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धार्मिक स्वतंत्रता की जरूरत, कानूनी समानता 

सार

भारत में सेकुलर सिविल कोड नहीं है. संविधान की प्रस्तावना में सेक्युलर जोड़ा गया लेकिन धार्मिक कानूनों  को मान्यता दी गई.  धार्मिक समूह के तुष्टीकरण के लिए जनधन से योजनाएं चलाई गई. सेकुलर पॉलिटिक्स को इतना फैलाया गया कि, बहुसंख्ययों के लिए सेकुलर टेररिज्म के लिए संविधान को हथियार बनाया गया..!!

janmat

विस्तार

    सिलेक्टिव सेक्युलरिज्म, पॉलिटिक्स का रूटीन बन गया है. संविधान में सेकुलर शब्द पर ही विवाद है. संविधान निर्माताओं ने  इस शब्द को संविधान में नहीं रखा था. इमरजेंसी में इसे जोड़ा गया. धीरे-धीरे सेकुलर मतलब तुष्टिकरण स्थापित हो गया. इस शब्द की गलत अवधारणा संसदीय प्रणाली के लिए ही गलत अवधारणा स्थापित कर रही है.

    संविधान पर बहस सेकुलर पर शुरू और सेकुलर पर ही समाप्त हो जाती है. धार्मिक मान्यताओं को सेकुलर के नाम पर संविधान में स्थान दिया गया. जिनके धर्मशास्त्र की  धार्मिक मान्यता अंतिम है, उन्होंने शायद सेकुलर शब्द को इसलिए स्वीकार किया कि, अगर यह शब्द संविधान में नहीं स्थापित किया गया तो स्वाभाविक रूप से भारत एक सांस्कृतिक राष्ट्र के रूप में स्थापित हो जाएगा. 

    भारत की सांस्कृतिक जड़ों को खंडित करने के लिए सेकुलर शब्द का दुरुपयोग किया गया. अब तो सेकुलर शब्द चुनावी राजनीति का सबसे बड़ा हथियार है. बीजेपी के खिलाफ अल्पसंख्यक विरोधी होने का आरोप कथित सेकुलरिज्म का पैमाना बन गया है.

    संविधान में बहस पर अंबेडकर के अपमान का मुद्दा कांग्रेस देश में प्रेस कांफ्रेंस और आंदोलन के जरिए उठाने जा रही है. अंबेडकर की मंशा के विरुद्ध सेकुलर शब्द को संविधान में शामिल कर, कांग्रेस ने जो सेकुलर टेररिज्म देश में पैदा किया है उस पर भी सफाई आवश्यक है.

    धार्मिक स्वतंत्रता की पहली जरूरत कानूनी समानता है. अगर कानून में ही भेदभाव है, तो फिर धर्मनिरपेक्षता कैसे आ सकती है? अगर एक धर्म को संविधान का प्रोटेक्शन और दूसरे धर्म को सेकुलरिज्म के नाम पर उनकी आस्थाओं को बाधित करने का प्रयास तो टेररिज्म का ही एक रूप है.

    जो धर्म सभी धर्म को सम्मान देता है, वही धर्म सेकुलर शब्द का उपयोग कर सकता है. जो धर्म अपने अनुयायियों को किसी विषय पर अपने धर्म शास्त्रों से मतभेद होने की स्थिति में सेकुलरिज्म के आधार पर स्वतंत्र चिंतन एवं विवेकानुसार कार्य करने की अनुमति नहीं देता उसमें सेकुलरिज्म का कोई स्थान हो ही नही सकता. इस विषय में इस्लाम के विद्वानों ने अनेक बार कहा है कि,  सेकुलरिज्म का इस्लाम में कोई स्थान नहीं है.

    मलेशिया के विद्वान लेखक सैय्यद मोहम्मद नकीब-अल-अतरस अपनी पुस्तक ‘इस्लाम सेक्युलरिज्म एंड फिलॉसफी ऑफ़ द फ्यूचर’ में लिखते हैं कि, सेक्युलरिज्म केवल गैर इस्लामिक विचारधारा (दर्शन) ही नहीं बल्कि सरासर इस्लाम विरोधी हैं.

    विद्वानों की पुस्तकें सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है. इसका मतलब है कि, इंदिरा गांधी ने सेकुलर शब्द जोड़कर न केवल संविधान निर्माताओं की मंशा के विरुद्ध काम किया, बल्कि इस्लामी धर्म शास्त्रों की भावनाओं के विरुद्ध भी व्यवहार किया.

    सेकुलर शब्द पर मुस्लिम विद्वान कभी भी सहमत नहीं हो सकते. इस्लाम में उनका धर्मशास्त्र सबसे ऊपर है. धर्मशास्त्र का आदेश किसी दूसरे विधान से गवर्न नहीं हो सकता. सेकुलर शब्द जहां इस्लामिक धर्म शास्त्रों की भावनाओं के खिलाफ है, वहीं इस शब्द का उपयोग बहुसंख्यकों की आस्था को बाधित करने के लिए राजनीतिक हथियार के रूप में किया जा रहा है.

