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एकजुट अथक प्रयास से मज़बूत हुआ देश का विश्वास 

सार

जिंदगी और मौत भगवान के हाथ होती है लेकिन उत्तरकाशी टनल हादसे में एकजुट प्रयास से इंसान ने मौत को हरा दिया. दीपावली के दिन जब पूरा देश प्रकाश का त्यौहार मना रहा था तब 41 मजदूरों की जिंदगी टनल के अंधेरे में समा गई थी. इन 41 परिवारों की तो दिवाली अंधकारमय हो गई थी लेकिन इस हादसे ने पूरे देश को झकझोर दिया था..!!

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विस्तार

मजदूरों को टनल से बाहर निकालने की कोशिशें जब चालू हुई तब हर दिन नई-नई बाधाओं ने हौसलों को पस्त करने में कोई कमी नहीं रखी. भारत सरकार की सड़क परियोजना में इस टनल का निर्माण हो रहा है. मजदूरों की जिंदगी को बचाना सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी. चुनौतियां तो नहीं रोकी जा सकती लेकिन उनसे मुकाबला अगर मजबूती और ईमानदारी से किया जाए तो फिर हारना चुनौती को ही पड़ता है. टनल में फंसे सभी मजदूरों को सकुशल निकालकर यही साबित किया गया है.

रेस्क्यू ऑपरेशन के एकजुट प्रयास, राज्य और भारत सरकार के सर्वोच्च स्तर से पल-प्रतिपल रखी जा रही नजर से उत्पन्न भरोसे ने अंततः 17 दिन बाद अंधेरी सुरंग में फंसी जिंदगियों को बाहर निकaलने में सफलता हासिल की. इस सफलता का सबसे बड़ा श्रेय तो उन बहादुर मजदूरों को जाएगा जो अंधेरी सुरंग में भी इतने लंबे समय तक धैर्य और बिना कोई पैनिक किये जिंदगी जीते रहे. बिना घबराए, बिना डरे, बिना समुचित भोजन के इन मजदूरों ने यह साबित किया कि हर भारतीय वक्त पड़ने पर रावण जैसी चुनौतियों का राम बनकर मुकाबला करने की क्षमता रखता है. मजदूरों का अगर भरोसा अटल नहीं होता कि रेस्क्यू ऑपरेशन हर हालत में सफल होगा तो वह कब के टूट जाते और सारे प्रयास भी उनको नहीं बचा पाते. उनके मजबूत इरादे ही सरकार के मजबूत इरादे से मिलकर रेस्क्यू ऑपरेशन को मजबूती दे सके हैं.

क्रिकेट वर्ल्ड कप में भारतीय टीम की हार पर राजनीति में पनौती शब्द बहुत प्रचलित हुआ था. अगर यह रेस्क्यू ऑपरेशन सफल नहीं होता तब भी ऐसा कोई ना कोई शब्द राजनीतिक जगत में जरूर अभी तक उछाल दिया गया होता. जब भी कोई मौत को जीतने वाला प्रयास होता है तो इस प्रयास के कर्मवीरों को सम्मान और अभिनंदन मिलता ही है. पूरे रेस्क्यू ऑपरेशन में विदेश और भारत के कई स्थानों से मशीन रातों-रात पहुंचाई गई. भारतीय वायुसेना के विमान तो रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए मशीनें पहुंचाने के लिए ऐसे काम कर रहे थे कि जैसे भारत कोई युद्ध लड़ रहा हो. 

यह टनल हादसा भारत का ही हादसा बन गया था. पूरी दुनिया से विशेषज्ञ बुलाए गए थे. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हर दिन मौके पर दिखाई पड़ते थे. प्रधानमंत्री की ओर से भी पूरे समय ऑपरेशन की मॉनिटरिंग की गई थी. पीएमओ के बड़े अफसर भी मौके पर लगातार पहुंच रहे थे. कई केंद्रीय मंत्री भी पहुंचे थे. सरकारी क्षेत्र में चारों तरफ इस दुर्घटना को लेकर ऐसा माहौल बन गया था कि अगर मजदूरों के साथ कोई अनहोनी घट गई तो सरकार देश का सामना कैसे करेगी? अब जब ज़िंदगी जीत गई है, टनल हार गई है तो पूरा देश आनंदित है. सरकार और उसके नेतृत्व को भी आनंदित होने का हक बनता है.

दुर्घटनाओं में मौतें सामान्य बात हैं. सड़क दुर्घटनाओं में मौतों को रोकने के प्रयास भी सफल नहीं होते हैं. कभी-कभी ऐसी दुर्घटनाएं होती हैं जो देश के दिल को तड़पा देते हैं. यह ऐसी ही दुर्घटना थी. पूरा देश टकटकी लगाए रेस्क्यू ऑपरेशन की सफलता की कामना कर रहा था. हर जगह प्रार्थना की जा रही थी. उपवास रखे जा रहे थे. दुर्घटनाएं तो होती रहेंगी लेकिन अचूक रेस्क्यू ऑपरेशन प्रगति की गति को भी आगे बढाते रहेंगे.

