भविष्य के अपराध की संभावना पर सख्त कानून के खिलाफ ड्राइवर्स की हड़ताल देश का हाल बता रही है. कोई भी जवाबदारी निभाना नहीं चाहता. जवाबदेही से भागना व्यक्तित्व का अहम हिस्सा बन गया है...!!
देश में सड़क हादसों में लगातार वृद्धि हो रही है. वाहन चालन में लापरवाही और गलतियों के कारण दुर्घटनाओं में हुई मौतों के लिए सजा और जुर्माने को नए कानून में बढ़ा दिया गया है. एक्सीडेंट के बाद ड्राइवर द्वारा घायल को तड़पता छोड़कर भागने के लिए जीवन रक्षा का तर्क महत्वपूर्ण हो सकता है लेकिन घायल के जीवन के प्रति जवाबदेही का निर्वहन कौन करेगा? कानून में प्रावधान से डरने की कोई आवश्यकता नहीं होती. अगर हम अपराध करेंगे ही नहीं तो फिर कानून में कोई भी प्रावधान हो उससे किसी को भी चिंतित होने की क्या जरूरत है?
ड्राइवर्स की यह चिंता कि कई बार लोग गलती से दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं, ऐसे में दूसरे की गलती के लिए उनको दंड क्यों मिलना चाहिए? यह बात कहने में तो सही हो सकती है लेकिन सजा कानून में प्रावधान से ही नहीं होगी. अपराध के बाद उसकी न्यायिक प्रक्रिया अदालतों में पूरी होगी. सारे गवाह सबूत जब यह सिद्ध करेंगे कि ड्राइवर ने लापरवाही और गलती की है तभी उसे सजा होगी. अभी भी मर्डर के मामलों में मौत की सजा तक प्रावधानों में है लेकिन मर्डर के अनेकों मामलों में गवाह या सबूत के अभाव में आरोपी छूट जाते हैं.
कानून सख्त होना अपराध के प्रति समाज में गंभीरता का संदेश होता है. ड्राइवर को अपनी जवाबदेही और जिम्मेदारी से नहीं भागना चाहिए. घटनाओं से, परिस्थितियों से और व्यवस्थाओं से ‘हिट एंड रन’ तो बहुत आसान है लेकिन इंसान का स्वयं से ‘हिट एंड रन’ करना बहुत कठिन है.
ड्राइवर्स की हड़ताल ने देश की सबसे बड़ी समस्या की ओर ध्यान आकर्षित किया है. यह समस्या है जवाबदेही से भागना. केवल ड्राइवर्स ही नहीं अगर समाज के सामान्य लोगों को अलग रख सरकारी सिस्टम में शामिल वेतनभोगी लोगों को ही देखा जाए तो जवाबदेही से भागना सिस्टम का सबसे बड़ा अभिशाप बन गया है. पद और अधिकार का सदुपयोग या दुरूपयोग करके ऐसी चीज कर दी जाती हैं जो कालांतर में समाज को दुख पहुंचाती रहती हैं.
भोपाल में बीआरटीएस इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. अब बीआरटीएस को हटाने का निर्णय लिया जा रहा है. इस निर्णय की चारों तरफ वाहवाही हो रही है लेकिन इस पर कोई बात नहीं हो रही है कि जिन जिम्मेदार और जवाबदार लोगों ने इस व्यवस्था को बनाया था, क्या उन पर कोई जवाबदारी डाली जा सकती है?
राजनीतिक ‘हिट एंड रन’ हाल ही में संपन्न MP विधानसभा चुनाव में दिखा था. विपक्ष के रूप में कांग्रेस में सरकार के खिलाफ लगभग चार लाख करोड रुपए के घोटाले का आरोप पत्र जारी किया था. कांग्रेस की चुनाव में पराजय हुई लेकिन जो आरोप लगाए थे उनको साबित करने की जिम्मेदारी से कांग्रेस मुक्त नहीं है. आजकल ‘हिट एंड रन’ राजनीति का फैशन बन गया है. चुनाव का मौसम है तो सरकार पर सही या गलत आरोप लगा दिया जाएँ. अगर उसका राजनीतिक लाभ मिल जाए और सरकार में आने का मौका आ जाए तब भी उसे भुला देना है और अगर चुनाव हार जाएँ तो फिर आरोप पत्र को कचरे का रूप लेना ही है.
संसदीय शासन प्रणाली में तो जवाबदेही से ‘हिट एंड रन’ हर दिन का विषय बन गया है. ऐसे ऐसे बयान और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप आते हैं जो ना देश की व्यवस्था से मेल खाते हैं और ना ही समाज को कोई प्रेरणा देते हैं. केवल राजनीतिक बयानबाजी के लिए आरोप लगाए जाते हैं और फिर जब जवाब देही का अवसर आता है तो हिट एंड रन का उदाहरण बन जाता है.
