• India
  • Sun , Nov , 24 , 2024
  • Last Update 09:52:AM
  • 29℃ Bhopal, India

मोदी नीति जीती, राहुल राजनीति हारी

सार

महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव नतीजे अप्रत्याशित संकेत हैं. भाजपा की महायुति महाराष्ट्र और जेएमएम के गठबंधन ने स्पष्ट बहुमत के साथ झारखंड में ऐतिहासिक जीत दर्ज की है..!!

janmat

विस्तार

    हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के नतीजों के साथ भी स्कोर एक-एक का था. लेकिन ज्यादा चर्चा हरियाणा के नतीजों की हुई. इस बार भी दोनों राष्ट्रीय गठबंधनों के बीच परिणाम एक-एक की बराबरी के साथ पूर्ण हुए हैं, लेकिन महाराष्ट्र के परिणामों ने महासंदेश दिया है. हिंदुत्व की राजनीति को परिपक्वता और स्थिरता मिल रही है. ये चुनाव परिणाम यह स्थापित कर रहे हैं, कि मोदी की नीतियों की जीत हुई है, तो राहुल गांधी की राजनीति हार गई है.

    महाराष्ट्र की प्रचंड की जीत में आरएसएस की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण है. चुनाव परिणामों ने शिवसेना और एनसीपी के गुटों को भी वैधानिकता प्रदान कर दी है. शिवसेना शिंदे और एनसीपी अजीत पवार को चुनाव आयोग पहले ही मान्यता दे चुका है. अब जनादेश ने भी उन्हें मान्यता दे दी है. बालासाहेब  ठाकरे की विरासत एक तरह से जनता ने एकनाथ शिंदे को सौंप दी है. उद्धव ठाकरे और शरद पवार की राजनीति पांच साल बाद होने वाले अगले चुनाव के समय शायद महत्वहीन हो जाएगी.

    परिणामों में सुनामी  के बाद महायुति के सामने मुख्यमंत्री पद पर सटीक निर्णय की चुनौती है मुख्यमंत्री रहे देवेंद्र फडणवीस एकनाथ शिंदे के मंत्रीमंडल में उपमुख्यमंत्री बन गए थे. अगर बीजेपी अपना मुख्यमंत्री बनाती है, तो क्या फिर मुख्यमंत्री के पद पर रहे नेता के उपमुख्यमंत्री बनने की संभावना है? चुनाव परिणाम तो यही मैंडेट देते दिख रहे हैं, कि बीजेपी के नेतृत्व में सरकार का संचालन हो.

    राहुल की जातिगत जनगणना का वायदा हारा है. मोदी और अडानी को जोड़कर राहुल गांधी ने मुंबई के धारावी प्रोजेक्ट अडानी समूह को मिलने पर करप्शन के आरोप लगाए थे. अडानी समूह भले चुनाव मैदान में नहीं था, लेकिन राहुल गांधी ने अडानी को विपक्ष के प्रचार का मुद्दा बनाया था. औद्योगिक राज्य महाराष्ट्र और देश की आर्थिक राजधानी मुंबई ने चुनाव परिणामों के जरिए मोदी सरकार की नीतियों पर मुहर लगा दी है.

    कांग्रेस को महाराष्ट्र में लगा झटका केवल करारी हार तक सीमित नहीं है. बल्कि पार्टी के भविष्य पर सवाल खड़े हो रहे हैं. अब तो ऐसा लग रहा है, कि कांग्रेस को अर्बन नक्सल बामपंथी विचारधारा और औद्योगिक समूहों को पॉलीटिकल कन्विक्शन की रणनीतियों को भी छोड़ना होगा. 

    रणनीतियों के दोष से ग्रसित कांग्रेस का राहु दोष ज्योतिष से दूर नहीं हो सकता. देश की आधी आबादी महिलाएं क्या कांग्रेस से छिटक रही हैं. राहुल गांधी को पीछे कर प्रियंका गांधी के नेतृत्व को आगे लाने का प्रयोग क्या कांग्रेस कर सकती है?

    महाराष्ट्र और झारखंड में महिलाओं के लिए लागू योजनाओं का असर चुनाव परिणामों में दिख रहा है, इसके पहले मध्य प्रदेश सरकार की लाड़ली बहना योजना भी कमाल दिखा चुकी है. शिंदे सरकार की लाड़की बहना और लाड़का भाई योजना का व्यापक लाभ महायुति सरकार को चुनावों में मिला है. 

    हेमंत सोरेन सरकार की ऐसी ही, मइया योजना का असर उनकी जीत में देखा जा सकता है. झारखंड के आदिवासियों को लुभाने में बीजेपी सफल नहीं हो पाई. जेल जाने की सहानुभूति हेमंत सोरेन को चुनावी लाभ का कारण बनी.

    ऐसा लगता है, कि करप्शन के आरोपों का चुनाव पर प्रभाव नहीं पड़ा झारखंड में तो भृष्टाचार के आरोप में मुख्यमंत्री तक को जेल जाना पड़ा. छापों में सैंकड़ों करोड़ रुपए जब्त किए गए फिर भी चुनाव में उन्हीं दलों के प्रत्याशी विजयी होने में सफल हुए.

    कांग्रेस ने तो अडानी को करप्शन का ऑईकन बना लिया है. अडानी के बहाने पीएम मोदी को भी टारगेट करने की रणनीति कांग्रेस ने अपनाई लेकिन इस पर जनता ने भरोसा नहीं किया.

    मोदी को बदनाम करने की रणनीति भी भविष्य में कांग्रेस को बदलनी पड़ेगी. जहां भी जब भी कांग्रेस ने मोदी पर सीधा आरोप लगाया तब-तब उसे नुकसान उठाना पड़ा. कांग्रेस अपने बलबूते पर बीजेपी का मुक़ाबला करने में फेल हो जाती है. दोनों राज्यों में कांग्रेस का परफ़ॉरमेंस निराशाजनक रहा है.

    महाराष्ट्र में तो ऐसे हालात बन गए हैं, कि महाविकास अघाड़ी में शामिल कोई भी दल इतनी तादात में भी एमएलए जिता नहीं पाए, जिससे कि नेता प्रतिपक्ष का पद किसी दल को मिल सके. संभवत: ऐसा पहली बार होगा जब महाराष्ट्र के सदन में नेता प्रतिपक्ष का संवैधानिक पद खाली रहेगा.

    महाराष्ट्र ने कांग्रेस को प्रचंड हार दी है. इस हार का दर्द इतना ज्यादा है, कि झारखंड में जीत से भी दर्द कम नहीं हो सकेगा. चुनाव परिणामों में बीजेपी के लिए भी कहीं खुशी कहीं ग़म जैसी स्थितियां हैं. परिणामों का एक संकेत यह है, जहां और जब बीजेपी में अंदरूनी खींचतान बढ़ती है, तब उसका खामियाज़ा भुगतना पड़ता है. सत्ता संघर्ष का स्वाभाविक गुण अंतरकलह है. पिछले लोकसभा चुनाव परिणामों में महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में बड़ा झटका लगा था.

    यूपी के उपचुनाव में बीजेपी के परफॉरमेंस ने लोकसभा के दर्द को भुला दिया है. ऐसा ही महाराष्ट्र में भी हुआ है. महाराष्ट्र और यूपी में नहीं फिसलती तो बीजेपी को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत मिलता. लोकसभा के छै महीने बाद ही इन दोनों राज्यों ने बीजेपी को खुश होने का मौका दिया है, तो कांग्रेस को रोने लायक भी नहीं छोड़ा है. यूपी के उपचुनाव में तो कांग्रेस मैदान में ही नहीं थी. और महाराष्ट्र में इतनी बुरी हार इसके पहले अब तक कांग्रेस ने कभी नहीं झेली थी.

    मध्य प्रदेश में भी बुदनी और विजयपुर में भी उपचुनाव हुए थे. एक बीजेपी और एक कांग्रेस ने जीती है. कांग्रेस की जीत बीजेपी के लिए अलार्मिंग है. वन मंत्री रामनिवास रावत को कांग्रेस ने चुनाव हराया है. कांग्रेस का इससे जोश बहुत हाई होगा तो, बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बजी है. 

    झारखंड में बीजेपी के प्रभारी केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान वहां सफल नहीं हो पाए, तो मध्य प्रदेश में उनकी परंपरागत सीट बुदनी में बीजेपी की लीड कम हो गई है. 

   एमपी मे बीजेपी में नया मुख्यमंत्री मोहन यादव को बनाया गया है, यद्यपि उनको अभी एक साल पूरा नहीं हुआ है, लेकिन सरकार और पार्टी में अंतरकलह और असंतोष की बातें अंदरखाने से आने लगी हैं. परिणामों से सबक लेने की ज़रूरत है. जीतू पटवारी के लिए विजयपुर की जीत विजयी जोश भरने में कारगर हो सकती है. 

    विजयपुर क्षेत्र ग्वालियर चंबल इलाके में आता है. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी इस इलाके की इस सीट पर चुनाव प्रचार के लिए नहीं गए. पार्टी का क्या आंतरिक गणित है, यह समझना मुश्किल है.

    बीजेपी को अति आत्मविश्वास से बचने की ज़रूरत है, तो कांग्रेस को राहु दोष की शांति कराने की आवश्यकता है. बीजेपी की हिंदुत्व विचारधारा जहां एक हैं, तो सेफ हैं, तो वहीं कांग्रेस को अपनी विचारधारा पर पुनर्विचार करना पड़ेगा. अभी तो ऐसा लगता है, कि कांग्रेस की कोई विचारधारा ही नहीं है. राहुल गांधी को विपक्ष के नेता की भूमिका संवैधानिक के दायरे में रहकर निभाने की ज़रूरत है.

    अडानी और जातिगत जनगणना जैसे मुद्दों पर जब बार-बार फेल हो रहे हैं तो इन्हें न्यायिक प्रक्रिया पर ही भरोसा करना चाहिए ऐसे मुद्दों पर राजनीति से बचना चाहिए. लेकिन कांग्रेस का दुर्भाग्य देखिए कि चैनलों पर परिणामों की चर्चा में कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता चुनावों में जीत के लिए बीजेपी के साथ-साथ अडानी को बधाई दे रहे हैं.

    बिखरती कांग्रेस से क्षेत्रीय दल भी बिखर सकते हैं. कांग्रेस के क्षेत्रीय क्षत्रप कांग्रेस की कुंडली में लगे राहु दोष का निवारण नहीं कर पा रहे हैं. महाराष्ट्र का महासंदेश हिंदुत्व की एकता के लिए तो है, ही यह कांग्रेस के लिए भी विशेष है.

    यह परिणाम कांग्रेस से कह रहे हैं, राहु दोष की शांति कराओ, जात-पांत से उठ जाओ, देश को जोड़ो और लगातार फेल हो रहे नेता को छोड़ो, बल्कि नए नेता को आगे लाओ. नज़र ही नेगेटिव मत बनाओ, जो अच्छा हो उसे अच्छा भी कहो भले इसके लिए मोदी को ही अच्छा कहना पड़े.