ममता हिंदू-विरोधी बयान तो दे सकती हैं, लेकिन इस्लाम या किसी अन्य धर्म, संप्रदाय, मत, आस्था-विश्वास के खिलाफ ऐसी टिप्पणी करके दिखाएं, तो बंगाल में दंगों के आसार बन सकते हैं..!!
वैसे यह कोई नई बात नहीं है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने महाकुंभ को ‘मृत्यु-कुंभ’ करार दिया है। यह राजनीतिक, सांप्रदायिक और सनातन-विरोधी बयान है। इसे हमेशा की तरह नजरअंदाज करना ही बेहतर है, क्योंकि हर अनर्गल बयान का पलटजवाब देना उचित और जरूरी नहीं है। ममता हिंदू-विरोधी बयान तो दे सकती हैं, लेकिन इस्लाम या किसी अन्य धर्म, संप्रदाय, मत, आस्था-विश्वास के खिलाफ ऐसी टिप्पणी करके दिखाएं, तो बंगाल में दंगों के आसार बन सकते हैं।
महाकुंभ के संदर्भ में भीड़ और भगदड़ की चर्चाएं खूब हैं और ऐसे दृश्य भी देखने को मिल रहे हैं, लेकिन आजकल ऐसा लगता है मानो पूरा देश जाम में फंसा है और आम आदमी भीड़ में दबा-कुचला अपनी सांसों के लिए संघर्ष कर रहा है! यह महाकुंभ का ही नहीं, भारत का भी यथार्थ है, क्योंकि आबादी 146 करोड़ को पार कर चुकी है, लेकिन संसाधनों में उतनी आनुपातिक बढ़ोतरी नहीं हुई है। शोध के जरिए कुछ आंकड़े हासिल हुए हैं, जो देश की संकरी और असहाय व्यवस्था को बयां करते हैं। दरअसल जब भारत की आबादी 36 करोड़ के करीब थी, तब देश में करीब 6000 रेलवे स्टेशन थे, लेकिन आज आबादी के 146 करोड़ के पार पहुंचने के बावजूद 8495 रेलवे स्टेशन ही हैं।
औसतन 2 लाख लोगों पर मात्र 1 ही रेलवे स्टेशन है, तो भीड़ क्यों न जमा हो और भगदड़ के हालात क्यों न बनें? औसतन एक लाख लोगों पर मात्र 1 ही यात्री रेलगाड़ी (900 सीट की) है। औसतन 10,000 लोगों पर एक ही सरकारी बस (70 सीट) उपलब्ध है। औसतन 1 करोड़ लोगों पर एक ही हवाई अड्डा है। देश के 4 करोड़ नागरिकों पर सर्वोच्च अदालत का एक ही न्यायाधीश है, जबकि औसतन 18 लाख लोगों को उच्च न्यायालय का एक ही न्यायाधीश न्याय देने की स्थिति में है।
औसतन 7-10 साल की जिंदगी आम आदमी लाइनों में खड़े रहने में बिताने को विवश है, क्योंकि भीड़ ही इतनी है, लिहाजा मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि आम आदमी का क्रोध, तनाव बढ़ता रहता है। उन मानसिक स्थितियों में वह कुछ भी कर सकता है! भारत में जन्म से पहले ही लाइन लगानी पड़ती है, क्योंकि अस्पतालों में भीड़ है और डॉक्टरों की संख्या बेहद कम है। स्कूल में प्रवेश लेने, पढऩे और उसके बाद नौकरी लेने, राशन प्राप्त करने और अपनी राष्ट्रीय पहचान के लिए आधार कार्ड बनवाने के लिए, अंतत:, लाइनों से ही गुजरना पड़ता है।
मृत्यु प्रमाणपत्र हासिल करना है, तो भी लाइन लगती है। इन लाइनों का बुनियादी कारण भीड़ ही है। महाकुंभ के लिए कोई लाइन नहीं है, बल्कि बेतहाशा, बेलगाम भीड़ है। उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि भीड़ का भी आनंद लेना चाहिए। जब भीड़ भगदड़ बन जाती है, तो कुचलन में कौनसा आनंद मिलेगा या मौत मिलेगी? भगदड़ सिर्फ महाकुंभ की भीड़ के कारण ही नहीं हुई थी, बल्कि नई दिल्ली के अत्याधुनिक रेलवे स्टेशन पर भी हुई थी। यह गंभीर मानवीय समस्या है। सरकार इस समस्या का समाधान जरूर तलाशे।