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मध्यप्रदेश में मोदी का 'मोहन प्रयोग' रहेगा कसौटी पर

सार

कर्नाटक में येदुरप्पा सरीखे भाजपा के कद्दावर नेता को हटाकर बसवराज बोम्मई सरीखे चेहरे पर दांव उन्होंने लगाया, हिमाचल और कर्नाटक में तो भाजपा की सरकार ही चली गई. लेकिन उत्तराखंड में भाजपा ने बहुमत पाया और पुष्कर धामी हारे तो उन्हें फिर उपचुनाव में जिताकर मुख्यमंत्री बनाए रखा..!!

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विस्तार

गुजरात में उपचुनाव में पहली बार विधायक बनकर आए भूपेंद्र पटैल को जब नरेंद्र मोदी- अमित शाह ने मुख्यमंत्री बनाया तो सब चौंके जरूर थे, लेकिन यह उनके गृह प्रदेश की बात थी। सबको पता था कि वे किसी को भी जिता सकते हैं। इसके पहले हरियाणा में तमाम कयासों को दरकिनार करके मनोहर खट्टर, उत्तराखंड में त्रिवेंद्र रावत और पुष्करधामी, हिमाचल में जयराम ठाकुर को सीएम बनाकर चौंका चुके हैं। कर्नाटक में येदुरप्पा सरीखे भाजपा के कद्दावर नेता को हटाकर बसवराज बोम्मई सरीखे चेहरे पर दांव उन्होंने लगाया। हिमाचल और कर्नाटक में तो भाजपा की सरकार ही चली गई। लेकिन उत्तराखंड में भाजपा ने बहुमत पाया और पुष्कर धामी हारे तो उन्हें फिर उपचुनाव में जिताकर मुख्यमंत्री बनाए रखा।

हाल के तीन राज्यों के विधानसभाई चुनावी नतीजे आने के बाद छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री के सभी संभावितों के चेहरों को दरकिनार करते हुए उन विष्णुदेव साय को सीएम बनाकर फिर चौंकाया, जिनका 2019 के लोकसभा चुनाव में खुद मोदी ने टिकट काटा था। मध्यप्रदेश को लेकर खुद नरेंद्र मोदी मानते रहे हैं कि भाजपा की यह जन्मस्थली है। लेकिन वे मप्र को भी अपने राजनीतिक नुस्खों की प्रयोगशाला बनाएंगे, इसका इल्म किसी को नहीं था। शिवराज के चेहरे को चुनावों के बीच पीछे करके अमित शाह ने जब शिवराज के समकालीन साथियों नरेंद्र सिंह तोमर से लेकर प्रहलाद पटैल और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को केंद्र की राजनीति से मप्र शिफ्ट करके मप्र में चुनाव लड़ाया तब भी समझा जा सकता था कि हिमाचल और कर्नाटक की हार के बाद वे लोकसभा चुनाव के पहले कोई प्रतिकूल नैरेटिव सेट नहीं करना चाहते। ग्वालियर-चंबल से महाकौशल और मालवा निमाड़ तक भाजपा के हालात सुधारने की मंशा साफ थी। शिवराज से 165 और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से 88 चुनावी रैलियां करवाई। खुद मोदी ने रैली से लेकर रोड शो किए तो अमित शाह सहित कई केंद्रीय मंत्री भी प्रचार किया।

मप्र में भाजपा को मिली बंपर जीत के बाद सभी को लगता था कि शिवराज भले मुख्यमंत्री न बनें लेकिन उनके विकल्प के बतौर उनकी ही समवर्ती किसी नेता को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिलेगा। कैलाश विजयवर्गीय से लेकर नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद पटैल के नाम उभरे। लेकिन इनमें लोधी समाज से ताल्लुक रखने वाले प्रहलाद पटैल सीएम रेस में सबसे आगे और बाजी मारते दिखे। शायद उन्हें इसके संकेत भी मिल चुके थे। इसी के चलते प्रहलाद की अपने रानीतिक गुरू मुरली मनोहर जोशी से आर्शीवाद प्राप्त करने से लेकर मप्र की विधानसभा में मोदी स्टाईल में सीढ़ी पर प्रणाम करते फोटो भी छपे। मप्र विधायक दल के नेता चुनने के लिए हुई बैठक के दौरान प्रदेश भाजपा दफ्तर के बाहर सबसे बड़ा समर्थकों का टोला भी पटेल का ही दिखा। लेकिन ऐन मौके पर पटैल का दावा दरकिनार हो गया और मोहन यादव के नाम पर मुहर लग गई। ऐसे नाम पर जिसकी किसी ने दूर-दूर तक कल्पना नहीं की थी। मेरे चुनावी सर्वे को सच के करीब मानने वाले सैकड़ों लोगों ने मुझे नए सीएम के बारे में टटोलना चाहा तो मेरा यह जवाब था कि यह तो मोदी-शाह जाने या भगवान। पत्रकार के नाते जनता की नब्ज टटोलना आसान है, मोदी-शाह के मन को पढ़ पाना टेढ़ी खीर है। ऐन मौके पर प्रहलाद पटेल की बॉडी लैंग्वेज से उभरते नए सीएम के मंसूबों पर भी मोदी पानी फेर देंगे, यह यकीन से परे है। लेकिन आज का सच यही है कि संघ प्रिय मोहन यादव प्रदेश के नए मुख्यमंत्री हैं।

महाकाल की नगरी उज्जैन से तीसरी बार चुनाव जीते मोहन यादव का सवाल है तो बीते साढ़े तीन सालों के दौरान शिवराज के विकल्प के बारे में उनके नाम की अटकलें खूब लगीं। पिछड़ा वर्ग से जुड़ाव के साथ ही आरएसएस से नजदीकियों की दमदार दलीलें दी गई। केंद्रीय मंत्री अमित शाह से मुलाकातों के दौर से भी इसको हवा मिली। लेकिन तबके कयास अब हकीकत में तब्दील होंगे, यह राजनीतिक पंडितों के लिए शोध का विषय है। किसी का कयास है कि मप्र के चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव ने गणित देकर मोहन यादव के नाम पर मोदी-शाह को राजी कराया। कयासों की पतंगबाजी में कुछ खबरिया चैनलों के उत्साही खबरची यह दावे भी कर रहे हैं कि उनके मुख्यमंत्री बनने से भाजपा को लोकसभा चुनावों में राजस्थान से लेकर यूपी, बिहार और हरियाणा तक लाभ होगा। मप्र में यादव समाज पूरी तरह भाजपा के साथ होगा। भाजपा आलाकमान ने डिप्टीसीएम के बतौर राजेंद्र शुक्ला और जगदीश देवड़ा के नाम की घोषणा करके ब्राह्मणों से लेकर दलितों को भी साधने का जतन किया है।

केंद्रीय कृषि मंत्री छोड़कर मप्र विधानसभा के स्पीकर बनने के फैसले के साथ लाख टके का सवाल यही है कि प्रहलाद पटेल का क्या होगा? क्या वो विस के डिप्टी स्पीकर या यादव काबीना में मंत्री बनेंगे? शिवराज का क्या उपयोग होगा? कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका क्या होगी? जयंत मलैया या गोपाल भार्गव या भूपेंद्र सिंह सरीखे पुराने दिग्गजों का क्या भविष्य होगा? विधायक बने वरिष्ठ नेता क्या फिर लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे? कुल मिलाकर राजनीतिक प्रयोगों के लिए मशहूर मोदी का मोहन यादव पर किया प्रयोग कसौटी पर रहेगा।