मीडिया के विस्तार के कारण भी रेस्क्यू मैनेजमेंट लगातार देश की निगाह में बना रहता है. कोई भी चूक तुरंत देश को पता चल जाती है. इसलिए इस अभियान में लगे सबसे बड़े और सबसे छोटे कर्मवीर भी हर पल सजगता के साथ जुटे रहे. टेक्नोलॉजी के साथ भारत की शक्ति और प्रभाव भी लगातार बढ़ता हुआ दिखाई पड़ रहा है. बेहतर मैनेजमेंट किसी भी अप्रिय परिस्थितियों को संभालने में कामयाब होता है. सही दृष्टिकोण, त्वरित निर्णय, एकजुट प्रयास, विशेषज्ञों और कर्मवीरों की राय को प्राथमिकता, आस्था पर विश्वास और बहुमूल्य जीवन के प्रति प्रतिबद्धता इस रेस्क्यू ऑपरेशन की कहानी कह रहा है. टनल निर्माण के दौरान हटाये गए देवस्थान को पुनर्स्थापित कर आस्था की प्रार्थना की गई.

टनल में मजदूरों के 17 दिन और रात शोध का विषय बन गए हैं. मजदूरों में शामिल गब्बर सिंह ने जिस तरह से सभी का नेतृत्व किया उसने प्रधानमंत्री तक को सम्मोहित कर दिया. हर भारतवासी बेजोड़ है. विपरीत समय में ही उसका धैर्य और क्षमता सामने आती है. भारत में  गब्बर सिंह जैसे नायक हर जगह उपलब्ध हैं जो मौका आने पर अपनी काबिलियत साबित करते हैं. जब मशीन फेल हो गई तब देश की पुरानी पद्धति पर माइनिंग करने वाले कर्मवीरों ने ही रेस्क्यू ऑपरेशन को अंतिम सफलता दिलाई.

ऐसी ही चमत्कारी सफलताएं देश का विश्वास बढ़ाती हैं और देश में आए बदलाव को भी रेखांकित करती हैं. पहले भी ऐसे अवसर आए हैं जब देश ने चमत्कारी उपलब्धियां हासिल की हैं. विंग कमांडर अभिनंदन जब फाइटर प्लेन सहित पाकिस्तान में लैंड कर गए थे तब सम्मान के साथ अभिनंदन की देश वापसी भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभुत्व के कारण ही संभव हो पाई थी. पूरा विश्व भारत की आवाज पर अगर मशीनों और विशेषज्ञों का सहयोग देने में तत्परता से सामने आया है तो यह भारत की विश्व में बढ़ती ताकत का ही परिणाम है. जिन भी देश में युद्ध की स्थितियां बनी है वहां से भारतवंशियों को निकाल कर भारत लाने का चमत्कारी काम भी देश ने पहले किया है.

भारत आज सड़क, रेल और अधोसंरचना के दूसरे क्षेत्रों में तुलनात्मक रूप से तेज गति से काम कर रहा है तो यह यहां के श्रमवीरों की ही ताकत है. टनल हादसे जैसी घटनाएं श्रमवीरों  के उत्साह को कम कर सकती हैं. इसलिए यह जरूरी था कि एक आम श्रमिक को यह विश्वास होना चाहिए कि देश के निर्माण में काम करते हुए किसी भी दुर्घटना के समय पूरा देश उनके साथ खड़ा होगा. सरकार उनके साथ खड़ी होगी. समाज उनके साथ खड़ा होगा. अधोसंरचना निर्माण के कामों में लगे श्रमिकों की सुरक्षा के लिए भी व्यवस्थाएं सुनिश्चित की जानी चाहिए. ईश्वर की कृपा से सभी मजदूर सुरक्षित बाहर आ गए हैं लेकिन यह दुर्घटना जिन कारणों से हुई है उसकी पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए.

उत्तरकाशी टनल हादसे के रेस्क्यू ऑपरेशन ने देश के इस भरोसे को अटल किया है कि चुनौतियों से मुकाबले के लिए भारत अब किसी से भी कम नहीं है. अब यह दौर खत्म हो गया है कि जो रेस्क्यू ऑपरेशन अमेरिका, रूस और दूसरे विकसित देशों में हो सकते हैं वह भारत में नहीं हो सकते हैं. एकजुट प्रयास, देश की हर आस को पूरा करने में सक्षम है. एकजुट भारत, हर अंधेरी सुरंग को हरा सकता है और जिंदगी को नई आशा और विश्वास से भर सकता है.