राजनीतिक दल को हाथों हाथ उठा लिया. देश के राजनीतिक हालात आज बीजेपी विरुद्ध ऑल की स्थिति में इसीलिए पहुंच गए हैं क्योंकि लंबे समय तक चली राजनीतिक क्रियायों की प्रतिक्रिया में खड़े होने का लोगों को अवसर मिला है.

बीजेपी ने सांस्कृतिक गौरव और आस्था के विषयों को अपने राजनीतिक एजेंडे में हमेशा से शामिल रखा है. भले ही इसके लिए उसको आलोचनाओं का सामना करना पड़ा हो लेकिन उसने इन विषयों को कभी भी नहीं छोड़ा. 

सुशासन और विकास के पैमाने पर कोई भी राज्य सरकार खरी नहीं उतरती है. सरकार विरोधी रुझान का सामना हर सरकार को करना पड़ता है. कर्नाटक में बीजेपी सरकार को ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है. बजरंग बली के नाम से जुड़े संगठन पर कांग्रेस के प्रतिबंध के वायदे से अचानक बजरंग बली सियासी महाबली के रूप में उतारे गए हैं. प्रधानमंत्री से लगाकर बीजेपी का छोटे से बड़ा हर नेता बजरंगबली का नाम लेकर बहुसंख्यक समाज की आस्था को चोट पहुंचाने के लिए कांग्रेस को कटघरे में खड़ा कर रहा है.

ऐसा बताया जा रहा है कि मतदान के पहले कर्नाटक में गांव-गांव हनुमान चालीसा के पाठ की राजनीतिक रैलियां की जा रही हैं. धर्म और धार्मिक प्रतीकों का चुनाव में उपयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए प्रतिबंधित है. इसके बाद भी कर्नाटक चुनाव में इनका जमकर उपयोग हो रहा है.

हेट स्पीच और धर्म का राजनीति में उपयोग जब तक नहीं रुकेगा तब तक इस समस्या का निदान संभव नहीं लगता है. दंड प्रक्रिया में प्रावधान कर हेट स्पीच नियंत्रित करना संभव नहीं है. इसके लिए चुनाव सुधारों की जरूरत है. जब तक राजनीतिक सिस्टम को सुधारने के लिए सख्त कदम नहीं उठाए जाएंगे तब तक हेट स्पीच का रुकना असंभव सा है.

आजकल राजनीति प्रतिक्रिया स्वरूप ही ज्यादा हो रही है. राजनीति में मौलिकता का अभाव साफ देखा जा सकता है. यह राजनीति का ही कमाल है कि हेट स्पीच, पद-प्रतिष्ठा और वैभव से मालामाल करते हुए दिखाई पड़ती है.

हेट स्पीच के नटवरलालों का जाल फैला हुआ है. सदियों और सालों से यह चल रहा है और ढाई घर घोड़े की यह चाल आगे भी चलती दिखाई पड़ रही है. ऐसी शक्तियों की दाल खूब गल रही है. धर्म की खाल छीली जा रही है. इंसान के स्वभाव को ढाल बनाकर मोतियों की थाल सजाई जा रही है. राजनीति में “फूले गाल” के लिए सब कुछ “निहाल” किया जा सकता है. नफरत और घृणा भी राजनीति में लाभ का सौदा साबित हो रही है.