    बांग्लादेश के संविधान में भी सेकुलर शब्द रखा गया था, वहां अब सेकुलर शब्द को हटाने की मांग हो रही है. तख्ता पलट के बाद इस मांग ने जोर पकड़ा है. सेकुलर शब्द ने भारतीय राजनीति को ऐसी गलत दिशा दी है कि, अब धीरे-धीरे इस शब्द के कारण विभिन्न समुदायों के बीच टकराहट बढ़ी है.

    बीजेपी तो इस शब्द का विरोध करती है. बीजेपी का स्टेंड है कि, हर भारतवासी धर्म में आस्था रखता है. कोई भी संविधान धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकता बल्कि इसे पंथनिरपेक्ष होना चाहिए. इमरजेंसी में संविधान के भीतर जो सेकुलर शब्द रोपा गया था, उसका कटीला पेड़ अब इतना बड़ा हो गया है कि, पूरी व्यवस्था को ही डंक मार रहा है.

    जब बहुसंख्यक समाज सेकुलर शब्द के पक्ष में नहीं है.अल्पसंख्यक समाज विशेषकर मुसलमानों के धर्मशास्त्र में सेकुलर को गैर-इस्लामिक माना जाता है, तो फिर इस शब्द को संविधान में रखकर विवाद को बनाए रखने का क्या औचित्य  है? 

    मंदिर मस्जिद के जो विवाद हो रहे हैं उनमें भी हर रोज सेकुलर शब्द मुंह बाये खड़ा रहता है. अगर हर व्यक्ति एक दूसरे के धर्म का सम्मान करने लगे तो फिर विवाद वैसे ही सीमित हो जाएंगे. आरएसएस के सर संघचालक मोहन भागवत अगर यह कह रहे हैं कि, हर मस्जिद में मंदिर देखने की प्रवृत्ति सही नहीं है तो यह बहुसंख्यकों की उदारता है.

     मंदिर मस्जिद के विवादों का समाधान सहमति या न्यायिक प्रक्रिया में संभव हो सकता है लेकिन सेकुलर शब्द को संविधान में जोड़ने की जो ऐतिहासिक गलती की गई है, जिसके कारण दोनों समुदायों को यह शब्द चुभ रहा है, तो फिर इसको क्यों नहीं पुन: परिभाषित करने का प्रयास किया जाए.

    इतिहास की गलतियों को खोदने से भले ही इतिहास नहीं सुधर सकता, लेकिन इससे जो जागरुकता आएगी, उससे कम से कम नई गलतियां तो रोकी जा सकेंगीं. बिना विवाद  के धार्मिक मामलों में अवेयरनेस बढ़ाने की जरूरत है. सभी धर्म के लिए संवैधानिक समानता सुनिश्चित करना सबसे बड़ा काम है. कोई भी सरकार किसी धर्म के आधार पर कोई भी योजना संचालित नहीं करे यह सबसे जरूरी है.

    इतिहास में जो गलतियां हुई है. जहां धार्मिक तुष्टीकरण के लिए योजनाएं चलाई गईं. सेकुलर शब्द तुष्टिकरण का प्रतीक कैसे बन गया, इस पर भी सोचना आवश्यक है. सेकुलर की बात करने वाले भले ही भारत में तुष्टिकरण के लिए योजनाएं चलाते रहे हों, लेकिन सेकुलर शब्द के विरोधियों की सरकार में चलाई गई योजनाएं सर्वधर्म समभाव की मिसाल बनी हैं, तो यह भविष्य के अच्छे संकेत माने जा सकते हैं.

    सेकुलर शब्द गलत अवधारणाओं का आधार बन गया है. अब तो कथित सेकुलर राजनीति करने वाले इस शब्द को ही अपना बड़ा आधार मानने लगे हैं. गलत बात धीरे-धीरे इतनी मजबूती से स्थापित हो जाती है कि, ना तो उसकी गलती समझ आती है और ना उससे समाज को हो रहे नुकसान समझ आते हैं. सेकुलर शब्द पर एकेडमिक डिस्कशन होना चाहिए. अगर यह इस्लाम विरोधी शब्द है, तो इसको संविधान में क्यों स्थान दिया जाना चाहिए. 

    इस्लाम के विद्वानों को सेकुलर शब्द पर अपनी राय सार्वजनिक रूप से रखनी चाहिए. कांग्रेस को अपने अल्पसंख्यक विद्वानों से भी इस पर विचार विमर्श करना चाहिए. सेकुलर की खाई अगर देश को नुकसान पहुंचा रही है, तो फिर सर्वधर्म समभाव का नया नज़रिया संविधान में समावेशित किया जाना चाहिए.