संसदीय लोकतंत्र के नेतृत्व में लैंगिक समानता का भारत ने नया इतिहास रचा है. संसद और विधानसभाओं में नारी शक्ति के वंदन के लिए आरक्षण की नई शुरुआत नई संसद की सबसे पहली कार्यवाही के रूप में इतिहास में दर्ज हो गई है. स्वदेशी संसद में ‘वीमेन लेड डेवलपमेंट’ के आधार के लिए कानूनी संरक्षण, सनातन वैदिक संस्कृति के दौर में नारी सशक्तिकरण के पुनर्जागरण का ऐतिहासिक अवसर बन गया है.
वैदिक काल में भारत में नारी को जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता स्वयंवर के रूप में दुनिया को वास्तविक भारत के स्वरूप को समझने के लिए पर्याप्त है. नई संसद में नारी आरक्षण के पहले विधेयक से कानून के निर्माण की शुरुआत भारत के भारत से स्वयंवर का चमत्कारी दृश्य बना रहे हैं. संसदीय लोकतंत्र ने नए भारत के भविष्य के लिए नई संसद में ‘वीमेन लेड डेवलपमेंट’ के साथ स्वयंवर रचा लिया है.
भारत को यह चुनना था कि विकास की नई नीतियों और नेतृत्व की दिशा क्या होगी? भारत ने चुन लिया कि लोकतांत्रिक विरासत को नए स्वदेशी गौरवपूर्ण प्रतीकों के साथ संजोया जाएगा. साथ ही देश की आधी आबादी यानी महिलाओं को नीतियों के निर्माण और विकास में बराबरी के साथ नेतृत्व और भागीदारी का अवसर दिया जाएगा. भारत के लिए यह क्षण गर्व के साथ आत्मनिर्भर भारत के भविष्य के मातृत्व को सम्मान और गरिमा प्रदान करने का है.
पुराने संसद भवन से भावपूर्ण विदाई के क्षणों में भी दलीय राजनीति के दर्दनाक दृश्य दिखाई पड़ रहे थे. भारत के प्रधानमंत्री जहां भारत की ‘विश्व मित्र’ की अवधारणा और विकास के आधुनिक पैमानों का खाका खींच रहे थे तो विपक्ष संसद की गतिविधियों को चुनावी राजनीति के उद्देश्य के उपयोग का नजरिया पेश कर रहा था. पीएम मोदी का यह कहना बिलकुल सही है कि संसद दलीय हित के लिए नहीं देश हित के लिए है. संविधान को भी दलीय नजरिए से मोहरे के रूप में उपयोग करने के दृश्य भी देखे गए. खुशी की बात यही कही जा सकती है कि विपक्ष ने इस बात का मुद्दा नहीं बनाया कि पीएम मोदी द्वारा उद्घाटित नए संसद भवन में वह प्रवेश ही नहीं करेगा. संसद भवन के उद्घाटन के समय तो इसी तरीके का दृश्य पेश किया गया था और उद्घाटन समारोह का विपक्ष ने बहिष्कार किया था.
सियासत में कोई भी कदम श्रेय लेने की सोच के साथ ही उठाए जाते हैं. जनमानस की बुद्धिमत्ता बार-बार यह साबित करती है कि उसे भरमाया नहीं जा सकता. जिसने जनमानस के लिए किया है उसे ही श्रेय भी मिलता है. नए संसद भवन के लिए भी श्रेय निश्चित रूप से पीएम मोदी के नेतृत्व में चल रही वर्तमान सरकार के ही खाते में जाएगा. वास्तविक व्यक्ति को श्रेय देना भी विपक्ष के व्यक्तित्व को निखारता है. येन केन प्रकारेण श्रेय के लिए हकदार व्यक्ति को श्रेय ना मिले इसलिए तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर भ्रमपूर्ण वातावरण बनाना न मालूम राजनीति की शैली क्यों बनती जा रही है?
