फ़ैसला भारत की जनसांख्यिकी में बदलाव की समझ को दर्शाता है, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के मुताबिक साल 2050 तक भारत में उम्रदराज लोगों की हिस्सेदारी बढ़कर 20 प्रतिशत तक हो जाएगी, आँकड़े कहते हैं कि जनसंख्या के इस समूह का चिकित्सा व्यय ज्यादा होता है..!!
एक फ़ैसला जिसका स्वागत होना चाहिए – फ़ैसला है “आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत 70 से अधिक उम्र के सभी वरिष्ठ नागरिकों को (चाहे वे किसी भी आय वर्ग के हों) स्वास्थ्य बीमा मुहैया कराना ।” यह फ़ैसला भारत की जनसांख्यिकी में बदलाव की समझ को दर्शाता है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के मुताबिक साल 2050 तक भारत में उम्रदराज लोगों की हिस्सेदारी बढ़कर 20 प्रतिशत तक हो जाएगी।आँकड़े कहते हैं कि जनसंख्या के इस समूह का चिकित्सा व्यय ज्यादा होता है।
दिल्ली और पश्चिम बंगाल ने, जहां उम्रदराज लोगों की जनसंख्या क्रमश: आठ और 11 प्रतिशत है, इस योजना से बाहर रहने का विकल्प चुना है, जैसा कि वे पहले भी साल 2018 में पीएम-जेएवाई की शुरुआत के समय कर चुके हैं।इन दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों का यह दावा है कि उनका प्रशासन अपने नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य योजनाएं मुहैया करा रहा है, जैसा कि और कहीं नहीं है।
गैर भाजपा शासित राज्य केरल और तमिलनाडु में भी यकीनन राज्य स्तर की ऐसी सबसे अच्छी योजनाएं हैं, लेकिन उन्होंने केंद्रीय योजना को अपने राज्यों में संचालित करने की अनुमति देने का विकल्प चुना है। ऐसा करके उन्होंने अपने नागरिकों को व्यापक विकल्प मुहैया कराया है और इससे जो प्रतिस्पर्धा होगी उससे निस्संदेह उनकी योजना में ही दक्षता बढ़ेगी। यह महज संयोग नहीं है कि इन दोनों राज्यों में पीएम-जेएवाई के इस्तेमाल की दर सबसे ज्यादा है।
यह सच है कि योजना के विस्तार से चिकित्सा बुनियादी ढांचे पर अधिक दबाव पड़ने का अनुमान है। योजना का उद्देश्य प्रति परिवार को, उम्र चाहे कुछ भी हो, माध्यमिक और तृतीयक देखभाल अस्पतालों के माध्यम से साल भर में 5 लाख रुपये तक के स्वास्थ्य बीमा के तहत कैशलेस और पेपरलेस इलाज सुविधा मुहैया कराना है। इसके तहत आर्थिक रूप से सबसे निचले स्तर की 40 प्रतिशत आबादी के परिवार लाभार्थी हैं।
फिलहाल योजना तक लक्षित लाभार्थियों के 56 प्रतिशत हिस्से की पहुंच हो चुकी है। नई योजना के तहत जिन परिवारों को पहले से ही पीएम-जेएवाई का लाभ मिल रहा है और उनमें 70 साल से अधिक उम्र के लोग हैं, उन्हें 5 लाख रुपये के बीमा के टॉप-अप का फायदा मिलेगा। इस विस्तार से देश के करीब 4.5 करोड़ परिवारों के 6 करोड़ वरिष्ठ नागरिकों को फायदा मिलेगा। हालांकि योजना का लाभ अधिक से अधिक पहुंचाने के लिए सरकार को मौजूदा योजनाओं की उन कुछ प्रमुख चुनौतियों से तत्काल निपटना होगा जो विस्तार के बाद और बढ़ सकती हैं।
अस्पताल सुविधाओं की कमी ऐसी ही एक गंभीर समस्या है। इस योजना का संचालन करने वाले राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) के अनुसार, आयुष्मान भारत से देश भर में करीब 30,000 अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्र जुड़े हुए हैं जिनमें से 13,582 निजी क्षेत्र के हैं।
योजना के लिए पात्र जनसंख्या के लिहाज से देखें तो यह संख्या बहुत ही छोटी है, यही नहीं देश के सभी राज्यों में ऐसे अस्पतालों या स्वास्थ्य केंद्रों का वितरण भी समान नहीं है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की एक रिपोर्ट के अनुसार, कई राज्यों में तो प्रति 1,00,000 जनसंख्या पर दो से दस अस्पताल ही सूचीबद्ध हैं।
स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि मरीजों की बढ़ती संख्या विशेष रूप से छोटे और मध्यम अस्पतालों के लिए कठिनाई बढ़ाएगी, जो सीमित मार्जिन पर काम करते हैं। योजना के वित्तीय ढांचे को भी सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है। वैसे तो पीएम-जेएवाई ने लोगों के चिकित्सा खर्चों में कुछ कटौती की है, लेकिन अध्ययनों में यह देखा गया कि इसने वित्तीय जोखिम को व्यापक रूप में खत्म नहीं किया है।इसकी मुख्य वजह यह है कि पीएम-जेएवाई के तहत ओपीडी (बाह्य-रोगी ) परामर्श के लिए भुगतान नहीं किया जाता। इसके अलावा कई अस्पताल संघों ने कम दर मिलने और प्रतिपूर्ति में देरी की शिकायत की है।
उदाहरण के लिए भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) की पंजाब शाखा ने राज्य के सूचीबद्ध निजी अस्पतालों में इस योजना के तहत उपचार तब तक रोकने का ऐलान किया है, जब तक 600 करोड़ रुपये की बकाया राशि नहीं मिल जाती। ऐसी बुनियादी प्रशासनिक समस्याओं का समाधान करना इस योजना के लिए महत्त्वपूर्ण है, ताकि आम आदमी की स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच में सार्थक रूप से सुधार हो सके।