कांग्रेस ने एक नई यात्रा ‘भारत न्याय यात्रा’ शुरू करने का ऐलान किया है. यात्रा का नाम नया है यात्री पुराना ही है. यात्रा के हीरो राहुल गांधी हैं. भारत जोड़ो यात्रा के हीरो भी वही थे. कांग्रेस में शायद एक ही हीरो है इसलिए हर बार वांछित सफलता नहीं मिलने पर भी इसी हीरो के साथ नया मिशन प्रारंभ कर दिया जाता है..!!
भारत का ‘मून मिशन’ और ‘सन मिशन’ सफलता के झंडे गाड़ रहा है लेकिन कांग्रेस का राहुल मिशन बार-बार लॉन्च तो किया जाता है लेकिन सक्सेसफुली लैंड नहीं हो पता है. जब तक उन कारणों को नहीं समझा जाएगा कि कांग्रेस पब्लिक सेंटीमेंट के साथ क्यों नहीं जुड़ पा रही है? क्या वैचारिक स्तर पर कोई बुनियादी भूल हो रही है? क्या वैयक्तिक स्तर पर कर्मयात्रा और राजनीतिक यात्रा में बहुत अंतर है? करनी और कथनी में कोई मेल नहीं है? भारत जोड़ने की वैचारिक आवश्यकता क्या पूरी हो गई है और अब न्याय की जरूरत महसूस की जा रही है?
लोकतांत्रिक सत्ता ही अगर आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक न्याय दिलाने में कारगर होती है तो फिर कांग्रेस शासित राज्य में तो न्यायपूर्ण समाज का मॉडल अभी तक स्थापित हो जाना चाहिए था. राजनीतिक अभियान के रूप में सामाजिक भावनाओं को भुनाने की वैचारिक कोशिशों को समझने में राजनीतिज्ञ भले भूल करते हों लेकिन जनता बिल्कुल भी भूल नहीं करती.
राजनीति का दिखावा और जीवन की कर्मयात्रा में भेद राजनीतिक असफलता की गारंटी है. कांग्रेस की पूरी यात्रा ऐसी ही गारंटी का उदाहरण बनती जा रही है. भारत न्याय यात्रा भी केवल एक सतही चुनाव यात्रा के रूप में ही स्थापित हो सकती है. न्याय की अवधारणा समाज में स्थापित है. कांग्रेस की न्याय की परिकल्पना सामाजिक अवधारणा से मेल ही नहीं खा पा रही है तो ऐसी यात्रा की सफलता तो संदेह के घेरे में ही रहेगी.
किसी भी नेता की राजनीतिक यात्रा वैभवशाली तभी हो सकती है जब सार्वजनिक जीवन और कर्मयात्रा में तालमेल हो. देवतुल्य राजनीति का दौर समाप्त हो चुका है. वास्तविक व्यक्तित्व और कृतित्व अगर समाज को प्रेरित और प्रोत्साहित करने में उदाहरण बन सकता है तभी उज्जवल भविष्य और संभावनाएं भी बन सकती हैं. भारत न्याय यात्रा का उद्देश्य लोकतंत्र और संविधान को बचाने के साथ ही आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक न्याय का भरोसा दिलाना बताया गया है. महंगाई और बेरोजगारी के प्रति लोगों को जागरूक करना भी इसका उदेश्य है.
राहुल गांधी का पूरा राजनीतिक जीवन इन्हीं मुद्दों पर चल रहा है. समय-समय पर उनके विचारों में परिवर्तन दिखाई पड़ता है. राष्ट्र की सोच से ज्यादा राजनीतिक नजरिया उनके विचारों को प्रेरित करता है. पूरा देश जानता है कि उनकी आर्थिक न्याय की परिभाषा अडानी-अंबानी के विकास और गरीबों की आर्थिक स्थिति की तुलना पर खत्म होती है. उनका सामाजिक न्याय जातिगत जनगणना पर सिमट गया है. राजनीतिक न्याय जातीय राजनीति को वीभत्स रूप में सामने लाकर राजनीतिक उपलब्धि हासिल करना बन गया है.
लगातार पराजय और वैचारिक हार के बाद भी कांग्रेस ना मालूम क्यों बीजेपी और मोदी विरोध को ही अपना सबसे बड़ा राजनीतिक हथियार मान कर चल रही है. तुष्टिकरण के नुकसान को भी कांग्रेस देख नहीं पा रही है. वामपंथी विचारधारा से पोषित कांग्रेस के चिंतक और विचारक लगातार सनातन की उपेक्षा करने वालों के साथ खड़े दिखाई पड़ते हैं. भारत और भारतीयता के साथ उनका जुड़ाव दोनों स्तर पर कमजोर होता दिखाई पड़ रहा है.
राममंदिर पर पूरा देश आस्था के साथ जुड़ा हुआ है लेकिन कांग्रेस के विचारक और उनके राजनीतिक सहयोगी किसी न किसी रूप में राममंदिर में प्राण प्रतिष्ठा को लेकर विवादस्पद टिप्पणियां करते दिखाई पड़ते हैं. मोदी विरोधी राजनीतिक दलों के गठबंधन का नेतृत्व करते हुए कांग्रेस सनातन की शाश्वत धारा को खंडित करने वालों के साथ खड़े होने से भी परहेज नहीं करती.
डीएमके द्वारा लगातार सनातन धर्म के खिलाफ आवाज उठाई जा रही है. दक्षिण भारत में धर्मविरोधी राजनीतिक वातावरण कुछ सीमा तक लाभ पहुंचा सकता है लेकिन उसके दुष्परिणाम उत्तर भारत में कांग्रेस को भुगतने पड़ेंगे. सनातन धर्मप्रेमियों के साथ उनकी भावनाओं को आहत और अपमानित करने का जो अन्याय कांग्रेस के सहयोगियों द्वारा किया जा रहा है उस पर न्याय करने का विचार कभी कांग्रेस और राहुल गांधी क्या देश के सामने रख पाएंगे?
राहुल गांधी की तो हिंदूधर्म और हिंदुत्व की अपनी परिभाषा है जो प्रायः धर्म मानता है उससे इतर उनके विचार हैं. राहुल गांधी के पूर्वज जिस जातीय जनगणना को देश और समाज के लिए घातक मानते हुए उसका विरोध कर रहे थे उसी जातिगत जनगणना का राहुल गांधी आज प्रबल समर्थन कर रहे हैं और इसी सोच के साथ न्याय यात्रा निकालने का विचार रख रहे हैं तो क्या इस यात्रा को समाज का समर्थन मिल सकता है?
राहुल गांधी की इस बात के लिए प्रशंसा की जानी चाहिए कि वह धुन के पक्के हैं. एक बार जो तय कर लेते हैं उस पर मजबूती से आगे बढ़ते हैं. निश्चित रूप से ‘भारत जोड़ो यात्रा’ उन्होंने मेहनत से निकाली थी और ‘भारत न्याय यात्रा’ भी निश्चित रूप से पूरी करेंगे. राहुल गांधी पॉलीटिकल मैसेज देने में सबसे कमजोर साबित होते हैं. उनकी मैसेजिंग पार्टी के लिए ही भारी पड़ जाती है. राजनीति के लिए सत्ता ही सबसे बड़ा न्याय है. जब तक सत्ता नहीं होगी तब तक न्याय का दिखावा कर राजनीतिक अभियान तो चलाया जा सकता है लेकिन समाज में कोई बदलाव नहीं लाया जा सकता.
केंद्र में बीजेपी की सत्ता आने के बाद कांग्रेस वैचारिक भ्रम का शिकार बनी हुई है. सामाजिक न्याय की सारी धुरी बीजेपी के साथ जुडती दिखाई पड़ रही है. चुनाव परिणाम सारे सामाजिक समीकरण बीजेपी के साथ जाने का संकेत कर रहे हैं. गरीबों का झुकाव मोदी सरकार के प्रति स्पष्टता के साथ दिखाई पड़ता है. इसका कारण केवल यही कहा जा सकता है कि मोदी की कर्मयात्रा और सार्वजनिक जीवनयात्रा में कोई भेद दिखाई नहीं पड़ता. करनी और कथनी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय का प्रतीक बन गई है.