यह पूरा देश जानता है कि नई संसद के निर्माण के लिए परिकल्पना और उस पर तेज़ी से अमल पीएम मोदी की व्यक्तिगत रुचि के कारण संभव हो पाया है. जब नए संसद भवन की आधारशिला रखी गई थी तब इस पर होने वाले व्यय और अन्य मुद्दे उठाकर परियोजना के औचित्य पर ही सवाल उठाए गए थे. पुराने संसद भवन को ‘संविधान सदन’ के रूप में विरासत और गौरव को संरक्षित करने का प्रयास ही कहा जायेगा जो संसदीय लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करेगा.
लोकसभा और विधानसभाओं में नारी शक्ति के आरक्षण के लिए लाये गए विधेयक पर भी श्रेय की राजनीति शुरू हो गई है. महिला आरक्षण पर संसद में पहली बार 1996 में विधेयक लाए जाने के ऐतिहासिक तथ्य हैं. तब से लगाकर अब तक अनेक बार महिला आरक्षण विधेयक को पारित करवाने के राजनीतिक प्रयासों की ईमानदारी और दिखावे को समझने के लिए प्रबुद्ध भारत को बहुत अधिक मेहनत की जरूरत नहीं पड़ेगी.
पीएम मोदी नई संसद में अपने पहले संबोधन में महिला आरक्षण पर बोलते हुए जब यह बात कहते हैं कि ईश्वर ने कई कामों के लिए शायद उन्हें ही चुना है तो इस पर पूरा देश विश्वास करता है. ऐसा इसलिए क्योंकि मोदी सरकार ने अनेक क्रांतिकारी निर्णायक कदम जनमानस के लिए उठाए हैं जो भारत को विकास के आधुनिक दौर में पहुंचाने में सफल रहे हैं.
पीएम मोदी कोई काम करें और उसका श्रेय कोई दूसरा राजनीतिक दल लेने की सोचने लगे यह तो मोदी के पक्ष में डबल श्रेय के रूप में ही सिद्ध हो जाता है. जब विपक्ष की नकारात्मक आलोचना भी मोदी के लिए सकारात्मक उपलब्धि बन जाती है तो फिर सकारात्मक उपलब्धि तो देश की उपलब्धि से कनेक्ट ही होती है. अभी हाल ही में ज़ी-20 शिखर सम्मेलन की सफलता की गूँज पूरे विश्व में सुनाई पड़ रही है.
हर दौर, हर कालखंड और हर नेतृत्व का लक्ष्य देश का विकास और सबको समान अवसर जुटाना ही होता है. काम करने के तरीके नेतृत्व को देश की कसौटी पर अलग-अलग नजरिए से परखे जाते हैं. महिला आरक्षण सभी राजनीतिक दलों का राजनीतिक आहार कहा जा सकता है लेकिन इसे पकाने और नई संसद के पहले दिन पहली कार्यवाही के रूप में प्रस्तुत करने का इतिहास नरेंद्र मोदी के नाम पर लिख दिया गया है.
‘नारी शक्ति वंदन’ कानून भारतीय तिरंगे के झंडा वंदन में महिलाओं को बराबरी से मौके देगा. भारत में महिला प्रधानमंत्री भी रही हैं उस दौर में भी महिला आरक्षण पर नहीं सोचा गया. भारत का यह कालखंड महिला राष्ट्रपति के रूप में आदिवासी महिला के हस्ताक्षर और अनुमोदन के साथ ही महिला नेतृत्व के विकास के लिए ऐतिहासिक अवसर साबित होगा.
नियति पर किसी का बस नहीं होता कई बार नियति ही निर्णय के लिए प्रेरणा और प्रोत्साहन का काम करती है. इतिहास में जीने से नहीं इतिहास से सीखकर वर्तमान में इतिहास बनाने से नियति से वास्तविक साक्षात्कार होता है. भारत के गौरव और विरासत को जोड़कर आधुनिक विकास की नियति का यह दौर भारत के सुनहरे कालखंड के रूप में पहचाना जाएगा.