जब तक समस्याओं और दुःख के लिए दूसरों को जिम्मेदार माना जाएगा तब तक जवाबदेही के प्रति ईमानदार नहीं हुआ जा सकता. किसी को भी कोई दुख नहीं दे रहा है. ना प्रकृति दे रही है ना सिस्टम दे रहा है. हर व्यक्ति अपने दुख के लिए स्वयं जिम्मेदार है. वह स्वयं अपने लिए दुख निर्मित कर रहा है लेकिन दोष दूसरे को दे रहा है. हिट एंड रन मामले में भी ऐसा ही हो रहा है. कानून में सख्त प्रावधान को ड्राइवर अपने विरोध में मान हड़ताल कर लोगों को कष्ट पहुंचा रहे हैं लेकिन इसका वास्तविक नुकसान उन्हें ही हो रहा है.
पॉलिटिक्स में हिट एंड रन रोज़ का विषय बन गया है. ना कोई काम ऐसा किया जाता है जिसमें जवाबदेही दिखाई पड़ती हो और ना ही कोई बयान ऐसा दिया जाता है जिसमें जिम्मेदारी परिलक्षित होती हो.बड़े-बड़े पदों और पोजीशन पर बैठे लोग दुनिया को समझने का दावा करते हैं लेकिन जब तक कोई भी व्यक्ति खुद के अंतरमन को नहीं समझेगा तब तक सब कुछ लौकिक और दिखावा ही होगा.
भारत में अलौकिक अवसर के रूप में अयोध्या में भव्य और दिव्य राममंदिर का निर्माण हो रहा है. स्वयं की आंखों से ऐसे दिव्य अवसर का दर्शन करने का जिन्हें सौभाग्य मिला है वह भी भगवान के नाम पर भी हिट और रन की राजनीति में लगे हुए हैं. प्राण प्रतिष्ठा में जाने या नहीं जाने के फैसले इस आधार पर लिए जा रहे हैं कि इससे चुनाव में क्या असर पड़ेगा? सनातन और हिंदूविरोधी विचारधारा के मत प्रभावित नहीं हो जाएं इसलिए कई लोग राममंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने से कतराते दिखाई पड़ रहे हैं. यह खुद के जीवन से ‘हिट एंड रन’ नहीं तो और क्या है? क्या सारा जीवन केवल राजनीति और वोटों के लिए बना है? जब यह नश्वर शरीर नष्ट होगा तो क्या वोटों की पूंजी भी साथ जाएगी?
समाज जवाबदेही लेने और जिम्मेदारी निभाने से चलता है. जिसके पास जो भी जिम्मेदारी है, चाहे वह सत्तापक्ष की हो चाहे, विपक्ष की हो, चाहे सरकारी अधिकारी-कर्मचारी की हो, चाहे ड्राइवर की हो या चाहे किसी भी क्षेत्र में कोई जिम्मेदारी हो. सबको जवाबदेही लेने की प्रवृत्ति को अपने जीवन का अहम हिस्सा बनाना पड़ेगा. दूसरे को दोष देने से न समाज को लाभ होगा और ना खुद के जीवन में इससे कोई प्रगति होगी जब हर व्यक्ति अपनी जवाबदेही के प्रति प्रतिबद्ध होगा तो एक नया समाज, देश और विश्व बनने से कोई रोक नहीं पाएगा.
जीवन में खुशी और प्रफुल्लता तभी फलित हो सकती है, जब जवाबदेही को ईमानदारी के साथ निभाया जाए. मंदिर-मस्जिद या किसी भी धार्मिक प्रतीक पर दिखावे से जीवन में वास्तविक आनंद नहीं आ सकेगा. वास्तविक आनंद स्वभाव बनना चाहिए. हर परिस्थिति में आनंद की खोज स्वभाव का हिस्सा बनेगा तभी जीवन में प्रसन्नता का उदय होगा.
ड्राइवर्स की हड़ताल ने यह सोचने पर मजबूर किया है कि अपराध को रोकने के लिए सख्त कानून जरूरी है या घायलों को सड़क पर छोड़ देने वालों को राहत देने के लिए कानून को शिथिल ही रखने की आवश्यकता है? गुलामी के प्रतीक कानूनों को बदलकर भारत सरकार ने देश से गुलामी की मानसिकता को हटाने की क्रांतिकारी पहल की है. जवाबदेही के लिए केवल ड्राइवर्स ही नहीं समाज के सभी वर्गों के लिए सख्त दिशानिर्देश और कानून की नई परंपरायें स्थापित किये जाने की जरुरत है.