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सुर्खियों में न्यूक्लियर विस्फोट, किसको वोट-किसको चोट?

सार

एमपी में कांग्रेस और बीजेपी में सोशल मीडिया पर वीडियो वार चरम पर पहुंच रहा है. कवि, गायक, कलाकार, पत्रकार सब खेमों में बंटकर राजनीतिक दलों और नेताओं की आवाज में आवाज मिला रहे हैं. कुछ खुलेआम तो कुछ फेक नाम से अपना सियासी जौहर दिखा रहे हैं.

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विस्तार

लोक गायिका नेहा ठाकुर के ‘एमपी में काबा’ गाने के जवाब में कवियत्री अंबिका अंबर ने ‘मामा मैजिक करत है’ जवाबी वीडियो जारी किया है. जो सियासत पांच साल तक आत्मसम्मोहन का शिकार ही रहती है चुनाव से पहले समाज में विश्वसनीय चेहरों और इन्फ्लुएंसर्स का उपयोग-दुरुपयोग करने लगती है. अब तो दोनों दलों की ओर से हर दिन सियासी वीडियो एक दूसरे को कटघरे में खड़ा करते हुए दिखाई पड़ने लगे हैं. कांग्रेस, बीजेपी सरकार में भ्रष्टाचार होने का वीडियो जारी कर परसेप्शन बनाने के लिए कोशिश कर रही है तो बीजेपी कमलनाथ के 15 महीने के राज को अराजकता, करप्शन और जनहित की योजनाओं को बंद करने के काल के रूप में प्रचारित कर रही है.

केंद्र और राज्य दोनों जगह की राजनीति में कोई राजनेता अपनी सफलता साबित कर सके यह जरूरी नहीं है. कमलनाथ केंद्रीय राजनीति में लंबे समय तक अपनी धाक और छवि बनाए रख पाए थे लेकिन एमपी की सियासत में आते ही जैसे उनकी पोल खुलने लगी. विकीलीक्स दुनिया में गंभीर सूचनाएं तथ्यात्मक ढंग से उजागर करने में बेजोड़ भूमिका निभाती रही है. अब पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के बारे में विकीलीक्स का खुलासा एक बार फिर चुनावी समर की सनसनी बन गया है. विकीलीक्स के अनुसार, कमलनाथ ने 1976 में भारत की परमाणु क्षमता से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी अमेरिका को दी थी. विकिलीक्स का पत्र एक बार फिर सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद एमपी की सियासत में हड़कंप मचा हुआ है.

बीजेपी की ओर से इस मामले को लेकर कमलनाथ पर हमला बोला जा रहा है. अभी तक विकीलीक्स के खुलासे पर कमलनाथ की ओर से सफाई सामने नहीं आई है. राजनेताओं पर आरोप लगाना कोई असामान्य बात नहीं होती लेकिन देश की सुरक्षा से जुड़े मामले में जासूसी के आरोप से ज्यादा गंभीर आरोप हो ही नहीं सकता है.

विकीलीक्स का खुलासा पीसीसी प्रेसिडेंट कमलनाथ का लंबे समय तक पीछा करता रहेगा. जो नेता राज्य का नेतृत्व कर चुका है, जो भविष्य के लिए संघर्ष कर रहा है. उस पर देश की सुरक्षा के मुद्दे पर जासूसी का आरोप उनके राजनीतिक भविष्य को कितना प्रभावित करेगा जब कमलनाथ अवश्यंभावी मुख्यमंत्री की आशा के साथ चुनाव मैदान में उतरने जा रहे हैं.

एमपी में सियासी वीडियो और पोस्टर वार की शुरुआत कमलनाथ के खिलाफ क्यूआर कोड के साथ पोस्टर लगाए जाने से हुई थी. इसके बाद कांग्रेस की ओर से शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ पोस्टर चस्पा किए गए. गायिका नेहा राठौर ने ‘एमपी में काबा’ गीत में ऐसे मुद्दे उठाए हैं जो भाजपा सरकार को कटघरे में खड़े करते हैं. इसके जवाब में अंबिका अंबर ने शिवराज सिंह चौहान को मामा बताते हुए मैजिक करने वाला नेता बताया है. उनके गीत में ‘तीर्थ दर्शन योजना’ सहित ‘लाडली लक्ष्मी और जनहित से जुड़ी अन्य योजनाओं का हवाला दिया गया है.

दोनों गायिकाओं में जब कांग्रेस और बीजेपी के समर्थक के रूप में टक्कर हुई तब दोनों यह कहने से पीछे नहीं हटी कि हम तो जनता से जुड़े मुद्दे उठा रहे हैं. किसी भी सिस्टम में ना तो सब कुछ गलत है और ना सब कुछ सही. कवि और गायक तो रील पर अपना रोल निभाते हैं. वे जो भी प्रस्तुत करते हैं वह उनकी रियल अनुभूति नहीं होती है.

राजनीति ऐसा क्षेत्र दिखाई पड़ता है जहां ना कोई नियम है ना कोई मर्यादा है. केवल चुनाव जीतना ही अंतिम लक्ष्य है. इसके लिए किसी भी प्रकार के वीडियो बनाकर या बनवाकर जारी करने में कोई संकोच नहीं किया जाता. जनता के सामने सबसे बड़ी समस्या है कि वह किस पर और क्या विश्वास करें और क्या विश्वास न करे. परसेप्शन का यह वार इसलिए ज्यादा तेजी से हो रहा है क्योंकि जनादेश भी व्यक्तिगत अनुभूति से ज्यादा हवा पर टिक गया है. हवा बनाने के लिए किसी की हवा खराब करना भी एक जरूरत है. वीडियो वार यही जरूरत पूरा कर रहा है. कई तो ऐसे वीडियो भी सामने आ रहे हैं जो कोई भी दल यह मानता ही नहीं कि उसके द्वारा जारी किए गए हैं.

सोशल मीडिया के दौर में फेक न्यूज़ की संभावनाओं का सबसे बेहतर उपयोग शायद राजनीतिक क्षेत्र के लोग ही कर रहे हैं. सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि चुनाव बाद जिसके हाथ में कमान होगी वह परसेप्शन में साफ सुथरा रह ही नहीं सकता है. दोनों दल एक दूसरे को भ्रष्ट और कुशासन देने वाला साबित करने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं. हर चुनाव में नई-नई टैगलाइन बनाकर सत्ता का सिंहासन हासिल करने के बाद चेहरे भले बदलते हों लेकिन सिस्टम तो बदलता हुआ नहीं दिखाई पड़ता.

एक दूसरे को चुनावी मैदान में भ्रष्ट साबित करने में अग्रणी नेता ही सत्ता के सिंहासन पर बैठने के बाद एक दूसरे को राज्य का मार्गदर्शक, श्रेष्ठ जनसेवक बताने लगते हैं. वीडियो से प्रभावित होकर जनादेश के फैसले लोकतांत्रिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाले साबित हो रहे हैं. जनादेश अगर अनुभूति और प्रतीति पर दिए जाएंगे तभी भ्रष्टाचार मुक्त सुशासन के बारे में सोचा जा सकता है. चुनाव में बंटाधार साबित करने वाले लोग भी जनादेश में पराजित नेतृत्व की मूर्तियां स्थापित कर ना मालूम कौन सा लोकतांत्रिक धर्म निभाते हैं?