मध्य प्रदेश की आध्यात्मिक राजधानी महाकाल नगरी मनमोहक तो है ही, अब पहली मेडिसिटी भी बनने जा रही है. मेडिकल कॉलेज की आधारशिला रखी जा रही है. सिंहस्थ की पृष्ठभूमि में उज्जैन को सजाया संवारा जा रहा है..!!
उज्जैन में बहुत कुछ पहली बार हो रहा है. मध्य प्रदेश विभाजन के बाद प्रदेश को उज्जैन से नेतृत्व पहली बार मिला है. विरासत और विकास की नई कहानी का सम्मोहन साफ-साफ दिखाई पड़ रहा है. सीएम डॉ. मोहन यादव मौलिक सोच के साथ आगे बढ़ते दिखाई पड़ रहे हैं. उज्जैन में मेडिकल कॉलेज बहुत पहले बन जाना चाहिए था. लेकिन मध्य प्रदेश गठन के इतने वर्षों बाद शायद उज्जैन यदुवंशी मोहन का इंतजार कर रहा था.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में आध्यात्मिक नगरी की वर्षों पुरानी ज़रूरत पूरी होने जा रही है. सिंहस्थ में पूरे विश्व के लोगों को इसका लाभ मिलेगा. इस मेडिकल कॉलेज को सिंहस्थ के पहले पूरा करने का टारगेट जरूर पूरा कर लिया जाएगा.
देश में मेडिकल कॉलेजों का लगातार विस्तार हो रहा है. मध्य प्रदेश में तो आधे से ज्यादा जिलों में मेडिकल कॉलेज स्थापित हो गए हैं. कभी मध्य प्रदेश मेडिकल सुविधाओं के लिए तरसता था. हालात अब बदल गए हैं. उज्जैन मेडिकल कॉलेज के शिलान्यास को लेकर सरकारी विज्ञापन में पहली मेडिसिटी का उल्लेख पढ़कर दिमाग चकराने लगा.
यह समझने की कोशिश सफल नहीं हुई, कि मेडिसिटी का मतलब क्या होगा. महाकाल सिटी क्या मेडिसिटी के रूप में जानी जाएगी. गूगल में मेडिसिटी का मतलब बताया गया है, उद्योग एवं वाणिज्य विभाग को मेडीकल कॉलेज, पैरामेडीकल कॉलेज तथा डायग्नोस्टिक लैब की स्थापना जैसे कार्यों के लिए हस्तांतरित भूमि का टुकड़ा.
मेडिसिटी की सुविधाओं के बारे में भी विज्ञापन में लिखा गया है. ऐसा बताया गया है, कि मेडिसिटी में सुपर स्पेशलिटी एवं मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल की सुविधा होगी, डायग्नोस्टिक सेंटर होगा, फार्मेसी होगी, चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र होगा, विभिन्न उपचार हेतु वेलनेस केंद्र, आयुष अस्पताल, पैरामेडिकल कॉलेज, समग्र स्वास्थ्य देखभाल के सुविधा, इको फ्रेंडली इंफ्रास्ट्रक्चर होगा. विज्ञापन में यह भी बताया गया है, कि इससे स्वास्थ्य पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा.
मेडिसिटी की जो परिकल्पना सरकारी विज्ञापन में बताई गई है, वह मध्य प्रदेश में पहली बार आ रही है, ऐसा तो नहीं है. प्रदेश के लगभग सभी शहरों में ऐसी सुविधाएं बहुत पहले से उपलब्ध हैं. कोई ऐसा बड़ा शहर बाकी नहीं है, जहां सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल ना हो. इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर में तो ऐसे कई-कई मेडीकल कॉलेज अस्पताल हैं. फिर सरकार की ओर से ऐसा क्यों कहा जा रहा है, कि मध्य प्रदेश में पहली मेडिसिटी आ रही है.
जो ब्यूरोक्रेटिक सिस्टम स्वास्थ्य क्षेत्र में योजनाएं बना रहा है, क्रियान्वित कर रहा है, वह इस बात से तो अनभिज्ञ नहीं होगा, कि पहली बार मेडिसिटी के रूप में दी जाने वाली सुविधाएं मध्य प्रदेश के किसी दूसरे शहर में उपलब्ध नहीं हैं. फिर ऐसा क्यों कहा जा रहा है. क्या ब्यूरोक्रेट्स मुख्यमंत्री को खुश करना चाहते हैं.
खुश भी करना चाहिए, लेकिन इसके लिए शब्दों का जाल बनाने की कोई आवश्यकता नहीं होनी चाहिए. शब्दों का आकर्षण उपलब्धि परिभाषित नहीं करता. किसी भी लीडर का काम बोलता है. समर्थक और विरोधी सबके होते हैं, लेकिन उज्जैन में मोहन के सम्मोहन से कोई अछूता नहीं है. इसके लिए मेडिसिटी की पहेली बनाने और बुझाने की कोई आवश्यकता नहीं है.
मेडिसिटी जैसा स्वास्थ्य पर्यटन का नारा भी ज्ञानियों के लिए ज्यादा उपयोगी होगा. स्वास्थ्य जब खराब हो तब पर्यटन के बारे में सोचना ब्यूरोक्रेटिक मन की ही उपज हो सकती है. इसका आशय यह होगा, कि बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं जुटाई जाएं, जिससे कि देश-विदेश से लोग इलाज कराने के लिए आएं. जब लोग आएंगे तब उन स्थानों पर वैसा ही व्यापार व्यवसाय को लाभ होगा, जैसा पर्यटकों के कारण होता है.
उज्जैन में पर्यटकों की अब तक भी कमी नहीं है. उज्जैन में पर्यटन उद्योग लगातार फल-फूल रहा है. महाकाल के कारण उज्जैन धार्मिक पर्यटन का सबसे बड़ा केंद्र है. महाकाल लोक के बाद तो इसमें इजाफा हुआ है. महाकाल के दर्शन के लिए आने वालों को जैसे धार्मिक पर्यटन कहा जाता है. वैसे ही मेडिकल सुविधाओं का लाभ उठाने वालों को स्वास्थ्य पर्यटन कहने की कोशिश की जा रही है.
मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ी ज़रूर हैं, लेकिन अभी भी दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों की तुलना में यह सुविधाएं कम ही कही जाएंगी. आज भी गंभीर मरीज इलाज के लिए इन्हीं बड़े नगरों में भागते हैं. सरकारी चिकित्सा संस्थानों के हालात तो हमेशा से चिंताजनक रहे हैं. जितने भी व्हीआईपी हैं, कोई भी सरकारी चिकित्सा संस्थानों में इलाज प्रिफर नहीं करते. प्राइवेट चिकित्सा संस्थानों में ही व्हीआईपी इलाज कराने जाते हैं. कभी कोई व्हीआईपी अगर सरकारी संस्थान में चला जाता है, तो उसको प्रचार का विषय बनाया जाता है.
पुरातन नगरी उज्जैन धर्म और शिक्षा का सनातन केंद्र रहा है. उज्जैन श्री कृष्ण की शिक्षास्थली रही है. श्री कृष्ण से जुड़े स्थानों के विकास की प्रक्रिया पहले भी चलती रही है. अब तो मोहन ही प्रदेश की कुर्सी पर विराजित हैं, तो कृष्ण पाथेय का विकास होना ही होगा. सरकार का कमिटमेंट भी इसके लिए दिख रहा है. पिछले दिनों ही कैबिनेट में कृष्ण पाथेय न्यास का गठन किया है.
मोहन का पथ कृष्ण पाथेय ही रहेगा, इसमें कोई संशय नहीं है, बस ज़रूरत यह है, कि मोहन ब्यूरोक्रेट्स के सम्मोहन में ना आ जाएं. अपना पथ और पाथेय सुनिश्चित रखें. सत्ता में डिगाने, भरमाने की बहुत कोशिशें होती हैं. खुशी की गुदगुदाहट के लिए मेडिसिटी जैसे शब्द गढ़े जाते हैं. मेडिकल कॉलेज को मेडिसिटी बता दिया जाता है. बीमारी के इलाज को पर्यटन बताया जाता है. ज़िम्मेदार बीच-बीच में सरकारी अस्पतालों का निरीक्षण करें, तो जो दृश्य दिखेंगे इलाज की मजबूरी को पर्यटन कहना भूल जाएंगे.
अनुभव की मौलिकता ही ब्यूरोक्रेटिक खुशफ़हमी को रोकती है. आशा उतनी ही बंधानी चाहिए, जो पूरी हो जाए, आशा ही निराशा का कारण होती है. अगर आशा का ज्वार ना बढ़ाया जाए तो निराशा का द्वार भी नहीं आता. पद और प्रतिष्ठा जीवन नहीं होते बल्कि भूमिका निर्वहन के अवसर होते हैं. सम्मोहन, मोहन का होता है मोहन को सम्मोहित करना कठिन है और यही कठिनता मोहन को मोहन बनाती है.