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इसमें वही फंसा, जिस पर चढ़ा, पावर का नशा

सार

छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम भूपेश बघेल आबकारी विभाग के घोटाले में फंसते नजर आ रहे हैं ईडी ने उनके घर पर छापा मारा है. इसके पहले ईडी द्वारा शराब घोटाले में पूर्व मंत्री कवासी लखमा को गिरफ्तार किया गया था. दिल्ली के मुख्यमंत्री आबकारी घोटाले में जेल जा चुके हैं. मुख्यमंत्रियो पर आबकारी विभाग भारी पड़ रहा है..!!

janmat

विस्तार

    चुनाव के समय भी छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ घोटालों को मुद्दा बनाया गया था. घोटालों के नेरेटिव ने अपना असर दिखाया. कांग्रेस जीत के प्रति काफी आश्वस्त थी, लेकिन बीजेपी वहां सरकार बनाने में सफल हो गई. चुनावी अवसरों पर घोटाले के आरोप अक्सर बाद में भुला दिए जाते हैं.

    केंद्र में कांग्रेस के सत्ता से बेदखल होने के बाद घोटालों पर जांच का नेरेटिव बदला है. यह अलग बात है कि अभी केवल विपक्षी दलों की सरकारों के खिलाफ ही जांच की कार्रवाई तेजी से हो रही है, लेकिन लोकतंत्र के लिए तो यह शुभ संकेत है. सरकारों में बदलाव स्वाभाविक प्रक्रिया है. अगर करप्शन पर जीरो टॉलरेंस की नीति चलती रही तो फिर अदलते-बदलते परिदृश्य में सभी आरोपी और दोषी जांच की जद में आ जाएंगे. कांग्रेस के पूर्व सीएम बघेल भले ही जांच की कार्रवाही को राजनीतिक बता रहे हों, लेकिन इतने मात्र से घोटाले के आरोपों से बचा नहीं जा सकता.

    परसेप्शन में तो यह बहुत पहले से सबको पता है, कि सरकारों के लिए विशेष कर मुख्यमंत्री के लिए आबकारी, ट्रांसपोर्ट और माइनिंग विभाग एटीएम जैसा होता है. इन विभागों से जो उगाही होती है, वह राजनेताओं के निजी हित के साथ ही परिवार, पार्टी और आकाओं को भी साधने में काम आती है. राजनीतिक दलों के संगठन अब जनता के चंदे से शायद ही चल रहे हैं. इन्हीं विभागों से अवैध कलेक्शन पार्टियों तक पहुंचता है.

    छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जिस दौर में सरकार थी, उसे दौर में कांग्रेस की बहुत कम राज्यों में सरकारें थीं. जहां से पार्टी फंड मैनेज किया जा सकता है. छत्तीसगढ़ पर फंड मैनेजमेंट का काफी दबाव देखा गया था. चुनाव के समय इस तरीके के आरोप लगाए गए थे, कि राज्य सरकारों को कांग्रेस आलाकमान द्वारा एटीएम के रूप में उपयोग किया जा रहा है. सरकारों का एटीएम भी तभी तक चलेगा जब तक अवैध कमाई करने वाला विभागों का एटीएम चलता रहेगा. शराब घोटाले ऐसे ही एटीएम को चलाने के लिए अंज़ाम दिए जाते हैं.

    यह तीनों विभाग हर सरकार में संस्थागत रूप से राजनेताओं और राजनीतिक दलों के फंड मैनेजमेंट के लिए काम करते हैं. ईडी ने दिल्ली शराब घोटाले की चार्जशीट में आम आदमी पार्टी को भी लाभार्थी बताया है. 

    मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए या उसके बाद जेल जाने के हालात लगातार बढ़ते जा रहे हैं. मुख्यमंत्री के रूप में लालू प्रसाद यादव पर चारा घोटाले में जेल गए. हेमंत सोरेन को माइनिंग घोटाले में जहां जेल जाना पड़ा. अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्री जेल गए. छत्तीसगढ़ के मंत्री को जेल जाना पड़ा और अब पूर्व सीएम बघेल फंसते दिखाई पड़ रहे हैं.

    राजनीति में पहले एक अघोषित परंपरा बनी हुई थी, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दल चुनाव में तो करप्शन के मामले उठाते थे और चुनावी लाभ लेने के बाद उनको भुला दिया जाता था. केंद्र की मोदी सरकार ने सांठ-गांठ के इस खेल को बिगाड़ दिया है. इसीलिए विपक्ष की सरकारों के खिलाफ़ जांच के मामले बढ़े हैं. घोटालों के चुनावी आरोप की विश्वसनीयता तभी बनती है, जब सरकार में आने के बाद उनकी जांच आगे बढ़ाई जाती है, दोषियों को सजा मिलती है.

    कांग्रेस का रिकॉर्ड इस मामले में अच्छा नहीं कहा जा सकता. जिन राज्यों में कांग्रेस ने घोटाले के आरोपों पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की, उन राज्यों में भी पूर्व सरकारों के किसी भी राजनीतिज्ञ के खिलाफ़ कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई. कर्नाटक में तो कांग्रेस ने 40% गवर्नमेंट के आरोप के साथ बीजेपी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा. वहां कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन बाद में ऐसा हुआ कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री ही करप्शन के आरोपों में घिर गए. पुराने किसी घोटाले पर सरकार कोई प्रभावी कार्रवाही करते हुए दिखाई नहीं पड़ी. ऐसे ही हालात हिमाचल प्रदेश में भी हैं. तेलंगाना में भी कांग्रेस ने बीआरएस सरकार के खिलाफ करप्शन के गंभीर आरोप लगाए थे, लेकिन सरकार में आने के बाद खाओ-पियो मौज उड़ाओ की नीति पर कांग्रेस चलने लगी.

    मुख्यमंत्री, मंत्री और बड़े ब्यूरोक्रेट पर घोटालों के मामले में जांच में कार्रवाई का नेरेटिव लोकतंत्र को ना केवल शुद्ध कर रहा है, बल्कि इससे नई ऊर्जा मिल रही है. 

    छत्तीसगढ़ कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था. अविभाजित मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार छत्तीसगढ़ के दम पर बना करती थी. छत्तीसगढ़ विभाजन के बाद मध्य प्रदेश में तो कांग्रेस कमजोर हो ही गई है, लेकिन छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने पहले मुख्यमंत्री के चयन से ही ऐसी गलतियां की हैं, कि अब वहां कांग्रेस को खड़ा होने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी. 

    मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए अपने कामकाज और स्टाइल ऑफ फंक्शनिंग को पारदर्शी रखने की जरूरत है. कोई यह माने कि उस पर नजर नहीं है, तो यह उसकी बड़ी गलती है. गड़बड़ियां उजागर होती हैं और अब तो सियासी माहौल भी ऐसा बन गया है, कि सांठ-गांठ करके आरोपों से बचा नहीं जा सकता. घोटाला किया है तो सजा भी बहुत ही पड़ेगी. इसलिए मुख्यमंत्री के पद का उपयोग जनहित के लिए ही करना सबसे बड़ा स्वहित है. पावर का नशा लोभ बढ़ाता है और लोभ से कोई तृप्त नहीं हो सकता.