कांग्रेस को सामाजिक न्याय की कर्म यात्रा से मुकाबला करने की चुनौती है. यह तभी संभव हो सकता है जब करनी और कथनी में एकरूपता के साथ जनभावनाओं पर आगे बढ़ा जाए. परिवारवादी राजनीति कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या लगती है. इसको समझने की बजाय परिवारवाद को ही कांग्रेस आगे बढ़ाने की असफल कोशिश हर बार करती है. यही प्रयास भारत न्याय यात्रा में भी दिखाई पड़ रहा है.
परिवारवाद से बचने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे का निर्वाचन किया गया लेकिन यह बदलाव भी केवल मुखौटे के रूप में साबित हो गया है. निर्णय के सारे सूत्र तो गांधी परिवार के हाथ में ही हैं. न्याय यात्रा का नेतृत्व राहुल गांधी को ही क्यों करना चाहिए? कांग्रेस की ओर से इसके लिए क्या कोई सामूहिक नेतृत्व जिम्मेदार नहीं बनाया जा सकता था? राहुल गांधी का पूरा जीवन प्रधानमंत्री के परिवार से शुरू और पालित-पोषित हुआ है. होश संभालते ही उन्हें राजनीतिक विरासत मिली. उस विरासत को मजबूती देने के बदले उन्हें अपनी परंपरागत लोकसभा सीट भी हारकर दक्षिण भारत के सुदूर राज्य से संसद में जाना पड़ा.
कांग्रेस से कितने नेताओं ने अपने को अलग कर लिया और इसके लिए राहुल गांधी की कार्यप्रणाली को ही जिम्मेदार बताया. जो व्यक्ति खुद के साथ न्याय कर सकेगा वहीं दूसरे के साथ न्याय करने का हकदार हो सकेगा. हर इंसान का खुद के साथ न्याय, खुद का संविधान, खुद का अनुशासन और खुद का जीवन होता है. जब वह खुद ऐसा जीवन जिएगा जो समाज के लिए मार्गदर्शक बन जाए तभी राजनीतिक जीवन में उसको वैचारिक ताकत और जन समर्थन मिल पाएगा.
लोकसभा चुनाव की पृष्ठभूमि में ‘भारत न्याय यात्रा’ कांग्रेस के साथ कितना न्याय कर पाएगी यह तो वक्त के साथ ही साबित होगा. न्याय यात्रा के हीरो के पूर्व सक्सेस रेट को देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि यह फिल्म भी पहले की फिल्मों की तरह थोड़ा बहुत ही चल पाएगी. हर इंसान हर क्षेत्र में सफल नहीं हो सकता. इंसान की रुचि उसके कार्य करने के ढंग से उसके जीवन के कर्मक्षेत्र का निर्धारण होता है. यह समस्या अनेक लोगों के साथ होती है कि उनका व्यक्तित्व जिस बात के लिए बना है उनकी जीवन यात्रा उसके विपरीत चलते हुए समाप्त हो जाती है.
राहुल गांधी को अपनी कर्मयात्रा में परिवर्तन लाने की जरूरत है. पब्लिक सेंटीमेंट को समझे बिना केवल मोदी विरोध सक्सेस का पैमाना नहीं हो सकता. यात्रा का दिखावा राजनीतिक चर्चाओं में तो बनाये रख सकता है लेकिन जनमत को प्रभावित नहीं कर सकता है.
हर गेम के अपने रूल होते हैं. राजनीति किसी रूल से नहीं चलती लेकिन फिर भी राजनीति में जीवन के बुनियादी रूल तो काम करते ही हैं. लगता है कांग्रेस जीवन के बुनियादी रूल ही भुला चुकी है. पहले उसे कांग्रेस और कांग्रेस जनों के साथ न्याय पर काम करने की जरूरत है, जब कांग्रेस न्यायपूर्ण संगठन का आईना बनेगी तो फिर जनमत का जुड़ाव कांग्रेस के साथ स्वतः ही हो जाएगा. इसके लिए किसी यात्रा की शायद आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी.