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एक POK लेने को तैयार दूसरा बंटवारे को बेकरार

सार

कश्मीर पर कांग्रेस ने भारत को जो दर्द दिया है, वह वक्त के साथ कम होने में भी कांग्रेस ही बाधक बन रही है. जवाहरलाल नेहरू और शेख अब्दुल्ला परिवार के साथ जो सफर चालू हुआ था, उस पर अभी भी उमर अब्दुल्ला और राहुल गांधी चल रहे हैं.

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विस्तार

स्वतंत्रता के बाद धारा 370 की बेड़ियो ने कश्मीर को भारत से बांट कर रखा था. इस धारा के हटने के बाद भारत का संविधान कश्मीर में लागू हो पाया है. उमर अब्दुल्ला तो 370 वापसी का सियासी वादा कर सत्ता की दहलीज पर पहुंच गए, लेकिन कांग्रेस को जितना नुकसान कश्मीर में हुआ है, उतना तो हरियाणा में भी नहीं हुआ है. धारा 370 की वापसी के साथ गठबंधन करके कांग्रेस ने जो भूल की है, उसकी गूंज देश में होने वाले आगामी चुनावों में भी सुनाई पड़ेगी. धारा 370 से प्यार कांग्रेस को बंटाधार के मुहाने पर ले जाएगा.

 

जो राजनीतिक परिस्थितियां बनी हैं उसमें कांग्रेस कश्मीर में अर्थहीन स्थिति में पहुंच गई है. चुनाव परिणाम के बाद बनने वाले मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के वक्तव्यों का इशारा साफ है, कि कांग्रेस से किनारा करने की तरफ उनके कदम बढ़ रहे हैं. निर्दलियों को अपने साथ मिलाने की सियासत भी इसी कड़ी का हिस्सा है. कांग्रेस अपने इतिहास की न्यूनतम 6 सीटें ही विधानसभा में जीत पाई है. इतनी कम सीटों का कोई विशेष सियासी वजूद नहीं रह जाता है. निर्दलियों के समर्थन से नेशनल कांफ्रेंस को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो जाएगा. जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पांच सदस्यों का मनोनयन होना है, जो निश्चित रूप से बीजेपी समर्थक होंगे. इस समीकरण के बाद कश्मीर में बनने वाली नई सरकार की स्थिरता हमेशा सवालों में रहेगी. बीजेपी ने भले ही जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य बनाने का वादा किया है, लेकिन अभी तो केंद्र शासित प्रदेश है. केंद्र शासित प्रदेश में किसी भी निर्वाचित सरकार को शासन चलाने के लिए केंद्र सरकार के प्रभावी और नैतिक समर्थन की प्रबल आवश्यकता होगी. उमर अब्दुल्ला लगातार इसी तरह का इशारा कर रहे हैं. अगर भविष्य में नेशनल कांफ्रेंस NDA के पाले में दिखाई पड़े,तो यह भी आश्चर्यजनक नहीं होगा.

 

हरियाणा के चुनाव परिणाम पर कांग्रेस मूर्छित है, जबकि वहां तो उन्हें अच्छा जन समर्थन मिला है. उनकी मूर्छा का असली करण जम्मू-कश्मीर में है, जो उन्हें शायद दिखाई नहीं पड़ रहा है. जम्मू में तो बीजेपी सबसे आगे है. कश्मीर घाटी में भले ही बीजेपी की संख्या कम हो, लेकिन यह तो दिखाई ही पड़ रहा है, कि भाजपा ने घाटी में अपनी सियासी घुसपैठ कर ली है. किश्तवाड़ जैसी मुस्लिम बाहुल्य सीट पर भाजपा के प्रत्याशी की जीत यह साबित करती है, कि केवल वक्त की बात है बीजेपी कश्मीर में अपना अस्तित्व मजबूत करते हुए दिखाई पड़ सकती है. कश्मीर की नई सरकार में कांग्रेस की भूमिका नगण्य ही होने की संभावना है. धारा 370 की वापसी के गठबंधन का समर्थन करने के बाद भी कांग्रेस का कश्मीर में खाली हाथ रहना, यह साबित कर रहा है, कि इस राज्य में कांग्रेस विश्वसनीयता खो चुकी है. 

 

वैसे तो नेशनल कांफ्रेंस का धारा 370 समाप्त करने का वादा, न केवल अनैतिक है, बल्कि गैर कानूनी है मतदाताओं को धोखे में रखने जैसा है. राज्य की सरकार इस धारा को हटाने के बारे में कोई कदम नहीं उठा सकती, यह धारा केंद्र सरकार नें हटाई है और इसमें कोई भी बदलाव केंद्र की सरकार ही कर सकती है. अभी 5 साल पीएम मोदी की सरकार का जनादेश तो भारत दे ही चुका है, इसके बाद भी ऐसा दृश्य तो भारत में उपस्थित होने की संभावना दूर-दूर तक दिखाई नहीं पड़ रही है. जहां स्पष्ट बहुमत के साथ कांग्रेस या उसके सहयोगी दल केंद्र में सरकार बना सकें. 

 

कश्मीर का मुद्दा भारत के लिए अस्तित्व और आत्मा से जुड़ा हुआ है. कश्मीर जब अलगावबाद, आतंकवाद का शिकार रहा है, तब कांग्रेस की सरकारों नें कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के साथ कितनी बातचीत की है और कितने घोषित-अघोषित समझौते किए हैं, लेकिन इसका कोई भी परिणाम नहीं निकला. जम्मू-कश्मीर के लोगों को आत्मा के साथ भारत से जुड़ने नहीं दिया गया. भारत का राष्ट्रीय ध्वज कश्मीर में प्रभावशील नहीं था. बाबा साहेब अंबेडकर का भारतीय संविधान भी कश्मीर में लागू नहीं था. भारत सरकार की योजनाओं का लाभ भी कश्मीर के लोगों को नहीं मिलता था. वहां रहने वाले सभी लोगों को मताधिकार का अधिकार नहीं था. आरक्षण का लाभ भी पात्र लोगों को नहीं मिल पा रहा था.
 

कश्मीर में अलगावबाद के जो हालात बने कश्मीरी पंडितों के साथ जो कुछ भी हुआ उसके पीछे धारा 370 की बंटवारे की मानसिकता ही काम कर रही थी. कश्मीर को भारत का राज्य नहीं बल्कि मुसलमानों का राज्य बनाने की कोशिश की गई. इसमें धारा 370 ने अपनी भूमिका निभाई. कांग्रेस ने इस भूमिका को मजबूती प्रदान की.

 

बंटवारे की इस धारा के हटने के बाद कश्मीर में शांति आई है. लाल चौक पर तिरंगा लहरा रहा है. पर्यटन बढ़ा है .अलगावबाद और आतंकवाद घटा है. पाकिस्तान की कश्मीर में घुसपैठ की घटनाएं कम हुई हैं. अब पाकिस्तान को तो POK पर भारत  के कब्जे का ही डर सता रहा है. बीजेपी तो लगातार यही संकेत दे रही है, कि POK पर भारत का अधिकार केवल वक्त की बात है. बीजेपी POK वापस लेने के लिए तत्पर है, तो कांग्रेस कश्मीर में बंटवारे के लिए धारा 370 वापसी के लिए बेकरार है.

 

अतीत के खंडहर में जीने से वर्तमान कैसे सुधर सकता है. जम्मू-कश्मीर के चुनाव में वहां के लोगों ने बढ़-चढ़कर मतदान किया. शांतिपूर्ण मतदान हुआ कट्टर पंथियों को चुनाव में नकार दिया गया.

 

नेशनल कांफ्रेंस के नए संभावित मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रीय भावनाओं को समझते हुए अगर अपने सियासी कदम नहीं  उठाएंगे तो फिर उनकी चुनावी जीत भी बहुत लंबे समय तक जम्मू-कश्मीर का नेतृत्व करने का उन्हें अवसर नहीं देंगी. महबूबा मुफ्ती की पार्टी को मिली करारी हार से उन्हें सावधान रहना चाहिए.

 

कश्मीर में आशा और विश्वास का जो नया दौर शुरू हुआ है, उसको सियासी कारणों से मरने नहीं दिया जा सकता. कश्मीर का पुराना गौरव वापस लौट रहा है. पर्यटन के रिकॉर्ड टूट रहे हैं. फिल्मों की शूटिंग का सिलसिला प्रारंभ हुआ है. डलझील पर आनंद की नई हिलोरें उठ रही हैं. युवाओं में विकास के लिए ललक बढ़ गई है. भारतीय तिरंगे की धमक कश्मीर में सुनाई पड़ रही है. इस धमक से पड़ोसी देश पाकिस्तान का दिल धड़कने लगा है. POK  के लोग भारत के साथ जुड़ने को बेकरार दिखाई पड़ रहे हैं. बंटवारे की कोई दीवार अब जम्मू-कश्मीर में खड़ी नहीं हो सकेगी.

 

राहुल गांधी कश्मीर में अपनी जड़ें बताते हैं. जब कांग्रेस की जड़ें ही इस राज्य में सूखती जा रही हैं, फिर भी बंटवारे के निशान को बनाए रखने की चाहत है. भारत के दूसरे राज्यों के लिए कश्मीर आन-बान और शान है. वहां पर बंटवारे के किसी भी प्रयास से भारतीयता को चोट पहुंचती है. धारा 370 का समर्थन कांग्रेस को भारत के दूसरे राज्यों में निश्चित रूप से नुकसान पहुंचाएगा. कुछ खास संवैधानिक प्रावधान करके किसी भी स्टेट के एक खास समुदाय के लिए स्वर्ग बनाने की कोशिश करने वालों के लिए राजनीतिक नरक अपने आप बन जाता है. धारा 370 की वापसी का समर्थन कांग्रेस के लिए कश्मीर में ही जब सियासी लाभ नहीं दिला सका, तो भारत के दूसरे कोनों में तो इसका नुकसान ही होना है. अब वक्त POK के वापस लेने का है. धारा 370 का वक्त समाप्त हो चुका है. इससे प्यार करने वाले अब अपने ही बंटाधार का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं.